सवाल: विविध कार्यक्रमों के दौरान गैस से भरे गुब्बारे छोड़े जाते हैं। मेरी जिज्ञासा यह है कि उन ऊपर जाते गुब्बारों का आगे क्या होता होगा?
जवाब: इस सवाल ने कई लोगों की बचपन की यादें ताज़ा कर दी होंगी। डोर टूट जाने या छूट जाने पर हवा में ऊपर जाता गुब्बारा कई बार रुला ही देता था। इसी तरह विविध आयोजनों के दौरान धागे से बँधे गैस गुब्बारों के गुच्छों की डोर काटकर उन्हें बन्धनमुक्त करना। मुझे याद पड़ता है मैं बचपन में उन ऊपर जाते गुब्बारों के पीछे दौड़ा भी हूँ, क्योंकि मुझे लगता था कि ये कुछ दूर जाकर नीचे टपकेंगे ज़रूर। लेकिन हर बार मुए नज़रों से ओझल हो जाते थे।
खैर, फिर एक बार जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं कि गैस से भरे गुब्बारों का आगे क्या होता होगा। दो-तीन सम्भावनाएँ नज़र आती हैं।
1. गुब्बारा ऊपर जाकर फूट जाता होगा।
2. गैस थोड़ी लीक होने से गुब्बारा धीरे-धीरे नीचे उतरने लगता होगा।
3. गुब्बारा एक खास ऊँचाई तक जाकर रुक जाता होगा। और ऊपर-नीचे होता हुआ कुछ समय के लिए वहाँ बना रहता होगा। फिर धरती पर वापस आता होगा।
पहली सम्भावना - गुब्बारा ऊपर जाकर फूट जाता होगा - के बारे में सोचते हुए, मान लीजिए गुब्बारा सतह से दो सौ मीटर ऊपर तक चला जाता है तो ऊपर की ओर जाने के साथ-साथ गुब्बारे के भीतर और बाहर के दबाव में अन्तर बढ़ता जाएगा क्योंकि बाहरी वातावरण का दबाव ऊँचाई बढ़ने के साथ लगातार कम होता जाता है। यानी कि गुब्बारे के भीतर का दबाव गुब्बारे के बाहर के दबाव से ज़्यादा होगा। ऐसी स्थिति में गुब्बारे के भीतर की गैस बाहर आने की कोशिश करेगी और गुब्बारा थोड़ा कमज़ोर हुआ तो फूट जाएगा। गुब्बारा मोटी-मज़बूत रबर का हुआ तो फूटने की नौबत तुरन्त नहीं आएगी। यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि गुब्बारे की ऊँचाई बढ़ने के साथ दबाव में अन्तर कितना बढ़ता है।
अब दूसरी सम्भावना पर गौर करते हैं। हो सकता है कि गुब्बारे का मुँह कसकर नहीं बँधा है, तब गुब्बारे में से गैस धीर-धीरे रिसती जाएगी और ऊपर जा रहा गुब्बारा धीरे-धीरे नीचे आने लगेगा।
एक और बात, फूले हुए गुब्बारे की रबर की खिंची हुई पतली परत में महीन छेद या सूक्ष्म छिद्र हो सकते हैं जिससे होकर गैस के अणु बाहर निकल सकते हैं। इस स्थिति में गुब्बारे से धीमी गति से ही सही लेकिन गैस का रिसाव होगा।
इस सवाल को पढ़कर मैंने एक मेले से गैस से भरे तीन गुब्बारे खरीदे। सभी गुब्बारे एकदम टाइट थे, और आसमान में उड़ने के लिए बेताब थे। मैंने एक गुब्बारे को धागे समेत छोड़ दिया। गुब्बारा पहले कुछ दूर ऊपर की ओर उठता हुआ जाता रहा, फिर शायद हवा के बहाव के कारण मुझसे दूर जाने लगा। कुछ देर मैंने खिलौना दूरबीन की मदद से गुब्बारे पर अपनी नज़र गड़ाए रखी। जब तक मैं उसे देख पाया, वह फूटा नहीं था। दूसरी बात जो मेरा अहसास भी हो सकता है, एक हद के बाद गुब्बारा और ऊपर उठता महसूस नहीं हुआ।
अब मैंने अपने पास बचे गुब्बारों में से एक गुब्बारे को दस फीट लम्बा धागा जोड़कर उसे छत की रेलिंग से बाँध दिया। गुब्बारे से बँधा धागा तना हुआ था। गुब्बारा थोड़ा यहाँ-वहाँ डोलता था लेकिन सिर ताने खड़ा था। मैंने तय किया कि इसे यूँ ही रहने दिया जाए, कुछ समय बाद फिर अवलोकन करना चाहिए।
गैस गुब्बारे हवा में उड़ते क्यों हैं? गैस गुब्बारे हवा में उड़ते क्यों हैं, यह सवाल काफी हद तक चीज़ें पानी में तैरती क्यों हैं जैसा ही है। इसलिए एक सामान्य-सी परिभाषा यहाँ भी दी जा सकती है - कोई वस्तु जो हवा से घिरी हो ऊपर की ओर तब तक उठती है, जब ऊपर उठाने वाला बल (उत्प्लावन बल) वस्तु द्वारा हटाई गई हवा के भार के कारण लगने वाले बल के बराबर हो जाता है। जैसा कि अक्सर कहा जाता है कि परिभाषाएँ कुछ गूढ़ होती हैं, इसलिए इस बारे में कुछ तफ्सील से चर्चा कर लेते हैं। पहले शुरू करते हैं हवा के भार से। सामान्य तापमान और वायुमण्डलीय दबाव पर एक घन मीटर हवा का भार 1250 ग्राम होता है। यानी कोई भी एक घन मीटर की वस्तु हवा में तिरेगी (buoyed), जब उसे ऊपर उठाने वाला बल 1250 ग्राम भार के बराबर हो। यदि वस्तु का भार 1250 ग्राम से ज़्यादा हुआ तो वस्तु को हवा में छोड़ते ही वह नीचे गिरेगी। यदि वस्तु का भार 1250 ग्राम से कम हुआ तो वस्तु हवा में ऊपर की ओर उठती जाएगी। |
तीसरे गुब्बारे का क्या करूँ सोचते हुए मैंने उसे घर के कमरे में छोड़ दिया। जैसे ही उसे छोड़ा, गुब्बारा छत (सीलिंग) से जा टिका। मैंने मन-ही-मन कहा -- बाद में देखते हैं बच्चू।
इसी बीच मुझे पहले कभी पढ़ा हुआ एक खेल याद आया।
इस खेल में गैस से भरे दो-तीन गुब्बारों को कमरे में छोड़ देते हैं। गुब्बारे कमरे की छत से टिक जाएँगे। अब, इंजेक्शन की सीरिंज में पानी भरकर निशाना साधकर गुब्बारों पर पानी की फुहार छोड़नी है। गुब्बारों पर पानी की कुछ बूंदें पड़ते ही वे नीचे आने लगते हैं। फर्श पर कुछ समय ठहर कर गुब्बारे फिर से छत की ओर जाने लगते हैं। इस खेल में कई नीचे आते गुब्बारे, बीच रास्ते से ही पलटकर फिर से ऊपर जाने लगते हैं या त्रिशंकु की तरह बीच में ही लटके रहते हैं।
मैंने कमरे वाले इस गुब्बारे के साथ यह खेल खेलकर देखा और लुत्फ भी उठाया। बिना इस बात की फिक्र किए कि ऐसा क्यों होता है।
वैसे आप भी यह बात समझ गए होंगे कि जब तक गुब्बारे पर पानी की बूंदें चिपकी रहती हैं, गुब्बारे का भार (गुब्बारा व पानी मिलाकर) गुब्बारे द्वारा हटाई गई हवा के भार से ज़्यादा रहता है। जैसे ही पानी वाष्पित होता है या बूंदें लुढ़ककर गुब्बारे से छिटक जाती हैं, गुब्बारे का भार पहले की तरह कम हो जाता है और गुब्बारा फिर से छत की ओर उठने लगता है।
रेलिंग से बँधे और कमरे में छोड़े गुब्बारे को मैंने अगले दिन जाकर देखा। कमरे वाला गुब्बारा नीचे गिरा हुआ था। गुब्बारा पिछले दिन की तरह टाइट नहीं था काफी नरम हो चुका था।
छत के रेलिंग से बँधा गुब्बारा भी लगभग नीचे पड़ा था। वो भी नरम हो गया था। यानी इन दोनों गुब्बारों में से गैस लीक हो गई थी।
अभी भी मैं ऐसा कोई तरीका नहीं सोच पा रहा हूँ जिसमें गुब्बारे को खुद ऊँचाई तक लेकर जाऊँ और इस बात को देख सकूँ कि गुब्बारा कम दबाव के हालात में फूटता है या नहीं। जिस जगह मैं गुब्बारे सम्बन्धी प्रयोग करके देख रहा हूँ उसकी ऊँचाई समुद्र सतह से लगभग 300 मीटर है। यहाँ हवा का दबाव 734 मि.मी. पारे के बराबर है। यदि गुब्बारा 50 मीटर ऊँचाई तक जाता है यानी 350 मीटर की ऊँचाई पर चला जाए तो इस ऊँचाई पर हवा का दबाव 730 मि.मी. पारे के बराबर होगा (इन ऊँचाइयों के लिए हवा के दबाव की गणना मैंने : http://www.altitude.org वेबसाइट पर मौजूद केल्कुलेटर की मदद से की है। इसमें किसी जगह के अक्षांश-देशान्तर, हवा के तापमान, हवा में नमी आदि को ध्यान में रखा है या नहीं, मालूम नहीं।)। यानी, अन्तर तो है लेकिन इस अन्तर से गुब्बारा फूटेगा या नहीं इसे जानने का फिलहाल मुझे कोई तरीका नहीं सूझ रहा है। यदि आप मेरी कुछ मदद कर पाएँ तो प्रयोग को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
इस जवाब को माधव केलकर ने तैयार किया है।
माधव केलकर: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
इस बार के सवाल सवाल: बारिश होने पर मिट्टी में से एक खास तरह की गन्ध आती है, क्या आप इसकी वजह बता सकते हैं? |