सुबोध जोशी
विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता, सक्रियता और गरिमा बनाए रखने और बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक निरंतर प्रयास कर रहे हैं। किसी बीमारी, स्वाथ्य सम्बंधी समस्या, अंगभंग, विकलांगता आदि के कारण प्रभावित व्यक्ति सामान्य ढंग से वह कार्य नहीं कर पाते जो सामान्य व्यक्ति सहज ही कर लेते हैं। किंतु यदि कार्य के तरीके में ऐसे व्यक्तियों की स्थिति के अनुरूप परिवर्तन किए जाएं और उसके लिए विशिष्ट तकनीकी साधन उपलब्ध कराए जाएं तो, अलग ढंग से ही सही, ये व्यक्ति भी वे कार्य कर सकते हैं। ऐसे विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों को उनकी विशेष आवश्यकता के अनुरूप साधन मिल जाएं तो वे उसी कार्य को अलग ढंग से करने में सक्षम (भिन्न सक्षम) हो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि वे भी सक्रिय और उपयोगी हो जाते हैं जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता और गरिमा बनी रहती या बढ़ती है।
छड़ी, बैसाखी, व्हीलचेयर, वॉकर, तिपहिया साइकिल, ऐनक, श्रवण यंत्र, ब्रेल उपकरण, कैलिपर आदि बहुत-सी चीज़ें हैं, जिन्हें हम अपने आसपास कई लोगों को इस्तेमाल करते हुए रोज़ ही देखते हैं। देखने में ये सारे उपकरण बहुत साधारण प्रतीत होते हैं लेकिन जो व्यक्ति इन्हें इस्तेमाल करते हैं, उनमें से प्रत्येक के लिए ये अत्यधिक महत्वपूर्ण सहायक उपकरण हैं। छड़ी जैसी अत्यंत साधारण चीज़ का महत्व समझने के लिए ज़रा यह समझने की कोशिश करें कि छड़ी के सहारे चलने वाले व्यक्ति की स्थिति छड़ी के बिना कैसी होगी? इसी तरह कृत्रिम अंग भी बेहद सहायक होते हैं।
आधुनिक विज्ञान विशेष आवश्यकताओं वाले व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर पैनी निगाह रखे हुए है और निरंतर यह प्रयास कर रहा है कि हर एक चुनौती का हल खोजा जाए। कोशिश यह है कि मौजूदा उपकरणों को बेहतर बनाया जाए और नई तकनीकें भी खोजी जाएं। विशेष आवश्यकता वाले व्यक्ति के लिए विज्ञान और तकनीकी किस तरह आश्चर्यजनक रूप से सहायक हो सकते हैं इसे समझने के लिए प्रख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग के बारे में इंटरनेट के माध्यम से जानना लाभप्रद होगा।
ऐसे ही वैज्ञानिक प्रयासों में से एक है पैरालिसिस ग्रस्त व्यक्तियों के लिए एक ऐसा टाइपिंग उपकरण जो व्यक्ति के दिमाग को पढ़कर वह सब टाइप कर देगा जो वे टाइप करना चाहते हैं लेकिन अपने हाथ से नहीं कर सकते। इसे माइंड-रीडिंग टाइपिंग टूल कह सकते हैं। यह उपकरण कैलिफोर्निया स्थित स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन ने विकसित किया है। प्रायोगिक तौर पर इसकी सहायता से तीन व्यक्तियों ने सिर्फ विचारों के माध्यम से कंप्यूटर पर टाइपिंग करने में सफलता हासिल की है। वे टाइपिंग का यह काम अपनी उंगलियों से नहीं कर पाते। इनमें से दो व्यक्तियों को मोटर न्यूरॉन डिसीज़ या एएलए है और एक को स्पाइनल कॉर्ड क्षति है जिसके कारण ये अपने हाथ-पैरों का इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं और यह भी संभव है कि एएलए ग्रस्त व्यक्ति में भविष्य में बोलने की क्षमता भी ना रहे। अब तक विकसित किए गए उपकरणों में यह टाइपिंग के लिए सबसे तेज़ साबित हुआ है।
जिन व्यक्तियों की बोलने की क्षमता नहीं रहती वे अपने सर, गाल या आंख की हरकत से खास उपकरण की सहायता से कंप्यूटर के स्क्रीन पर अक्षर चुन सकते हैं, जैसा स्टीफन हॉकिंग के लिए इंतज़ाम किया गया है। किंतु दिमाग से सीधे मशीन को संकेत मिल जाएं और कार्य हो जाए ऐसी इंटरफेस तकनीकें विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं जिसका परिणाम स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की इस टीम की सफलता के रूप में सामने आया है।
इस तकनीक में व्यक्ति के दिमाग के प्राइमरी मोटर कॉर्टेक्स एरिया में छोटा-सा सिलिकॉन पैच लगाया गया। दिमाग का यह हिस्सा शारीरिक हलचल का नियंत्रण करता है। इस सिलिकॉन पैच को तार द्वारा कंप्यूटर से जोड़ा गया। व्यक्ति के दिमाग में अपने शरीर के विभिन्न अंगों को चलाने के बारे में उठने वाले विचारों को कोड के रूप में यह प्रणाली सीधे कंप्यूटर में पहुंचा देती है और कंप्यूटर इसे डिकोड/पढ़ कर स्क्रीन पर कर्सर चलाने लगता है। स्क्रीन पर दिखने वाले की-बोर्ड की मनचाही की पर कर्सर ले जाकर अक्षर, अंक और चिन्ह आसानी से टाइप किए जा सकते हैं। यह सब सिर्फ विचार की सहायता से हो जाता है, व्यक्ति को खुद किसी भी प्रकार की शारीरिक क्रिया नहीं करनी पड़ती।
इस शोध की सफलता के बाद अब इस तकनीक में सुधार के प्रयास जारी हैं ताकि टाइपिंग की गति बढ़ाई जा सके। दिमाग से मिलने वाले विचार-संकेतों को कंप्यूटर जितनी तेज़ी से डिकोड कर सकेगा टाइपिंग भी उतनी ही तेज़ी से होगी। दिमाग के मोटर कॉर्टेक्स की कार्य प्रणाली को वैज्ञानिक जैसे-जैसे और अधिक समझने लगेंगे वैसे-वैसे कंप्यूटर पर विचार-संकेतों की डिकोडिंग की गति बढ़ाना संभव होता चला जाएगा।
यह प्रणाली उपयोग में भी आसान है। तीनों व्यक्तियों ने एक दिन में ही कर्सर को अच्छी तरह चलाकर कंप्यूटर पर शब्द टाइप करना सीख लिया। वे औसतन 6-8 शब्द प्रति मिनट टाइप करने लगे जो पहले अपनायी गई इंटरफेस तकनीक से दो से चार गुना तेज़ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि तकनीक में सुधार के साथ सामान्य व्यक्ति द्वारा की टाइपिंग की गति की आधी गति से टाइपिंग इस तकनीक की सहायता से जल्दी ही संभव हो जाएगी।
इस तकनीक को अधिक तेज़, भरोसेमंद और पोर्टेबल बनाने की दिशा में प्रयास जारी हैं। इसे बेतार (वायरलेस) कनेक्टिविटी से सुसज्जित कर दिया जाए तो शायद और बेहतर होगा। अलग-अलग शोध केन्द्रों पर विकलांगों का जीवन सहज स्वाभाविक बनाने के लिए किए जा रहे वैज्ञानिक प्रयासों से भविष्य में अनेक प्रकार की नई तकनीकें विकसित होने की उम्मीद है। दिमाग से इलेक्ट्रोड को सीधे मांसपेशियों में जोड़कर बेकार हो चुकी भुजाओं को पुन: सक्रिय बनाने के प्रयास जारी हैं और सफलता की खबरें भी आ रही हैं। बायोनिक भुजाएं विकसित करने के शोध भी हो रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान के साथ इंजीनियरिंग और टेक्नॉलॉजी क्षेत्र के विशेषज्ञों के साझा प्रयासों से यह सब संभव हो रहा है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - June 2017
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