हाल ही में मधुमक्खियों पर एक किस्म के कीटनाशकों का असर परखने के लिए किए गए एक व्यापक मैदानी अध्ययन के परिणाम प्रकाशित हुए हैं। इसके परिणाम मिले-जुले हैं और वैज्ञानिक समुदाय इनकी व्याख्या को लेकर बंटा हुआ है। गौरतलब है कि यह अध्ययन दो कृषि रसायन कंपनियों सिंजेन्टा और बायर के वित्तीय समर्थन से हुआ है।
अध्ययन में कीटनाशकों की जिस किस्म का अध्ययन किया गया वह नियोनिकोटिनॉइड्स है। कीटों में अन्य कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित हो जाने के बाद इनका उपयोग लगातार बढ़ता गया है और फिलहाल नियोनिकोटिनॉइड्स दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशक हैं। नियोनिकोटिनॉइड्स को पत्तियों पर छिड़का नहीं जाता बल्कि बीजों पर डाला जाता है। लिहाज़ा ये मिट्टी में बीजों की रक्षा करते हैं और फिर अंकुरण के समय पौधे के शेष भागों में फैल जाते हैं और पौधे की रक्षा करते हैं।
उपरोक्त अध्ययन तीन देशों - युनाइटेड किंगडम, हंगरी और जर्मनी - में 33 स्थलों पर 2 साल तक चला था। इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि मामला बहुत पेचीदा है और कीटनाशकों के असर को एक पूरी परिस्थिति के तहत ही परखा जा सकता है।
यह देखा गया है कि प्रयोगशालाओं में नियोनिकोटिनॉइड्स की थोड़ी खुराक भी मधुमक्खियों में दिशा भ्रम पैदा करती है तथा अन्य असर भी होते हैं। इन प्रयोगों के चलते युरोपीय आयोग ने अरंडी और अन्य फूलधारी फसलों पर इनके उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था।
कंपनियों का मत रहा है कि प्रयोगशाला में किए गए अध्ययन पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए मैदानी अध्ययन की योजना बनाई गई। अध्ययन के परिणामों की व्याख्या सारे सम्बंधित लोग अपने-अपने हिसाब से कर रहे हैं। जहां जर्मनी में कीटनाशकों का कोई असर नहीं देखा गया, वहीं हंगरी में कीटनाशक-उपचारित फसलों के आसपास मधुमक्खियों की बस्तियों में कामगार मक्खियों की संख्या में उल्लेखनीय कमी देखी गई। युनाइटेड किंगडम में भी यही स्थिति रही किंतु असर का परिमाण कम रहा।
अब कुछ लोग (खासकर कंपनियों से जुड़े लोग) कह रहे हैं कि इस अध्ययन से साबित होता है कि नियोनिकोटिनॉइड्स सुरक्षित हैं। दूसरी ओर, पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी कई संस्थाओं के प्रतिनिधियों का मत है कि जर्मनी की स्थिति में कुछ बातें थीं जिनकी वजह से वहां मधुमक्खियां प्रभावित नहीं हुई है। वे नियोनिकोटिनॉइड्स पर पहले से लगे प्रतिबंध को आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।
इसी अध्ययन के दौरान यह भी देखा गया कि यह कीटनाशक उन जगहों में पक्षियों के घोसलों में अब तक मिल रहा है जहां इसका उपयोग बरसों से नहीं हुआ है, अर्थात यह पर्यावरण में लंबे समय तक टिका रहता है।
अब देखना यह है कि इस माह युरोपीय संघ इस अध्ययन के आधार पर क्या फैसला लेता है। (स्रोत फीचर्स)