डॉ. डी. बालसुब्रामण्यन
पौधों के पास कम-से-कम पांच तरीके हैं जिससे वे आवश्यक गुण विकसित कर सूखे से बच सकते हैं। जीव विज्ञानियों के लिए यह अध्ययन का प्रमुख क्षेत्र है।
साल-दर-साल हम देख रहे हैं कि भारत के कई क्षेत्र सूखे से प्रभावित हो रहे हैं जिसकी वजह से खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित हो रहा है और किसान परेशानियों से घिर रहे हैं। हाल के दशकों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया है। पौधे कैसे इस सूखे के तनाव से निपटते हैं? यह बहुत ही दिलचस्प और सक्रिय शोध का क्षेत्र है और हम इसके कुछ पहलुओं को समझ पाए हैं।
हर स्कूली बच्चा जानता है कि पौधे सूरज की रोशनी से ऊर्जा प्राप्त करते हैं, वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड लेते हैं, मिट्टी से पानी लेते हैं और इन सबका इस्तेमाल हमारे लिए भोजन बनाने में करते हैं। यह सरल-सी रासायनिक क्रिया, जिसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं, केवल कार्बोहाइड्रेट्स ही नहीं बनाती बल्कि ऑक्सीजन भी उत्पन्न करती है; जिस ऑक्सीजन का इस्तेमाल हम श्वसन में करते हैं और यह हमारी शारीरिक क्रियाओं में मदद करती है और इससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। इस प्रकार पौधों को बहुत साधारण चीज़ों की ज़रूरत होती है - धूप, हवा से कार्बन डाईऑक्साइड और ज़मीन से पानी। इन तीनों में से किसी एक की भी कमी होती है तो पौधों का उत्पादन घटता है।
पानी का संकट
संयोगवश दिन के समय धूप तो नियमित और भरपूर मात्रा में मिलती रहती है। कार्बन डाईऑक्साइड भी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है (वास्तव में यह अधिकता में है और कोयला, पेट्रोल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म इंधनों के दहन की वजह से साल-दर-साल इसमें इज़ाफा हो रहा है)। लेकिन पानी की कमी दुनिया के कई हिस्सों में अकाल की स्थिति तक पहुंच गई है। इस अकाल की स्थिति में पौधे कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। क्या उनके अंदर पानी के अभाव से पैदा होने वाले तनाव से निपटने के लिए कोई तंत्र है, और कैसे वे सूखे का सामना करते हैं? यह वनस्पति वैज्ञानिकों के लिए शोध का सक्रिय क्षेत्र है।
हाल ही में प्रकाशित दो पर्चों ने इन पहलुओं पर प्रकाश डाला है कि सूखे के तनाव से पौधे कैसे निपटते हैं। पहला पर्चा यूएस स्थित अर्कान्सास विश्वविद्यालय के डॉ. एंडी पेरेरा का है। इन्होंने अपने अध्ययन के लिए धान का इस्तेमाल किया। बासु, रामगौड़ा, कुमार और परेरा का यह शोध पत्र इंटरनेट पर उपलब्ध है।
इस पर्चे में बताया है कि पौधे अनुकूलन के लिए विभिन्न रणनितियां अपनाते हैं। एक रणनीति है सूखा प्रतिरोध जो पौधों को सूखे के प्रति सुरक्षा, बचाव और तनाव सहने के योग्य बनाता है। सूखे से पलायन की रणनीति में पौधे सूखे से पहले ही अपना जीवन चक्र पूरा करने की कोशिश करते हैं। इसमें पौधे सूखे की स्थिति शुरू होने से पहले ही किसी संकेत से उसे भांपकर समय पर अपने आपको तैयार कर लेते हैं। सूखे को टालने की रणनीति में पौधों की यह क्षमता काम आती है कि मिट्टी में पानी के अभाव के बावजूद वह अपने ऊतकों में पानी की उच्च मात्रा बनाए रखता है। सूखा सहनशीलता रणनीति में पौधे विभिन्न अनुकूलीय लक्षणों के ज़रिए अपने ऊतकों में पानी की कम मात्रा को झेल जाते हैं।
पौधे सूखे की स्थिति में इन सभी लक्षणों को कैसे प्रदर्शित करते हैं? अपने पर्चे में लेखकों ने कहा है कि पौधे कम-से-कम पांच विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं।
सबसे पहला है पत्तियों का क्षेत्रफल घटाकर (जैसे पत्तियां बंद कर लेना) प्रकाश संश्लेषण के स्तर को कम करना (याद कीजिए प्रकाश संश्लेषण में पानी इस्तेमाल होता है) और प्रकाश संश्लेषण की दर को धीमा करना।
दूसरा, पौधों में हार्मोन्स, विशेष रूप से एब्सिसिक एसिड (ABA) की क्रिया का नियमन करके। सूखे के तनाव के दौरान ABA जड़ों से पत्तियों की तरफ बहता है और स्टोमेटा को बंद करने में मदद करता है। स्टोमेटा पत्तियों पर सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनके ज़रिए कार्बन डाईऑक्साइड, ऑक्सीजन, जलवाष्प की आवाजाही होती है और स्टोमेटा बंद रहें तो पौधों की वृद्धि कम होती है। इसमें एक अन्य संदेशवाहक अणु सायटोकिनिन की भी भूमिका होती है।
तीसरा है, वाष्पोत्सर्जन (पौधे द्वारा पानी हवा में छोड़ना) को काबू करके। स्टोमेटा को बंद करने से पानी का ह्यास कम हो जाता है और साथ ही कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषण भी कम हो जाता है। चौथा तरीका है जड़ों से निकलने वाली शाखाओं की वृद्धि, लंबाई, आकार में परिवर्तन करके।
पांचवां है, परासरण समायोजन। इसमें कोशिका के आकार को दृढ़ बनाए रखने के लिए कोशिका की दीवार या कोशिका झिल्ली पर पर्याप्त दबाव बनाया जाता है ताकि वे पिचके नहीं।
साफ तौर पर ये पांचों प्रक्रियाएं जीन्स द्वारा नियंत्रित होनी चाहिए जो ऐसे प्रोटीन और अन्य अणुओं का उत्पादन करते हैं जो तनाव के विरुद्ध प्रतिक्रिया को अंजाम देते हैं। इस प्रक्रिया के नियमन का अध्ययन यूएसए के आयोवा स्टेट विश्वविद्यालय के डॉ. यानहाई यिन और उनके समूह ने किया है। हाल ही में प्रकाशित शोध पत्र में उन्होंने BES1 और RD26 नामक दो अणुओं की भूमिका के बारे में बताया है, जो सूखे की स्थिति में पौधे की वृद्धि के नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये दोनों सम्बंधित प्रोटीन बनाने वाले जीन्स का नियमन करते हैं।
ये दोनों अणु विपरित मकसद से काम करते दिखते हैं, लेकिन इन दोनों का काम परस्पर जुड़ा हुआ है। डॉ. यिन का कहना है कि हमने खोजा कि ये दो अलग भूमिका निभाते हैं और यह पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इनकी क्रियाविधि को समझना सूखे पर पौधों की प्रतिक्रिया को समझने में मददगार हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)