बाल फोंडके [Hindi PDF, 60 kB]
किसी भी व्यक्ति को हम उसके चेहरे से पहचानते हैं। एक ही शक्ल वाले जुड़वाँ लोगोंें को छोड़कर आम तौर पर हूबहू एक-सी शक्ल वाले दो इन्सान नहीं पाए जाते। इसलिए पहचान के लिए केवल चेहरा देख लेना पर्याप्त होता है। किन्तु काफी समय बीत जाने पर यदि कोई परिचित व्यक्ति हमारे सामने आए तो हम उसकी तरफ बिना किसी हावभाव के देखते रहते हैं, एकदम पहचान नहीं पाते हैं। हो सकता है हमारी याददाश्त धुँधली हो जाती है या फिर उम्र के साथ उस व्यक्ति के चेहरे में परिवर्तन हो जाते हैं।
इस सबके बावजूद, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, यहाँ तक कि बैंक खाते के पहचान पत्र पर भी फोटो पहचान को ही अपनाया जाता है। कई दफा सही इन्सान की शिनाख्त दस्तखत से या जो लोग लिख नहीं सकते उनके बाएँ अँगूठे की छाप से की जाती है।
हो सकता है अँगूठे की छाप को आप हिकारत के साथ निरक्षरता से जोड़ने लगें लेकिन मौजूदा दौर की यह एक हकीकत है कि व्यक्ति की पक्की पहचान के लिए फोटो के अलावा जैवमितीय पहचान के तत्वों को ज़्यादा तवज्जो दी जा रही है। इसका कारण यह है कि किसी भी व्यक्ति की पक्की पहचान करने के लिए अब जैवमिति यानी बायोमेट्रिक प्रणाली का उपयोग होने लगा है। यदि किसी जीवधारी के किसी गुणधर्म का मापन किया जा सके तो उसे उसका जैवमितीय गुणधर्म कहते हैं। किन्तु यह भी ज़रूरी है कि यह मापन वस्तुनिष्ठ हो और सटीक हो। इसके लिए ज़रूरी है कि मापन मशीन से किया जाए। मापन ऐसा हो कि आसानी से किया जा सके। साथ ही, इस गुणधर्म के मापन का आधार केवल एक हो और उसमें उम्र के साथ बदलाव न होता हो। इतना ही नहीं, शल्यक्रिया या अन्य किसी तरीके से उसमें बदलाव करना सम्भव न हो। यदि उस गुणधर्म को चुराना सम्भव हो तो ऐसा गुणधर्म भी पहचान के लिए उपयुक्त नहीं है।
आइए, हम कुछ जैवमितीय पैमानों को थोड़ा गहराई से समझने की कोशिश करते हैं।
उँगलियों के निशान
उँगलियों के निशानों को आधुनिक जैवमितीय प्रणाली माना जा सकता है। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में सर फ्रांसिस गाल्टन के द्वारा विकसित की गई यह प्रणाली आज भी उपयोग में लाई जा रही है। हमारी उँगलियों की त्वचा के आन्तरिक स्तरों में होेने वाले घर्षण के कारण उनके ऊपर महीन रैखीय पैटर्न या निशान बन जाते हैं। जब बच्चा गर्भ में होता है, तभी इनका बनना शु डिग्री हो जाता है और गर्भस्थ शिशु के चार महीने के होने पर ये बिलकुल स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। इनकी विशेषता यह है कि एक बार बन जाने पर ये बदलते नहीं हैं। गर्भ में स्थित यह नन्हा-सा शिशु छ: फुट का आदमी बन जाए, तो भी इन पैटर्न या निशानों की बनावट में कोई अन्तर नहीं आता। आयु बढ़ने के बाद त्वचा ढीली हो जाने पर भी इनकी जमावट वैसी ही बनी रहती है। यदि उँगलियों के भीतरी हिस्से पर चोट लगने से चमड़ी छिल जाए तो भी नए निशान ठीक वैसे ही होते हैं जैसे वे चोट लगने से पहले थे।
उँगलियों की छाप संसार के हर व्यक्ति के लिए अलग होती है। अब तक होता यह था कि उँगलियों की छाप के विशेषज्ञ इन निशानों की बनावट के आधार पर लोगों की पहचान करते थे। अब कम्प्यूटर की सहायता से इनका विश्लेषण करना सम्भव हो गया है। इसलिए जब आप किसी देश में प्रवेश करते हैं तब आव्रजन अधिकारी आपको अपनी हथेली एक मशीन पर रखने के लिए कहता है। उँगलियों के निशानों की तुलना पासपोर्ट पर बने निशानों से करके यह मशीन आपकी पहचान स्थापित करती है।
हथेली की बनावट
कुछ साल पहले तक उँगलियों के निशान, यह एकमात्र भरोसेमन्द जैवमितीय प्रणाली थी। किन्तु अब अन्य प्रणालियाँ विकसित हो गई हैं। कुछ संस्थानों द्वारा हथेली की बनावट को जैवमिति के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। हथेली पर उभरे हुए और दबे हुए भाग, उँगलियों और हाथ के बीच बनने वाले कोण, उनके बीच की दूरियाँ, हथेली के बाजू के भागों के एक-दूसरे से बनने वाले कोण आदि की जाँच कम्प्यूटर द्वारा की जा सकती है। अत: इनका उपयोग भी जैवमितीय निशानों के रूप में किया जा सकता है। किन्तु यह अभी निश्चित रूप से पता नहीं लग पाया है कि क्या किसी व्यक्ति की हथेली की बनावट इतनी अनोखी हो सकती है कि उसका उपयोग स्पष्ट पहचान के लिए किया जा सके। इसके अलावा, यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि आजीवन हाथ की बनावट में कोर्ई परिवर्तन नहीं होता।
साठ-सत्तर साल पहले यह पता चल गया था कि हथेली के अन्दर रक्त नलिकाओं का जो जटिल और उलझा हुआ जाल होता है वह भी हर व्यक्ति के लिए अनोखा होेता है। यदि हथेली पर अवरक्त (इन्फ्रारेड) किरणें डाली जाएँ तो ये रक्त नलिकाएँ काले रंग की दिखाई पड़ती हैं और इनकी बनावट की फोटो भी ली जा सकती है। रक्त नलिकाओं के पैटर्न को पढ़ सकने वाली मशीन पर हथेली रखना पर्याप्त होता है। रक्त नलिकाओं की यह बनावट स्थाई होती है और इसमें कोई परिवर्तन करना सम्भव नहीं होता, न इसकी नकल की जा सकती है। आजकल कई स्थानों पर इस प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है।
आँखों में रक्तनलियों का जाल
रक्त नलिकाओं का इसी प्रकार का अनोखा जाल आँखों में भी पाया जाता है। आँख के जिस परदे पर चित्र उभरता है उसे रेटिना कहते हैं। रेटिना में रक्त पहुँचाने वाली नलिकाओं का जाल भी आजीवन स्थाई रहता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। इस जाल की बनावट हर व्यक्ति में अनोखी होती है। मोतियाबिन्द का ऑपरेशन होने पर भी इस जाल में कोई परिवर्तन नहीं होता। यदि मध्यम तेज़ रोशनी को विशेष प्रकार से आँख पर घुमाया जाए तो इस जाल की बनावट की फोटो ली जा सकती है। आजकल इस जाल को कम्प्यूटर द्वारा पढ़ना सम्भव हो जाने से इसका अधिक उपयोग होने लगा है।
आँख के तारे के इर्द-गिर्द पाए जाने वाले गहरे रंग के घेरे (पुतली) पर बनी सिलवटें, रंगीन वृत्त और इन वृत्तों में पाए जाने वाले काले धब्बों की बनावट भी हर व्यक्ति में अनोखी होती है। इनका वाचन भी आँख पर हल्की रोशनी डाल कर किया जा सकता है। यह माना जा रहा है कि रेटिना की रक्त नलिकाओं की बनावट की तुलना में यह प्रणाली अधिक अचूक है। अनेक देशों ने इसका उपयोग पासपोर्ट-वीसा में शुरू किया है।
इस विधि में मशीन द्वारा खींची गई पुतली की फोटो की तुलना पासपोर्ट पर लगी व्यक्ति की आंखों की फोटो से की जाती है। इस तरह के जैवमितीय पासपोर्ट देना कुछ देशों ने शु डिग्री कर दिया है। यह कोशिश की जा रही है कि आगामी कुछ वर्षों में सभी देश इस प्रणाली पर आधारित पासपोर्ट जारी करें।
जैवमितीय प्रणाली के उपयोग को बढ़ावा मिलने के कई कारण हैं। पहला, किसी व्यक्ति की अचूक पहचान करने के लिए इससे अच्छा कोई निशान नहीं है। दूसरे, इसका वाचन स्वचालित कम्प्यूटर-आधारित मशीन से होने के कारण यह पूरी तरह वस्तुनिष्ठ है। इस पर किसी पूर्वाग्रह का असर नहीं होता। तीसरा, सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस पहचान के निशान की चोरी नहीं हो सकती, यह हमेशा व्यक्ति के साथ रहता है और इसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।
जैवमितीय यंत्र से रेटिना या पुतली की बनावट की नाप-जोख की जाती है। यह सारी जानकारी कम्प्यूटर को दी जाती है और उस बनावट का डिज़िटल चित्र बनाया जाता है। इस चित्र को बारकोड में बदला जाता है, ठीक वैसा ही बारकोड जैसा किसी चीज़ की कीमत दर्शाने के लिए उसके आवरण पर छपा होता है। इस बारकोड को पासपोर्ट या अन्य किसी पहचान पत्र पर भी छापा जा सकता है।
आजकल किन्हीं खास हालात में पहचान के लिए डीएनए की बनावट का उपयोग भी किया जाता है। इन निशानों का चित्र भी बारकोड के समान ही दिखाई देता है। यह भी एक जैवमितीय प्रणाली ही है। किन्तु इन निशानों को पढ़ने के लिए उस व्यक्ति के विशेष सहयोग की आवश्यकता होती है। उसके मुँह के भीतर की त्वचा पर रूई का फाहा घुमाकर या खून का नमूना लेकर उसमें से डीएनए के रेशे अलग किए जाते हैं। किन्तु अन्य जैवमितीय निशानों की जाँच के लिए इतने ताम-झाम की ज़रूरत नहीं होती। उस व्यक्ति के शरीर को हाथ लगाए बिना यह जाँच की जा सकती है। इसीलिए, अचूक पहचान का निशान बायाँ अँगूठा, ना-ना, बाँई आँख बन गर्ई है - बिलकुल खुल जा सिमसिम की तरह।
बाल फोंडके: जाने-पहचाने विज्ञान लेखक, हिन्दी में काफी विज्ञान गल्प भी लिखे हैं। साइन्स टूडे, विज्ञान प्रगति एवं साइन्स रिपोर्टर आदि पत्रिकाओं का सम्पादन किया है। विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में उल्लेखनीय योगदान। - स्रोत फीचर से साभार