किशोर पंवार                                                                                                                                        [Hindi PDF, 324 kB]

पिछले साल का वाकया है। मेरे शहर में सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा था। होलकर कॉलेज का बगीचा भी इससे अछूता न रहा। कई बड़े-बड़े पेड़ कटे। इनमें एक ऐसा भी था जिसे मैं पिछले 25 सालों से देख रहा था। 25 सालों बाद इस पर पहली बार फूल आए, तब हमें पता चला कि हम जिसे गुलमोहर समझ रहे थे, वह तो कोलविलिया रसीमोसा (Colvillea racemosa) का वृक्ष है। बहुत सुन्दर, नारंगी-लाल रस भरे फूलों का मालिक। पुष्प गुच्छ एक-एक फीट लम्बे। मगर इसमें फूल आए ही थे कि यह विकास की भेंट चढ़ गया। इन्दौर में सम्भवत: इस प्रजाति का यह अकेला पेड़ था।
खैर, कोलविलिया तो नहीं रहा परन्तु उसके कटने के बाद जो मिट्टी का ढेर लग गया था उस पर बारिश के मौसम में तरह-तरह के छोटे पौधे उग आए थे। इनमें गुलतेवड़ी, पुवाड़ियाँ, कनकव्वा और छोटे-छोटे अरण्डी के पौधे भी थे। इनमें से किसी भी पौधे पर फूल नहीं थे। एक दिन मैंने पाया कि एक बादामी-काली-सी तितली इन पौधों पर मण्डरा रही है। यह तितली बड़ी तेज़ी से इधर-उधर डोल रही थी। मैंने सोचा कि यह कहीं बैठे तो ज़रा इसके पास जाकर उसके रंग-रूप का जायज़ा लिया जाए। परन्तु उस दिन मुझे यह मौका नहीं मिला।

कुछ दिनों बाद ऐसी ही एक-दो तितलियाँ घर के पास पुवाड़ियाँ के पौधों पर मण्डराती दिखाई दीं। मैंने तुरन्त कैमरा लेकर मोर्चा सम्हाला। यह ऐंगल्ड केस्टर नामक तितली थी। उड़ते समय यह कभी पीली, कभी काली दिखती थी। परन्तु जब इसे बैठे देखा तो पता चला कि यह तो नारंगी रंग की है जिस पर गहरे बादमी-काले रंग की लहरदार पट्टियाँ हैं। ये धारियाँ भी सीधी नहीं कोणीय हैं। इसका धड़ नारंगी-बादामी रंग का है और दो बड़े काले एन्टीने इसके मुँह पर लगे हैं। आगे के पंखों के किनारों पर एक-एक हल्के पीले रंग के छोटे-से बिन्दु भी स्पष्ट दिखाई देते हैं।

अरण्डी की पत्तियों पर मौजूद डबल-डेकर बस जैसा लार्वा। ऐंगल्ड केस्टर बटरफ्लाई अपना जीवन चक्र अरण्डी के आस-पास ही पूरा करती है।

इस तितली का पीछा करते हुए मेरी नज़र अचानक एक अरण्डी के पौधे पर पड़ी जिसकी पत्तियाँ अत्यधिक कुतरी हुई थीं। पत्तियों के नाम पर केवल मोटी-मोटी 6-7 शिराएँ ही बची थीं। इन पत्तियों पर मुझे हरे-पीले, छोटे-बड़े, लम्बे, कँटीले लार्वा रेंगते नज़र आए। ये इसी ऐंगल्ड केस्टर के लार्वा थे जो अरण्डी के पत्तों की कुतराई कर रहे थे। ये लार्वा सुन्दर, विचित्र एवं रंग-बिरंगी डबल-डेकर बस जैसे दिखते हैं। इस डबल-डेकर की निचली मंज़िल पूरी एक-सार हरी है और ऊपरी मंज़िल काले-पीले डिब्बों की-सी बनी होती है। जहाँ-जहाँ शरीर पर खण्ड हैं, वहाँ-वहाँ से शाखित, रोएँदार कटीली रचनाएँ निकलती हैं; हरी से हरी और काली से काली। पूरी इल्ली के ऊपर की ओर दो सुनहरी पीली धारियाँ इसे और आकर्षक बनाती हैं। छोटे लार्वा के शरीर के ऊपरी हिस्से में काले पट्टे दो-तीन ही होते हैं परन्तु बड़े लार्वा में इनकी संख्या ज़्यादा होती है।

तितलियों के प्यूपा अकसर पत्ती या टहनियों के नीचे छिपे मिलते हैं परन्तु, इसका प्यूपा तो मुझे पत्ती के ऊपर, बीचों-बीच लगा मिला। शुरुआत में तो यह हरा होता है पर बाद में काला पड़ जाता है।

अरण्डी के पत्ते से चिपका प्यूपा। खोल का सँकरा सिरा पत्ते से चिपका हुआ है। ध्यान से देखेंगे तो खोल पर एक निशान भी दिखाई दे रहा है।

प्यूपा की बनावट बड़ी सुन्दर होती है। इसके ऊपरी सिरे पर एक काला-सा विशेष चिन्ह बना दिखाई देता है, कुछ-कुछ फैंटम की अँगूठी जैसा या कोबरा के फन जैसा। कुछ नई मुलायम पत्तियाँ पलटीं तो इसके सफेद रंग के सुन्दर अण्डे भी मिल गए। सभी अण्डे पत्ती की निचली सतह पर ही चिपके थे जिनके ऊपर सूरज की किरणों की तरह सफेद रचनाएँ निकली हुई थीं। इसके अण्डे एक कँटीली छोटी-सी गेंद-से दिखते हैं। ऐंगल्ड केस्टर के लार्वा, प्यूपा और अण्डे सब मिल गए। परन्तु अण्डों के बनने के लिए दो तितलियों का मिलना भी तो ज़रूरी है। नर-मादा तितलियों का यह मिलन भी अरण्डी के आस-पास ही होता है।

ऐंगल्ड केस्टर का जीवन चक्र ऐसे ही केस्टर के पौधे पर पूरा होता है। इसलिए इस तितली और इस पौधे का रिश्ता, एक पौधा-एक जीव जैसा है। यह तितली यूँ तो आस-पास पुवाड़ियाँ पर या लैंटाना पर बैठी दिख जाएगी परन्तु अपने अण्डे देने के लिए यह अरण्डी के पौधों को ही ढूँढ़ती है। यदि अब आपको कहीं ऐंगल्ड केस्टर तितली दिखाई दे तो यह निश्चित मानिए की अरण्डी (केस्टर) के पौधे भी आस-पास ही कहीं होंगे।


आलेख एवं फोटोग्राफ: किशोर पंवार: होल्कर साइन्स कॉलेज, इन्दौर में वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक। विज्ञान लेखन एवं शैक्षणिक नवाचार में रुचि रखते हैं।