मोहम्मद उमर [Hindi PDF, 129 kB]

जमील सर राजस्थान के टोंक ज़िले के सरकारी विद्यालय में शिक्षक हैं। पिछले साल गणित शिक्षण पर हुई कई कार्यशालाओं में उनके साथ मुलाकात होती रही थी। एक-दो बार उनके विद्यालय भी जाना हुआ। गणित सीखने-सिखाने में उनकी खासी रुचि है। गणित की एक कार्यशाला में भिन्न शिक्षण के तरीकों पर मैंने एक सत्र लिया था, जमील सर भी वहाँ मौजूद थे। उन्हें ‘बराबर बँटवारा’ के तरीके से भिन्न सिखाने का यह तरीका बहुत पसन्द आया था। उन्होंने अपने स्कूल जाकर बच्चों के साथ यह तरीका अपनाया। लम्बे समय बाद एक दिन मुझे उनका फोन आया। वे भिन्न संख्याओं में किए जाने वाले भाग के सवाल को लेकर परेशान थे। उन्होंने जो समस्या सामने रखी वह इस प्रकार थी।

“3/2 +1/2 को हल करने के लिए हम 1/2 को उल्टा करके भाग के सवाल को गुणा के सवाल में तब्दील कर लेते हैं।
इस तरह उत्तर तो हमें मिल जाता है लेकिन यह समझ नहीं आता कि आखिर यह उत्तर क्यों और कैसे आया, न मुझे और न ही बच्चों को। क्या इसे समझने का कोई आसान तरीका नहीं है?”

आमतौर पर जो सामान्य तरीका अपनाया जाता है वह कुछ इस तरह है -

उनके सवाल पर गौर करें तो हम पाएँगे कि यह समस्या बहुत व्यापक है। हम जानते हैं कि भाग के सवालों को हल करने में सवाल में छिपा सन्दर्भ बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। 

बतौर उदाहरण अगर हम 20 + 4 को लें और सवाल को सन्दर्भ देने की कोशिश करें तो कह सकते हैं कि अगर हमारे पास 20 रोटियाँ हैं और उसे 4 लोगों में बराबर-बराबर बाँटा जाए तो हर एक को कितनी रोटियाँ मिलेंगी?
इस तरह हम पाते हैं कि हर एक के हिस्से 5 रोटियाँ आ रही हैं।

अब अगर हम भाग के सवाल हल करने के अपने इसी अनुभव को भिन्न संख्याओं की भाग क्रिया पर लागू करना चाहें तो क्या परिस्थिति बनेगी?
हमारा सवाल है: 3/2 1/2
हमें पहले समझना होगा कि आखिर सवाल क्या कह रहा है। क्या हम इस सवाल को भी पहले सवाल की तरह ही कोई सन्दर्भ दे सकते हैं?
थोड़ा मुश्किल है, नामुमकिन नहीं। हमारी पारम्परिक कक्षाओं में भिन्न संख्याओं को कैसे पढ़ाया जाता रहा है?
3/2, ये अनुचित भिन्न है। इसे उचित भिन्न में बदलना होता है।
इसे मिश्र भिन्न कहा जाता है।
अब इसी सवाल को यूँ भी लिखा जा सकता है।
“तो 1 1/2 को 1/2 में बराबर-बराबर बाँटना है।”
बात कुछ बन नहीं रही। पूर्ण संख्याओं के भाग में जो अर्थपूर्ण भाव आ रहा था, वह यहाँ नदारद है। जब तक सवाल अपना अर्थ नहीं अभिव्यक्त कर देता, अपनी समस्या को सामने नहीं रख पाता, तब तक हल की बात सोचना भी बेमानी है।
भिन्न को हम अपनी कक्षाओं में जिस तरह पढ़ाते आए हैं उस तरीके से समझें। डेढ़ चीज़ों को आधे लोगों में बराबर-बराबर बाँटना है।
आप देख सकते हैं कि सवाल बन नहीं रहा है। कुछ गड़बड़ है। अब एक और तरीके से इसी सवाल को देखते हैं। यहाँ हम भिन्न संख्याओं के मात्रात्मक भाव को समझने के लिए ‘बराबर बँटवारा’ के तरीके को प्रयोग में लेंगे। शायद जमील सर की समस्या का समाधान कुछ हद तक यहाँ मिल जाए।
3/2 + 1/2
इस तरीके में 3/2 का मतलब है; तीन रोटी को दो लोंगों में बराबर- बराबर बाँटा गया तो हर एक को मिलने वाला हिस्सा होगा एक पूरी रोटी और एक आधी। इसी प्रकार से एक रोटी को दो लोगों में बराबर-बराबर बाँटा गया तो हर एक को मिलने वाला हिस्सा होगा 1/2 यानी आधी-आधी रोटी।
मान लेते हैं कि हमारे पास एक साँचा है जिसकी बनावट आधी रोटी जैसी है। अब यदि हम एक रोटी पूरी-पूरी ले लें और एक रोटी का आधा हिस्सा लें तो कुल मिलाकर हमारे पास डेढ़ रोटी हो जाएँगी।
इन डेढ़ रोटियों को इस साँचे की मदद से मापते हैं। मेरा मतलब साँचे की मदद से रोटी काटकर निकालते जाते हैं और देखते हैं कि कितनी बार में यह साँचा डेढ़ रोटी को पूरा-पूरा माप लेता है। 
डेढ़ रोटियों को साँचे में भरने पर हमने पाया कि हमारा साँचा, जो कि आधी रोटी की क्षमता वाला था वह 3 बार पूरा-पूरा भरा जा सका। इस साँचे ने डेढ़ रोटियों को तीन बराबर-बराबर टुकडों में हमारे सामने ला दिया है। इसे यूँ भी देखा जा सकता है कि डेढ़ रोटी में से हम 3 बार आधी-आधी रोटी प्राप्त कर सकते हैं।
इस तरह हमें उत्तर 3 मिल रहा है। यहाँ यह समझना ज़रूरी है कि 1/2 से भाग देने के दौरान हमारी मापक इकाई 1 न होकर 1/2 थी। अत: उत्तर में प्राप्त होने वाला 3 यह कतई नहीं बता रहा कि इस सवाल का उत्तर तीन रोटियाँ हैं। हम जानते हैं कि आधी रोटी की क्षमता वाले हमारे साँचे में हम डेढ़ रोटियों को कुल तीन बार ही भर पाए थे, और हर बार आधी-आधी रोटी ही भरी जा सकी थी।
इसका मतलब उत्तर में प्राप्त 3 बता रहा है कि हमें 3 बार आधी-आधी रोटियाँ प्राप्त हुई हैं। इस तरह उत्तर में मिला 3 असल में कुल ‘डेढ़ रोटियों की मात्रा’ को ही अभिव्यक्त कर रहा है।

जबकि इसी सवाल को जब हम गुणा में तब्दील करके हल करते हैं तो हम 3/2 को ‘दोगुना’ कर रहे हैं। यानी ‘डेढ़’ रोटियों का ‘दोगुना’ जो कि तीन बनता है। इस तरह यहाँ प्राप्त होने वाला 3 ‘तीन पूरी रोटियों’ के लिए है।

3/2 % 1/2
= 3
इस उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि सवाल को आसानी से हल कर लेने के लिए उसमें की गई छेड़खानी न सिर्फ सवाल को समझने में बाधा उत्पन्न कर रही है, बल्कि प्राप्त होने वाला उत्तर भी वह कतई नहीं है जो उसे वास्तव में होना चाहिए। मेरा मानना है कि हम सभी को अपनी कक्षाओं में भिन्न संख्याओं पर काम करने के तरीकों पर पुनर्विचार करना चाहिए।


मोहम्मद उमर: अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन, जयपुर में कार्यरत।