मोहम्मद उमर
अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत जहाँ प्राथमिक स्कूली शिक्षा हर बच्चे का कानूनी अधिकार बन गया है ऐसे में अब शाला से बाहर रह गए बच्चों को स्कूलों से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इसके चलते शिक्षकों के मन में बहुत-सी शंकाएँ उठ रही हैं। उनमें से एक शंका यह भी है कि जिन बच्चों ने कभी कलम नहीं थामी है उनको लिखना कैसे सिखाया जाए, पढ़ना-लिखना सीखने की ओर उनकी रुचि कैसे पैदा की जा सकेगी? अपने कुछ अनुभव साझा करना चाहूँगा जो इन सवालों को समझने में और हमें कुछ रास्ता दिखाने में भी मददगार साबित हो सकते हैं।
मेरा बेटा अमान अभी तीन साल तीन माह का हुआ है। कागज़ों पर गोदागादी करने, दीवारों पर पेंसिल चलाने में उसे काफी मज़ा आता है। अभी एक माह पहले से हमने उसे कॉपी खरीद कर देना शुरू किया है। अभी तक उसने दो कॉपियाँ भर दी हैं। बहुत-से पन्ने गोदागादी किए हुए ही हैं। उसके मन में जो भी खयाल पनपता है उसे वह कागज़ पर उतारते समय बुदबुदाता भी रहता है। इसीलिए कई बार हमें यह समझने में मदद मिल जाती है कि वह क्या बना रहा है या क्या बनाने का प्रयास कर रहा है।
अनुभव आधारित चित्रकारी
जब कभी उसे हमारी मदद चाहिए होती है तो वह बोलता है, जैसे पापा घर बना दो, इसमें पहाड़ बना दो, एक चूहा बना सकोगे पापा आदि। हमारी मदद पा लेने के बाद वह उन पर अपनी कलाकारी जारी रखता है।
एक सप्ताह पहले मुझे अहसास हुआ कि उसकी गोदागादी में कुछ सार्थकता है। हुआ यूँ कि अपनी कॉपी में उसने एक टंकी बनाने को कहा। मैंने टंकी बना दी और कलम उसे थमाकर अपने काम में लग गया। कुछ मिनटों बाद ही उसने मुझसे कहा, “पापा देखो, ट्रैक्टर पानी देने आया है, अमान के घर पानी देने आया है।” मेरा ध्यान उसकी बातों की तरफ गया और मैंने घूमकर कॉपी देखी तो स्तब्ध रह गया। उसने एक ट्रैक्टर जैसी आकृति बनाने का प्रयास किया था और उससे निकलती एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा टंकी में जाती हुई भी बनाई थी। ये मेरे लिए पहला अवसर था जब उसके द्वारा बोला शब्द, ट्रैक्टर तथा कागज़ पर बनी आकृति में मुझे काफी समानता दिख रही थी।
एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा ट्रैक्टर से निकलकर टंकी में घुस रही थी।
“ये क्या है?” मैंने पूछा।
“पाइप से पानी डाल रहा है,” उसने बताया।
मैंने उनकी माँ, रुखसाना को पास बुलाकर दिखाया। अमान कुछ महीने पहले हुए एक वाकये को कागज़ पर उतार चुका था।
हुआ यूँ था कि चार महीने पहले हम जयपुर के पास टोंक में रहते थे। गर्मियों में यहाँ पानी की समस्या आम है। लोगों को पानी के टैंकर मँगाने पड़ते हैं। ट्रैक्टर, टैंकर को खींच कर लाता है और मोटे पाइप द्वारा छत पर रखी टंकी में पानी डाल जाता है। हमारे घर भी दो-तीन बार टैंकर आया और छत पर रखी टंंकी में मोटे पाइप द्वारा पानी डाल गया था। अमान को ये बातें याद थीं और आज वह इसे ही अपने चित्र में दर्शाना चाह रहा था।
इसी तरह एक और दिन वह अपनी कॉपी में कुछ बनाकर मेरे पास लाया। “पापा देखो, क्रेन मिट्टी खोद रही है,” उसने कहा। चित्र में जो भी दिख रहा था लगभग मिट्टी खोदती क्रेन जैसा ही था।
कुछ महीनों पहले वह अपने दादा-दादी के यहाँ गया था। वहाँ अपने अशरफ चाचा को डंबल लेकर कसरत करते हुए देखा करता था। वह बात उसके दिमाग में रही और इतने दिनों बाद एक दिन अपनी कॉपी में उसने कसरत करते चाचा की तस्वीर बना डाली और पास आकर दिखाते हुए बोला, “देखो मम्मी, चाचा कसरत कर रहे हैं।”
बच्चे के अनुभवों को, सीखने की प्रक्रिया में इस्तेमाल करने की बात हम सब करते रहते हैं, लेकिन ऊपर दिए गए कुछ उदाहरण देखें तो हम पाएँगे कि बच्चे तो ऐसा ही करते हैं। वे अपने अनुभवों के आधार पर ही कुछ रचते या गढ़ते हैं। यदि उन्हें अपने आप कुछ काम करने को दिया जाए और उनकी उतनी ही मदद की जाए जितना कि वे चाहते हैं तो प्राय: ऐसा ही होता है। समस्या तब आती है जब हम कुछ चीज़ें अपने तरीकों से करवाना चाहते हैं तथा अपनी अपेक्षाएँ उन पर थोपने लगते हैं।
दक्षता विकास के लिए अभ्यास
शायद हम सभी ने अपने बचपने में विद्यालय आने के अपने शुरुआती दिनों में खड़ी लकीर, लेटी लकीर, आधे गोले तथा पूरे गोले बनाने का काम किया है। आज भी बहुत-से लोगों का मानना है कि ऐसा करना बहुत ज़रूरी है। इसके कुछ कारण जो गिनाए जाते हैं:
- बच्चे को कलम पकड़ना आएगी।
- उसके हाथों की उन माँसपेशियों का विकास होगा जो कलम पर नियंत्रण बनाने में काम आती हैं।
- इन आकृतियों से ही सभी अक्षर बनते हैं। अत: ये आधारभूत आकृतियाँ बनाना आना बहुत आवश्यक है। इनके अभ्यास से बच्चे जल्द ही अक्षर निर्माण की तरफ बढ़ेंगे।
इन तीनों ही बातों का बहुत महत्व है। लेकिन हमें यह सोचना होगा कि अपने स्कूलों में हमने जो तरीके अपनाए हैं, वे कितने सही हैं।
ये सोचने की बात है कि आड़ी, खड़ी रेखाएँ और आधे गोले बनाते रहने के अभ्यासों में बच्चों को भला क्या आनन्द आता होगा।
बच्चे और विषय के सन्दर्भ
हम शिक्षा में विषय और बच्चे, दोनों के सन्दर्भ को शामिल करने पर ज़ोर देते हैं। गणित हो या विज्ञान, हम दोनों ही विषयों को उसके सन्दर्भ में पढ़ाए जाने की बात करते हैं। कई लोग ये मानते हैं कि पढ़ाने की शुरुआत अक्षर की जगह शब्द या पूरे वाक्यों से करनी चाहिए क्योंकि ये बच्चों के सामने एक पूरा सन्दर्भ प्रस्तुत करते हैं जिससे बच्चों को जुड़ाव बनाने या मायने समझने में मदद मिलती है। सिर्फ अक्षर अपने आप में कुछ भी व्यक्त नहीं करते। बच्चे नहीं समझ पाते कि ये क्या हैं? और ये क्यों सिखाए जा रहे हैं?
यही बात तब भी लागू होती है जब हम बच्चे से यह कहते हैं कि आड़ी-खड़ी रेखाएँ तथा आधे गोले और पूरे गोले बनाओ और ऐसा रोज़-रोज़ करो। तो क्या हम भी उन्हें एक निरर्थक तथा अरुचिकर काम नहीं दे रहे होते हैं? जिस ‘सन्दर्भ से शिक्षण’ की वकालत करते हुए हम गणित, विज्ञान तथा समाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियों तथा पाठ्यसामग्री में इतने परिवर्तन कर रहे हैं, क्या वही बात यहाँ लिखना सिखाने की प्रारम्भिक गतिविधियों पर भी लागू नहीं होती। अगर हमारा मकसद बच्चे में उन तीन दक्षताओं का विकास करना है जिनका ज़िक्र ऊपर आया है तब तो और भी ज़रूरी है कि हम इस प्रक्रिया को उनके लिए मज़ेदार बनाएँ या बना लेने के अवसर मुहैया कराएँ।
अपने बेटे अमान के सीखने के चरणों को उदाहरण बतौर रखते हुए मैं कहना चाहँूगा कि अपनी मनमर्ज़ी के और मनपसन्द काम को करते हुए भी वह इन तीन दक्षताओं को प्राप्त करने की दिशा में बढ़ रहा है। वह कलम को बेहतर ढंग से थामकर लिखने का प्रयास करता है, उसके द्वारा बनाई जा रही आकृतियों में आड़ी-खड़ी रेखाएँ और गोले का खूब समावेश है जो उसे अक्षर बनाने की दिशा में ले जाने में सहायक होगा। यह सब करने के लिए हमने कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया है। जैसा कि मैंने ऊपर बताया, दीवारों तथा कागज़ पर उसे गोदागादी करने की पूरी आज़ादी थी। दीवारें खराब न हों इसलिए हमने उन पर कागज़ चिपका रखे थे लेकिन बावजूद इसके, वह दीवारों पर अपनी कृति बना ही देता था। दीवारें तो क्या फर्श और चादरें, यहाँ तक कि अपने हाथ-पैरों पर भी वह पेन से कुछ भी बनाता रहता था।
पिछले एक महीने से हम लोग उसके लिए एक कॉपी खरीदकर रख रहे हैं। उसे बता दिया गया है कि यह अमान की कॉपी है। कई दिनों से वह स्वयं ही अकेला बैठकर तथा कभी-कभी अपनी एक मित्र के साथ इस कॉपी में गोदागादी करता रहता है। जब मैं ‘गोदागादी’ कह रहा हँू तो यह शब्द सिर्फ हमारे और आपके लिए है, क्योंकि हम अभी इन्हें देखकर इनसे अर्थ-निर्माण नहीं कर सकते। लेकिन अमान ने जो कुछ भी बनाया है, इसके पीछे उसकी कोई-न-कोई सोच अवश्य है। कुछ भी बनाते समय वह बड़बड़ाता रहता है। असल में वह उस कहानी को भी साथ-साथ बयान करता चलता है जिसका हिस्सा वो चित्र होते हैं।
सोच आधारित चित्रकारी
पिछले सप्ताह की बात बताता हूँ। मैं और रुखसाना टी.वी. पर कार्यक्रम देख रहे थे। अमान भी हमारे पास ही बैठकर अपनी कॉपी में कुछ बना रहा था। उसके बड़बड़ाने की आवाज़ लगातार मेरे कानों में आ रही थी।
अमान के पापा...अमान की मम्मी ...मम्मी की गोदी मे अमान...अमान सिंघम बना है...अमान की टोपी है...अमान का चश्मा...पापा अमान के ऊपर हाथ रखे हैं...पापा ऑफिस जा रहे हैं...पापा का जूता...।
अमान का इस तरह बड़बड़ाना कोई नई बात नहीं थी। शायद इसीलिए हम लापरवाही से बैैठे थे, लेकिन जैसे ही मेरी नज़रें उसकी कॉपी पर गई तो मैं आश्चर्य-चकित रह गया। आज पहली बार मुझे लगा कि हमारी थोड़ी भी मदद बिना ही उसने एक ऐसा चित्र तैयार कर लिया है जो उसके दिमाग में चल रही घटना का हूबहू प्रदर्शन है। उसने मम्मी-पापा और उनकी गोद में अमान बनाया है। पापा का हाथ सच में अमान तक पहुँच कर उसे छू रहा है। पापा के पैरों में जो गोले दिख रहे हैं वे असल में उनके जूते हैं। स्वयं अमान के ऊपर कुछ ज़्यादा ही गोदागादी दिख रही है। ये शायद सिंघम बनने के प्रयास में टोपी और चश्मा पहनाए जाने का नतीजा है। उसने इस चित्र को रंगने का प्रयास भी किया लेकिन किसी अन्य खेल की ओर आकर्षित होकर ये काम बीच में ही छोड़ दिया।
आकार की आनुपातिक समझ
अभी हाल ही में हमने एक पर्चा पढ़ा था जिसका नाम था - यंग चिल्ड्रन लर्न रेशो प्रपोर्शन - जिसमें सात साल का बच्चा अपने पिता के साथ प्रोपेलर के आकार के बारे में बात करता हुआ इस समझ पर पहुँचता है कि प्रोपेलर काफी बड़ा होता है तथा एक कमरे में नहीं समा सकता। प्रोपेलर के बगल में बना आदमी का चित्र उसे इस समझ निर्माण में मदद करता है। लेखक ये बात स्थापित करते हैं कि बच्चों में भी एक स्तर की अनुपातिक समझ होती है। अमान के बनाए गए इस चित्र को देखिए। मम्मी-पापा का आकार और अमान का आकार। शरीर की संरचना के समय हाथ-पैर और सिर को देखिए। आनुपातिक नियमों का पालन तथा चित्र बनाने की प्रक्रिया में अनुपात की समझ का प्रयोग ये तीन साल का बच्चा भी कर रहा है।
मुझे लगता है कि लिखने की प्रक्रिया का प्रारम्भ भी यहीं से होता है कि आप जो आकृति बनाना चाहो वो बना सको। इस लिहाज़ से देखें तो अमान ने भी जो बनाना चाहा था उसे बना लिया है। इस तरह वह अपने आप ही उन तीनों दक्षताओं की प्राप्ति की ओर बढ़ रहा है जिसके लिए हम तमाम नीरस अभ्यासों से बच्चों से आड़ी-टेढ़ी लकीरें और गोले आदि बनवाते रहते हैं।
इस उदाहरण में पूरा-का-पूरा सन्दर्भ शामिल है। बच्चे का अपना जीवन, उसके अपने अनुभव, चिन्तन और स्वयं के प्रयास शामिल हैं। और शायद यही उसके ज्ञान निर्माण की सही दिशा और प्रक्रिया भी है।
मोहम्मद उमर: आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के आई.एफ.आई. समूह में कार्यरत हैं। वे फिलहाल आई.एफ.आई. समूह के स्कूल एण्ड टीचर्स एज्यूकेशन रिफॉर्म प्रोग्राम राजस्थान से जुड़ें हैं। उदयपुर में निवास।