भौतिक शास्त्री कभी-कभी कमाल करते हैं। शायद ही किसी ने सोचा हो कि बच्चों के जूतों के फीते बार-बार खुल जाने की समस्या का अध्ययन किसी भौतिक शास्त्री के लिए चुनौती बन सकता है। किंतु बर्कले स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के ओलीवर ओराइली ने ठीक इसी समस्या पर शोध किया और कुछ रोचक निष्कर्ष प्राप्त किए।
यह समस्या तो हम सबने देखी है कि फीतों की गांठ काफी कसकर लगाने के बाद भी वह अपने आप खुल जाती है। बच्चों के साथ ऐसा ज़्यादा होता है। तो आखिर क्यों यह गांठ खुलती रहती है? वैसे देखा जाए तो विभिन्न किस्म की गांठें काफी समय से भौतिक शास्त्रियों के लिए अध्ययन का विषय रही हैं। जैसे 2015 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (एमआईटी) के शोधकर्ताओं ने सरल गठानों के लिए समीकरणें विकसित करके यह समझने की कोशिश की थी कि विभिन्न गठानों में किस तरह के बल काम करते हैं। ये मुख्य रूप से तन्यता, घर्षण और कड़कपन के बल होते हैं। समीकरणों के माध्यम से यह भी देखने की कोशिश की गई थी कि किसी गठान में फेरों की संख्या और इन बलों का परस्पर क्या सम्बंध है। किंतु किसी ने इस सवाल पर विचार नहीं किया था कि गठान अपने आप क्यों खुल जाती है।
तो ओलीवर ओरायली और उनके दो छात्रों ने जूतों और जूतों के फीतों पर ध्यान देना शुरु किया। संस्थान के अहातों में वे पागलों के समान भाग-दौड़ करके समझने का प्रयास करते कि फीते खुलते क्यों हैं? मगर बात नहीं बनी। तब टीम की एक सदस्य क्रिस्टीन ग्रेग को जूते पहनाकर, फीते अच्छे से बांधकर ट्रेडमिल पर दौड़ाया गया। वे दौड़ती थीं और बाकी साथी उनके पैरों की स्लो मोशन वीडियो फिल्म निकालते थे।
वीडियो फिल्म के विश्लेषण से उन्हें समझ में आया कि सारा खेल जड़त्व का है। जड़त्व वह बल होता है जो कोई वस्तु उसकी गति में परिवर्तन को रोकने के लिए लगाती है। होता यह है कि गठान को बांधे रखने का काम उसके बीचोंबीच लग रहे घर्षण बल द्वारा किया जाता है। किंतु लगातार बार-बार पैरों को ज़मीन पर पटके जाने से फीता आगे-पीछे होता है। घर्षण फीते के तंतुओं को अपनी जगह स्थिर रखने का प्रयास करता है और आगे-पीछे की गति उन्हें दूर-दूर करती है। फिर एक ऐसा बिंदु आता है जब घर्षण बल उन्हें रोक नहीं पाता और फीता खुल जाता है।
शोधकर्ताओं ने सोचा कि पैरों की आगे-पीछे की गति से शायद बात बन जाएगी। तो वे मेज़ पर बैठकर टांगें हिलाते रहे। काफी समय ऐसा करने के बाद भी कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने सोचा कि शायद पैर पटकने से फीता खुलेगा। तो उन्होंने पैर पटक-पटक कर कदमताल की मगर फीता टस से मस नहीं हुआ। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला की सिर्फ पैर पटकने से नहीं बल्कि पैर पटक कर आगे बढ़ने से फीता खुलता है। इसकी जांच के लिए उन्होंने पेंडुलम बनाकर गांठ लगाई और पेंडुलम को डुलाया और फीते के सिरों पर वज़न भी लगाए। जितना ज़्यादा वज़न लगाते, फीता उतनी जल्दी खुलता था। पता नहीं उन्होंने समस्या को सुलझाने के लिए क्या उपाय सुझाए हैं मगर उनका कहना है कि उनके काम से गठानों के बारे में जो समझ बनी है वह कई मामलों में उपयोगी होगी। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - June 2017
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