यशस्वी द्विवेदी [Hindi PDF, 104 kB]
योगेश (11 वर्ष) बहुत ही चंचल है मगर जब वह कुछ करता है तो पूरा ध्यान उसी काम में लगाता है। अपने दोस्तों के साथ खूब मस्ती करता है, साथ ही अपनी कल्पना में लगातार आगे बढ़ रहा होता है।
उसे चित्र बनाना बहुत पसन्द है। चहक के कहता है - ये बनाता हूँ, वो बना दूँगा। हमेशा कहता रहता है कि “आप आना मैं और भी सोचकर बनाऊँगा” और शु डिग्री हो जाता है। कुछ लाइन खींचता है अधूरी-सी और उसकी कला हर पल नई-नई कहानी के रूप में आगे बढ़ने लगती है। वह हर बात को दो-तीन तरह से बताता है क्योंकि उसकी नज़र में तो मुझे गुजराती समझ नहीं आती।
विविध चित्र और तर्क
जब वह चित्र में एक छोटे बच्चे को फुटबॉल खेलते हुए बनाता है तो वह बच्चा फूल सूँघता है, गुब्बारा उड़ाता रहता है। छोटी बेबी बनाता है और जब उस बेबी के पैर नहीं दिखते तो तर्क देते हुए कहता है कि “अरे छोटा-छोटा पग है न छोटी बेबी का, तो पैर मोड़कर सो गई है।”
अपनी मछली को उसने छोटे लोटे के अन्दर इसलिए डाल दिया क्योंकि वह घास पर बेचारी अकेली ही टहल रही थी।
थोड़ी देर सोचने के बाद वह दौड़कर कोने में गया और कुछ बनाया। फिर असीम खुशी के साथ दिखाया कि उसने मछलियों के लिए घर बनाया है जिसमें खूब सारी मछलियाँ इसलिए साथ में रहती हैं क्योंकि अकेले तो वे बोर हो जाएँगी। उसने मछलियों के लिए दरवाज़ा भी बनाया ताकि जब मछलियों का मन नहीं लगे तो वे उसे खोलकर घूमने जा सकें।
उसके घर में खूब सारे हाथी हैं। सब अलग-अलग कमरे में रहते हैं, और उनके पंख भी हैं। मेरे पूछने पर कि क्या वह उन हाथियों के पास जाता है, सीधा-सा जवाब मिला -- “नहीं। वे तो अभी बहुत छोटे हैं। मगर मम्मी रोज़ जाती हैं उनके कमरों में।”
दो तिरछी मोटी लाइनें उसके हाथी का एक पैर है। मैंने पूछा, “और बाकी पैर कहाँ हैं?” तो उसने बताया, “हाथी उधर जा रहा था न तो बाकी पैर झाड़ के पीछे छुप गए हैं।”
तीन तरफ से घिरी एक लाइन को वह लड़की कहता है और एक छोटा-सा बिन्दु उसका वह तरबूज़ है जिसे खरीदने के लिए बगल में एक लड़की खड़ी है। उसने दो मिनट तक सोचा और दुखी होकर कहने लगा, “इसके पास तो पैसे ही नहीं हैं खरीदने के लिए। लेकिन टीचर वह दौड़कर पैसे माँगने अभी घर जाएगी।” फिर वही तीन लाइनें जो उसके लिए लड़की थीं, तुरन्त उस छोटी बच्ची का घर बन गईं।
मैंने भी उसकी कल्पना में समाहित हकीकत को समझने के लिए बात को कुछ इस तरह आगे बढ़ाया, “अब तुम वो सोचकर बनाओ जो अभी तक नहीं बनाया है।” चुटकी बजाकर उसने शुरुआत की, दिल के अन्दर झूला बनाने से और कुछ इस तरह हमारी बातें आगे बढ़ीं।
योगेश - मैं न दिल में झूला बनाता हूँ टीचर।
मैं - दिल में?
योगेश - हाँ, देखना आप (कुछ समय बाद वह वापस आया)। यह दिल है और उसमें झूला है। और पता है यह दिल का छोटा बच्चा है। अच्छा है न?
मैं - हाँ।
योगेश - ये दोनों खो गए थे। बहुत दिनों के बाद मिले हैं इसलिए सजे हुए हैं।
फिर वह एक गोला बनाने लगा तो मैंने पूछा, “क्या बना रहे हो योगेश?”
योगेश - चन्दा मामा।
वह आँखें बनाकर आस-पास लकीरें खींचने लगा। मैंने पूछा, “यह क्या है?”
वह बोला, “शान्ति से बैठो। मैं समझा देता हूँ आपको...यह लड़की है।”
मैं - मगर अभी तो ये चन्दा मामा थे न?
योगेश - हाँ, मगर वो भी तो पहले छोटे थे न, बाद में बड़े हो गए।
कुछ देर तक उसी चित्र को देखते हुए लकीरों को दिखाकर बोला, “यह छोटी लड़की है, डांस सीखने जा रही है, और....ये पूरे बाण (तीर) लड़की को मारने आ रहे हैं और वह चिल्ला रही है - बचाओ-बचाओ।” फिर वह चिन्ता में पड़ गया। एकदम चुप होकर बोला, “अब कैसे बचेगी वह?”
और तुरन्त दूसरी तरफ एक सीधी बड़ी लाइन खींची और चिल्लाकर खुशी से बोला, “बच गई - बच गई, निकल गई लड़की टीचर” और दूसरी तरफ फटाफट दूसरी लड़की बनाई और पियानो भी।
मैं - ये लड़की क्या कर रही है?
योगेश - ये दीवानी लड़की है, पियानो बजा रही है। संगीत सिखाती है।
बगल में दूसरी लड़की बनाकर कहा, “यह वाली भी पियानो सीखने जा रही है उसके पास।” इसके बाद सफरजन के पास खूब सारी छोटी-छोटी लकीरें बनाईं।
मैं - अरे ये क्या हैं?
योगेश - सफरजन हैं, वे जो दिवाली में पटाखे बजाते हैं तो जो उसके छोटे-छोटे तन निकलते हैं न। उसके तन से जो विश (दुआ) माँगते हैं वो पूरी हो जाती है।
मैं - अच्छा आप माँगते हो?
योगेश - हाँ...।
मैं - पूरी हुई?
योगेश - (थोड़ी देर चुप) हाँ, कभी-कभी तो हुई थी।
“यह देखो, यह छोटी-सी नदी है और दोनों तरफ सीढ़ी हैं। छोटी नदी में छोटी मछली है। सीढ़ी से चढ़कर आती है, नदी में खूब नहाती है और फिर इस सीढ़ी से बाहर चली जाती है - सूखने के लिए।”
फिर वह बाहर चला गया पानी पीने, यह वादा लेकर कि आप कल ज़रूर आओगी।
बच्चों की कल्पनाएँ कितने रूप ले सकती हैं, इसका अन्दाज़ा लगाना भी कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। लेकिन योगेश से बात करके मुझे यह ज़रूर समझ में आया कि बच्चों की कल्पनाओं की उड़ान हमारी कल्पना से बहुत आगे तक जाती है।
यशस्वी द्विवेदी: पत्रकारिता में पढ़ाई। बच्चों और समुदाय के साथ काम करने में गहरी रुचि। वर्तमान में स्वयं सेवी संस्था, कैवल्य एजुकेशन फाउंडेशन, अहमदाबाद के साथ काम कर रही हैं।