लेखक : रॉब वाईमैन
अनुवाद: दीपक वर्मा
कुछ प्रयासों और एक अचरज ने शिक्षक को जब प्रेरित किया तो उसे पता चला कि गणित सीखने में बाधा सिर्फ एक धारणा डाल रही है। इस धारणा की खोज ने न सिर्फ उसे अपने शिक्षण को नए तरीके से देखने में मदद की बल्कि लगातार ऐसे प्रयास करने को प्रेरित किया जिससे कि वह इस धारणा को सम्बोेधित कर सके। एक अमरीकी हाईस्कूल शिक्षक के अनुभव।
कई सालों से मैं गणित पढ़ा रहा हूँ लेकिन फिर भी बार-बार अपनी उस सोच में फँस जाता हूँ जिसके तहत मुझे लगता है कि मेरे विद्यार्थी भी उसी तरह सोचते हैं जैसा कि मैं। अगर कहूँ तो मेरे शिक्षण की असफलता की जड़ एक तो इस सोच का हावी हो जाना है और दूसरा इस सोच को नकारने के प्रति सजग न रह पाना कि लोग मेरे अनुसार नहीं सोचते। और जब भी मैं अपनी इस धारणा के प्रति सजग हो जाता हूँ और यह मानने लगता हूँ कि विद्यार्थी किसी स्थिति को अलग-अलग दृष्टि से देख सकते हैं तो मैं कक्षा में सक्रिय हो उठता हूँ। अगर मैं इस वक्त अपना प्रतिबिम्ब देखूँ तो पाता हूँ कि मैं भिन्न-भिन्न प्रकार से शैक्षणिक सामग्री का इस्तेमाल कर रहा होता हूँ। अपनी कक्षा की रूपरेखा या संरचना को इस तरह ढाल रहा होता हूँ जो शिक्षण को, और खास तौर से गणित को लेकर मेरी सोच के अनुरूप हो। एक छोटी-सी घटना से यह बात ज़्यादा स्पष्ट हो जाएगी।
नोट्स लेने का मेरा आग्रह
कुछ साल पहले मैंने इस बात पर गौर किया कि विद्यार्थी कक्षा में न तो नोट्स लेते हैं और न ही उनका इस्तेमाल करते हैं। जबकि मेरी शिक्षण पद्धति इस पर आधारित है कि वे सीखने की प्रक्रिया में नोट्स को मुख्य स्रोत की तरह इस्तेमाल करेंगे। मैंने काफी कोशिश भी की, नोटस के महत्व को रेखांकित करने की। जब भी वे मुझसे किसी भी बात की व्याख्या करने को कहते या समझाने को कहते, मैं उनसे अपने नोट्स का सहारा लेने को कहता। यहाँ तक कि क्विज़ और टेस्ट के दौरान भी मैं उन्हें नोट्स का इस्तेमाल करने देता। इसके बाद भी मैंने पाया कि बहुत कम विद्यार्थी नोट्स लेते थे। उनके भी नोट्स ऐसे नहीं होते कि उनका बाद में सन्दर्भ या रिसोर्स की तरह इस्तेमाल हो सके।
तब मैंने तय किया कि एक हफ्ता लगाकर उन्हें नोट्स लेने के सही तरीके सिखाऊँगा। उनके समक्ष मैंने नोट्स लेने के कई तरीके प्रस्तुत किए। उन्होंने आपस में काफी बातचीत भी की कि कौन-सा तरीका बेहतर है। हमने आपस में मिलकर उन पैमानों को निर्धारित किया जिनके आधार पर हम तय करेंगे कि कौन-से नोट्स अच्छे माने जाएँगे। हमने नोट्स लेने के विभिन्न तरीकों को आज़मा कर भी देखा। अब मैं रोज़ाना उनसे नोट्स लेता, उन पर अपनी टिप्पणी देता और ग्रेड भी देता।
इस पूरी कवायद के परिणाम काफी उत्साहवर्धक थे। सभी ने नोट्स लेना शु डिग्री कर दिया था और उनके नोट्स की गुणवत्ता भी बेहतर हो चली थी। हफ्ते के अन्त-अन्त तक सभी विद्यार्थी महत्वपूर्ण सवालों के उदाहरण साफ-साफ और सही-सही लिखने लगे थे। अब ये ऐसे नोट्स थे जो विद्यार्थी दोहराने और अपनी समझ को पुख्ता करने में अच्छी तरह इस्तेमाल कर सकते थे।
नोट्स पर आधारित क्विज़
हफ्ते के अन्त में मैंने एक क्विज़ रखी। इसमें इन नोट्स का इस्तेमाल किया जा सकता था। मैंने पिछले दिनों के उनके नोट्स को और सुधार कर उन्हें वापस कर दिया था। मैं अच्छे नोट्स लेने की धारणा को पुख्ता करना चाहता था। क्विज़ में तीन सवाल थे। एक सवाल का बिलकुल सीधा जवाब नोट्स में मौजूद था। दूसरे सवाल में सिर्फ संख्याएँ अलग थीं। तीसरे सवाल में उन्हें काफी कुछ इधर-उधर करना पड़ता। मुझे पक्का विश्वास था कि आज तो वे इन सवालों का जवाब देने के लिए अपने नोट्स का इस्तेमाल करेंगे और सभी-के-सभी काफी अच्छा प्रदर्शन करेंगे क्योंकि इस बार सहायता के लिए उनके पास बेहतर नोट्स थे।
परन्तु मैं अन्यन्त अचरज में पड़ गया जब विद्यार्थियों का प्रदर्शन बिलकुल भी अच्छा नहीं निकला। टेस्ट के उस सवाल का सही जवाब सिर्फ आधे से थोड़ा अधिक लोग ही दे पाए जो कि उनके नोट्स के सवाल की कार्बन-कॉपी था। दो अन्य सवालों का सही जवाब देने वालों की संख्या तो और भी कम थी। मैं चकित रह गया। इस बात का तो मुझे अहसास था कि ये विद्यार्थी अपनी सफलता को लेकर काफी जागरूक थे और क्विज़ में दिए गए सवाल और नोट्स में मौजूद सवाल के बीच एक तारतम्य भी देख पाते थे।
नोट्स के प्रति छात्रों की धारणा
एक जागरूक छात्र रिली को मैंने क्विज़ के बारे में बातचीत के लिए बुलाया। मैंने पाया कि मेरे द्वारा नोट्स के इस्तेमाल के बार-बार आग्रह के बावजूद उसने नोट्स का इस्तेमाल जान-बूझकर1 नहीं किया था। उसका मानना था कि क्विज़ में नोट्स को देखकर उत्तर देना एक तरह से बेईमानी होता। उसकी दृष्टि में गणित जानने का मतलब है कि आप नोट्स या बिना किसी बाहरी मदद के सवालों को हल कर पाएँ, उनका जवाब दे पाएँ।
इस टिप्पणी ने विद्यार्थियों के द्वारा नोट्स नहीं लिए जाने की प्रक्रिया को एक नई दृष्टि से देखे जाने की माँग की। अगर नोट्स का इस्तेमाल नकल करने के या बेईमानी के समकक्ष है या फिर इस बात का उदाहरण है कि वे गणित में दक्ष नहीं हैं तो नोट्स नहीं लेने की उनकी बात बिलकुल जायज़ लगती है। अगर मैं नोट्स पर नम्बर या ग्रेड देता हूँ तो ज़ाहिर है कि वे बेहतर करेंगे ताकि उन्हें अच्छे ग्रेड मिले। यद्यपि ये नोट्स जो उन्होंने तैयार किए, उनके लिए सीखने के एक औज़ार की तरह नहीं हैं, बल्कि शैक्षिक कार्यक्रम का ही एक हिस्सा हैं जो अगर वे पूरा करें तो बदले में उन्हें अच्छे नम्बर हासिल होते हैं।
इसका अर्थ है कि नोट्स लेने की प्रक्रिया को एक अधिकृत गतिविधि में परिवर्तित करने के लिए, जिससे कि वे सीखने का एक महत्वपूर्ण औज़ार बन चलें - मुझे नए प्रयास करने पड़ेंगे। मुझे उनके इस विश्वास को भेदने का प्रयास करना पड़ेगा कि अच्छे छात्र गणित करने के दौरान नोट्स का इस्तेमाल नहीं करते।
गणित हल करने के संघर्ष
पिछले सालों के दौरान मैंने कई विद्यार्थियों को गणित से संघर्ष करते हुए देखा है और साथ ही अपनी गणित करने की प्रक्रिया का भी आत्मविश्लेषण किया है। धीरे-धीरे मेरी समझ उभरी है कि जिन रणनीतियों के सहारे मैं गणित सीखने-सिखाने की कोशिश करता हूँ सामान्यत: छात्र उनका विरोध करते हैं - क्योंकि उनके मुताबिक गणितीय कुशलता की पहचान है आप जवाब को याददाश्त के सहारे तुरन्त प्रस्तुत कर पाएँ।
उदाहरण के तौर पर जब मैं कक्षा की तैयारी के लिए गृहकार्य कर रहा होता हूँ तो बार-बार अपने नोट्स और उनमें दिए गए उदाहरणों की मदद लेता रहता हूँ। इससे मुझे यह जानने में मदद मिलती है कि मैंने क्या सीखा है और मैं किस दिशा में जा रहा हूँ। मेरे लिए यह प्रक्रिया अपने आपको और समर्थ बनाने की होती है। जिसे अँग्रेज़ी में कहते हैं इम्पावर करना। यह तैयारी मुझे उन सवालों के भी जवाब खोजने में मदद करती है जो मेरी कुशलता के दायरे से बाहर होते हैं। जबकि मुझे लगता है कि नोट्स की मदद लेना मेरे विद्यार्थियों के लिए एक तरह से अपनी असफलता स्वीकारने के बराबर है। उनके लिए इसका मतलब है कि वे नहीं जानते जो उन्हें जानना चाहिए। और वे स्मृति के आधार पर सवाल हल करने की क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पाते जो उनके हिसाब से गणितीय कुशलता की निशानी है।
जब किसी सवाल से जूझ रहे विद्यार्थी मदद माँगते हैं तो मैं प्राय: पूछता हूँ कि किसी सवाल को पढ़ने के बाद उनका सबसे पहला कदम क्या था। वे बताते हैं कि वे पहले-पहल सवाल के उन हिस्सों की पहचान करते हैं जो उन्हें समझ नहीं आता। उसके बाद वे दिमाग लगाना व काम करना बन्द कर देते हैं। उनके मुताबिक उनके पास पूरी समझ नहीं है और इस नाते वे सवाल हल करने को लेकर तैयार नहीं हैं।
अगर मैं गणित करने की अपनी प्रक्रिया का आत्म विवेचन करूँ तो मैं भी कुछ इसी तरह का रास्ता अख्तियार करता हूँ। पहले मैं उन हिस्सों की पहचान करता हूँ जो मेरी समझ के अनुसार पूरी तरह साफ नहीं हैं। लेकिन फर्क भी यहीं से शु डिग्री होता है। इन हिस्सों की खोज मेरे लिए अपने आप को और सबल व समर्थ बनाने वाला अनुभव होता है। मैं इन हिस्सों की पहचान करने की आदत के आधार पर नए सवाल पूछ सकता हूँ। ये सवाल मुझे अपनी गणितीय योग्यता के परे के सवालों का भी जवाब खोजने में मदद करते हैं।
पारम्परिक धारणाओं में बदलाव की कोशिश
विद्यार्थियों को अच्छे नोट्स लेना और इस्तेमाल करना सिखा पाना मेरे लिए एक व्यापक शैक्षिक सिद्धान्त (पैडागॉजी) का हिस्सा है। मैं गणित में कुशल विद्यार्थियों द्वारा अपनाए जाने वाले कौशलों और तकनीकों को सामने लाने का यत्न करता रहता हूँ। आमतौर पर ये तकनीकें ज़्यादातर लोगों से छिपी रहती हैं। इस तरह मैं स्मृति के आधार पर गणित करने की जो एक सांस्कृतिक समझ है उस पर भी प्रहार करता रहता हूँ।
रिली से बातचीत के बाद, जिसका कि ज़िक्र मैंने पहले भी किया है, के सालों में भी लगातार मैं इस बात को सिखाता रहा हूँ कि अच्छे नोट्स कैसे लिए जाएँ और उनका इस्तेमाल कैसे किया जाए। मैं अपने कक्षा संचालन को और उसकी संरचना को लगातार इस तरह बदलता रहता हूँ जिससे इस विधि का इस्तेमाल हो और विद्यार्थियों को इस इस्तेमाल के बदले फायदा भी हो। विद्यार्थियों के नोट्स या अन्य बाहरी सामग्री के इस्तेमाल न करने की धारणा को मैं दो और तरीके से चुनौती देता रहता हूँ। एक तो इस पर बात करते रहने से कि किस तरह मेरी कक्षा में विद्यार्थी गणित करने के दौरान नोट्स का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही लगातार पूछता रहता हूँ कि वे गणितीय कुशलता और नोट्स आदि बाहरी सामग्री के इस्तेमाल को लेकर क्या सोचते हैं।
यद्यपि धारणाएँ रातोंरात नहीं बदलतीं, मेरी सफलता का रास्ता धीमा है और जीत लगभग अधूरी ही है। लेकिन ऐसी युक्तियों का अभाव भी है जिसमें सफलता सम्भव ही हो। तो मैं विद्यार्थियों के गणित सीखने से जुड़ी धारणा को प्रभावित करने के अपने प्रयासों को बन्द नहीं कर सकता। इनको बन्द करने का मतलब होगा कि कई यूँ ही संघर्ष करते रहेंगे जबकि उनके पास औज़ार मौजूद हैं जो कि उनकी समझ को बढ़ा सकता है और उन्हें सफलता भी दिला सकता है
रॉब वाईमैन: युनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर, न्यूअक में डॉक्टरेट के छात्र हैं। उन्होंने कई सालों तक न्यू यॉर्क सिटी के पब्लिक हाई स्कूलों में पढ़ाया है और हाई स्कूल में गणित शिक्षण को सुधारने में रुचि रखते हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: दीपक वर्मा: ‘हरकारा मीडिया’। शिक्षा सम्बन्धी मुद्दों पर फिल्में बनाने में रुचि। इनके द्वारा निर्मित फिल्म ‘टीचर्स जर्नी’ अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुई। ‘संदर्भ’ पत्रिका के संस्थापक सम्पादकीय समूह का हिस्सा रहे हैं। दिल्ली में रहते हैं।
यह लेख स्टुडेन्ट्स बिलीफ एबाउट मेथेमेटिक्स: वॉट आइ लर्नड फ्रॉम टीचिंग नोट टेकिंग - शीर्षक से मेथेमेटिक्स टीचर्स (फरवरी 2011) में प्रकाशित हो चुका है।
लेख के हिन्दी अनुवाद एवं प्रकाशन की अनुमति नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर्स ऑफ मेथेमेटिक्स (एन.सी.टी.एम.) द्वारा प्रदान की गई है। लेख के सभी अधिकार एन.सी.टी.एम. के पास सुरक्षित। हिन्दी अनुवाद की गुणवत्ता एवं सटीकता के लिए एन.सी.टी.एम. की जवाबदेही नहीं रहेगी।