चारुदत्त नवरे
भाग-5 पुस्तक अंश
मध्य-पूर्व अफ्रीका में, वहाँ से बहुत दूर नहीं जहाँ आदिमानव रहा करते थे, आज भी हदज़ा समूह के कुछ सैकड़ों लोग शिकारी-संग्रहकर्ताओं के रूप में रहते हैं।
वे पिछले दस हज़ार वर्षों से ऐसा ही कर रहे हैं। वे किसी भी अन्य लोगों के समूह से निकटता से सम्बन्धित नहीं हैं। अभी हाल तक भी बाहरी लोगों के साथ उनका सम्पर्क शत्रुतापूर्ण ही रहा है (दोनों तरफ से)। पिछले 10,000 वर्षों में हुए आविष्कार या किसी भी चीज़ की खोज की खबर की हवा भी हदज़ा समूह तक नहीं पहुँची है।
हदज़ा पुरुष भोजन के लिए शिकार करते हैं या शहद की खोज में घूमते हैं। महिलाएँ खाद्य वनस्पति और भूमिगत कंदों को ढूँढ़ती हैं। हम मनुष्यों ने भी अपनी प्रजाति के इतिहास के 95 प्रतिशत हिस्से में ऐसा ही किया। हदज़ा समूह के लोगों के सूक्ष्मजीवों का अध्ययन बहुत ही रोमांचक हो सकता है, क्योंकि यह हमारे पूर्वजों के बारे में हमें काफी कुछ बता सकता है।
जब प्रोफेसर अमान्डा हेनरी की टीम ने हदज़ा समूह के लोगों की आँत के सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया तो उन्होंने पाया कि पुरुषों और महिलाओं के सूक्ष्मजीवों के समुदाय काफी भिन्न थे। यह दिलचस्प है, क्योंकि यह सम्भवत: पुरुषों और महिलाओं के आहार में अन्तर को दर्शाता है।
अन्य किसी भी मानव-जाति समूह के विपरीत, हदज़ा लोगों के पास ऐसा कोई भी सूक्ष्मजीव नहीं है जो दूध या अन्य किन्हीं डेयरी उत्पादों से जुड़ा हो। बाईफिडो-बैक्टीरिया अन्य सभी मानव आबादियों में शिशुओं और वयस्कों - सब में पाए जाते हैं। हालाँकि, हदज़ा समूह के वयस्कों में वे पूरी तरह से अनुपस्थित होते हैं। यह महत्वपूर्ण है, परन्तु आश्चर्यजनक नहीं है। शिकारी-संग्रहकर्ता की जीवनशैली में चौपाए सम्भालना या आहार में दूध के उत्पादों का सेवन शामिल नहीं होता है।
एक और रोचक बात, हदज़ा प्रजाति के लोगों में पौधों के रेशे पचाने की क्षमता होती है। उनके आहार में कंदों की मौजूदगी की वजह से उन्हें इस क्षमता की आवश्यकता भी होती है।
कई बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ सैल्यूलोज़ और ज़ाइलान को तोड़ सकते हैं।
गाय, भेड़, जिराफ और अन्य कुछ स्तनधारी जानवरों की आँतों में रूमेन नामक एक विशेष खण्ड होता है। रूमेन में वो सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जो पौधों के रेशों को तोड़ सकते हैं। यही इन स्तनधारियों को उनके आहार में बड़ी मात्रा में मौजूद पौधों के रेशों को पचाने की क्षमता प्रदान करता है।
हदज़ा समूह के लोगों की आँतों में इसी तरह के सूक्ष्मजीवों की मौजूदगी से भी इसी लक्ष्य की प्राप्ति होती है। यह सोचना अत्यन्त रोमांचक है कि हदज़ा लोगों की आँतों को वह सभी कुछ याद है जो हमारी आँतें भूल चुकी हैं। मुझे खुशी है कि हमें यह बात याद दिलाई गई।
चारुदत्त नवरे: होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन (एच.बी.सी.एस.ई.), मुम्बई में शोध के छात्र हैं। आइकेन चिकित्सा स्कूल, न्यू यॉर्क और एन.सी.एल, पुणे से शोध का अनुभव। उनके द्वारा तैयार की गई यह पुस्तक एकलव्य से शीघ्र प्रकाशित होने वाली है।
सभी चित्र: रेशमा बर्वे: अभिनव कला महाविद्यालय, पुणे से वाणिज्यिक कला में पढ़ाई। कई पुस्तकों का चित्रांकन किया है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।