सुशील जोशी
फूल कब खिलें कब नहीं, कुछ पौधों में यह बात अंधकार की अवधि से तय होती है। जबकि कुछेक में अंधकार के साथ-साथ मौसम का तापमान भी इस प्रक्रिया पर असर डालता है।
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि किसी भी पौधे में फूल तब तक लगना शुरू नहीं होते जब तक कि पौधा वयस्क अवस्था में न पहुंच जाए। वयस्कता प्राप्त करने का समय सब पौधों के लिए बहुत ही अलग-अलग हो सकता है। धान, गेहूँ जैसे पौधों में कुछ ही महीने तो आम जैसे पेड़ों में सालों-साल लग जाते हैं, पौधे को वयस्क अवस्था में पहुंचने में। हमने यह भी देखा कि विभिन्न प्रयोगों से समझ में आया है कि शायद फूल लगने की यह प्रक्रिया टहनियों के सिरे (शीर्ष) से नियंत्रित होती है। पर कैसे नियंत्रित होती है, कौन-कौन से कारक असर डालते हैं उस पर, इन मसलों-सवालों पर अभी भी खोजबीन जारी है।
पहली बार फूल तो खिल गए पर उसके बाद हर साल उसी मौसम में फिर से पौधा बौराने लगता है। इस शताब्दी की शुरुआत में हुए प्रयोगों से ऐसा संकेत मिला था कि पौधों को शायद रोशनी की अवधि से पता चलता है। पर कुछ सालों बाद समझ में आया कि रोशनी नहीं, अंधकार की अवधि से तय होती है। यह प्रक्रिया। क्या अर्थ निकलता है उसका - वहीं से शुरू करते हैं इस बार
सबसे पहले स्पष्टीकरण! आमतौर पर पुस्तकों में अभी भी 'बड़े दिन' व 'छोटे दिन' जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है। हालांकि समय बदल चुका है। हम यहां पर नए शब्दों का उपयोग करेंगे, छोटी रात के पौधे तथा लंबी रात के पौधे।
लंबी रात के पौधे
यह समझने के लिए कि छोटी रात और लंबी रात के पौधे क्या होते हैं किसी एक पौधे के उदाहरण से शुरू करते हैं। अगर गोखरू (ज़ैन्थियम) के ऐसे पौधों को लें जो वयस्क अवस्था प्राप्त कर चुके हैं परन्तु इस समय उन पर फूल नहीं हैं। वयस्क पौधा यानी जिसपर कम से कम एक बार फूल खिल चुके हैं। ऐसे पौधों के साथ प्रयोग करने पर पता चलता है कि अगर अलग-अलग पौधों को अन्धकार की निश्चित अवधि दी जाए तो कुछ ऐसे अवलोकन आते हैं -
अर्थात् जब तक अंधकार की अवधि साढ़े आठ घंटे से कम रहती है। गोखरू के पौधे पर फूल नहीं खिलते। परन्तु जैसे ही उसे साढ़े आठ घंटे या उससे ज़्यादा का अन्धकार मिलता है, उस पर फूल आने लगते हैं - फिर चाहे अंधकार की अवधि साढ़े आठ घंटे से कितनी भी ज्यादा क्यों न हो। यानी साढ़े आठ घंटे ऐसी सीमा है जिससे ज़्यादा अवधि का अन्धकार मिलने पर गोखरू पर फूल खिलने लगते हैं। इसे क्रांतिक अवधि कहते हैं।
सबसे मजेदार बात यह है कि अंधकार के इन साढ़े आठ घंटों के दौरान अगर एक बार भी उस पौधे पर रोशनी पड़ जाए तो फिर उस पर
फूल नहीं खिलते। यानी अगर आठ घंटे बाद भी एक बार उसकी तरफ टॉर्च जला दें तो ये आठ घंटे बेकार चले जाएंगे। अर्थात् कमाल कुल अंधकार का नहीं बल्कि लगातार अंधकार का है। यानी गोखरू के पौधे को फूल लगने के लिए कम-से-कम साढ़े आठ घंटे का लगातार अंधकार चाहिए। ऐसे पौधों को लम्बी रात के पौधे कहते हैं। मतलब कि उन्हें एक अवधि से ज्यादा लम्बी रात चाहिए।
छोटी रात के पौधे
अब एक और पौधे खुरसानी अजवाइन (ह्योस्केपस) के साथ ऐसा ही प्रयोग करके देखते हैं:
अब देखिए, खुरसानी अजवाइन के पौधों पर फूल तभी लगते हैं जब उन्हें 13 घंटे से कम अवधि के लिए अंधकार मिले, चाहे वह सिर्फ पांच घंटे के लिए ही क्यों न हो। ऐसे पौधों को छोटी रात के पौधे कहा जाता है। - यानी ऐसे पौधे जिन्हें फूल खिलने के लिए किसी खास अवधि (क्रांतिक अवधि) से कम समय के लिए लगातार अंधकार की ज़रूरत होती है। आपने शायद इस बात पर गौर किया होगा कि लम्बी रात के पौधे साढ़े आठ घंटे के भी हो सकते हैं। और छोटी रात के 13 घंटे वाले भी। यानी सिर्फ क्रांतिक अवधि से पता नहीं चलता कि पौधा लम्बी रात का है या छोटी रात का।
एक बात और गौरतलब है कि कुछ किस्म के पौधों में तो सिर्फ एक बार सही मात्रा में अंधकार मिलने से ही फूल खिलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। पर बहुत से पौधे ऐसे भी होते हैं जिन्हें अगर कई दिनों तक सही मात्रा में अंधकार नहीं मिले तो उनमें यह प्रक्रिया ट्रिगर (प्रेरित) नहीं होती।
पत्तियों से मिलता है संकेत
यहां तक पहुंचने पर स्वाभाविक रूप से अगला सवाल उठता है कि अंधकार की इस अवधि का प्रभाव पौधे
कैसे पता चलता है महत्व अंधकार का
बड़ा दिन-छोटा दिन या छोटी रात-बड़ी रात कहने-सुनने में लगता है कि यह तो एक ही बात हुई। पर ऐसा है नहीं। गोखरू के पौधों के साथ हुए प्रयोगों के अवलोकन देखने से शायद कुछ समझ में आए।
सबसे पहले अंधकार की अवधि निश्चित रखते हैं और रोशनी की अवधि बदलकर देखते हैं कि फूल कब खिलने लगते हैं :
अब रोशनी की अवधि निश्चित कर देते हैं और अंधकार की अवधि बदलकर देखते हैं।
अब ख्याल आया कि ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि फूल खिलने के लिए लगातार अंधकार का महत्व है, रोशनी का नहीं?
के किस हिस्से पर पड़ता है?
वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है। कि फूल चाहे शीर्ष पर खिलता हो, मगर उसे संकेत देने वाली प्रक्रिया पत्तियों में होती है। यदि किसी पौधे के शीर्ष को रात की सही परिस्थिति प्रदान की जाए किन्तु पत्तियों को न दी जाए तो फूल नहीं आते। इसके विपरीत यदि पत्तियों को सही परिस्थिति में रखकर शीर्ष पर कुछ भी
धतूरे के पौधे के साथ हुए प्रयोग: (क) लगातार प्रकाश में रखा धतूरे का पौधा (ब) एक पत्ती को अंधकार में रखने पर (ग) उस प्रेरित पत्ती को प्रेरित पौधे पर ग्राफ्ट करने तथा चार और पौधों को ग्राफ्टिंग से एक दूसरे से जोड़ने पर।
होने दिया जाए, तो भी फूल आ जाते। हैं। यदि एक पौधे को लगातार प्रकाश में रखा जाए लेकिन उसकी एक ही। पत्ती को बदलते अंधकार चक्र को महसूस करने दें तो भी पौधे पर फूल आ जाते हैं। इसका मतलब प्रकाश व अन्धकार के समय का अहसास पौधे के पत्तों को होता है।
ऐसा लगता है कि फूल खिलने की। यह प्रक्रिया किसी हॉर्मोन के ज़रिए होती है। और यह भी पता चला है कि यह हॉर्मोन एक पौधे से दूसरे में पहुँचाए जाने पर भी उतना ही कारगर होता है। यदि एक प्रेरित पौधे (जिस पर फूल खिलने लगे हों) की पत्तिर्यों को किसी अप्रेरित पौधे (जिसमें अभी फूल खिलना शुरू नहीं हुए) पर रोप दिया जाए तो अप्रेरित पौधे पर भी फूल आ जाते हैं। हालांकि इस हॉर्मोन को अब तक अलग नहीं किया जा सका है, फिर भी यह तय है कि ऐसा कुछ पदार्थ पत्तियों में बनता ज़रूर है। इसी बात को दिखाने के लिए एक प्रयोग इस प्रकार किया गया। एक लम्बी रात वाले पौधे को इतना समय अंधकार में रखा कि उसमें फूल बनने लगे। फिर इस पौधे को उसी किस्म के एक ऐसे पौधे के साथ जोड़ा गया जिसपर फूल नहीं थे। जोड़ने पर दूसरे पौधे में भी फूल आने लगे।
मतलब साफ है कि पत्तियों को सही मात्रा में अन्धकार की अवधि मिलने पर कोई रसायन (हॉर्मोन) बनता है, जो फिर उस पौधे के शीर्ष भागों (सिरों) को फूल बनाने का संकेत देता है।
ऐसे प्रयोगों से एक और आश्चर्यजनक बात समझ में आई है। कि लम्बी-रात और छोटी-रात, दोनों तरह के पौधों में एक ही तरह का रसायन (हॉर्मोन) बनता है। एक तरह के पौधों की प्रेरित पत्ती दूसरी तरह के अप्रेरित पौधों पर भी फूल खिला देती है।
इस हॉर्मोन को नाम भी दे दिया गया है- फ्लोरिजेन - फूल पैदा करने वाला। परन्तु बहुत खोजबीन के बावजूद वैज्ञानिक अब तक इसे अलग करने में सफल नहीं हो पाए हैं। आज भी शोध जारी है और दुनिया भर के वैज्ञानिकों में उसे अलग करने की होड़ लगी हुई है ।
क्यों होता है यह सब?
इतना सब जानने के बाद सवाल उठ सकता है कि इस तरह से एक साथ फूलने से पौधों को फायदा क्या होता है । एक ही किस्म के सारे पौधों पर एक साथ फूल लगने से परागण और निषेचन की संभावना तथा व्यापकता बढ़ जाती है। दूसरा, पौधों के फूलने का एक निश्चित समय होने से यह भी फायदा होता है कि उनका प्रजनन काल वातावरण की अनुकूल परिस्थितियों में आ जाता है। जैसे उष्ण-कटिबंध के छोटी रातों वाले पेड़ों को लें। इनमें फूल तब तक नहीं आएंगे जब तक कि रातें एक हद से छोटी न हो जाएं। यह परिस्थिति प्रायः गर्मियों में आएगी। यानी ये पेड़ गर्मियों में फूलेंगे - देर गर्मियों में फलेंगे और बीज बनकर बिखरने तक बारिश का मौसम आ जाएगा, जो अंकुरण व वृद्धि के लिए अनुकूल होगा।
ठंड भी है एक कारक
अंधेरे-उजाले के फूलों के खिलने पर असर के बारे में इतना सारा पढ़कर कहीं ऐसा न लगने लगे कि यही एक कारक है। और भी बहुत से हैं, जिनमें से एक और महत्वपूर्ण कारक की यहां पर बात करेंगे।
कई पौधों में चाहे अंधकार की सही अवधि मिल जाए परन्तु फिर भी फूल तब तक नहीं लगते जब तक कि पूरा पौधा बहुत कम तापमान के एक दौर में से न गुज़रे जैसे कि कुछ पौधे शून्य डिग्री से कम का तापमान 10-12 दिनों तक पाने के बाद ही फूल देते हैं।
यह भी एक तरह का अनुकूलन ही है - ठंडे प्रदेशों के लिए। अगर कोई लम्बी रात वाला पौधा वहां पर अक्टूबर, नवम्बर में फूल देने लगे तो उसमें दिसम्बर में कड़ाके की ठंड के समय बीज बनेंगे जबकि पर्याप्त मात्रा में पोषण मिलना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे पौधों में फूल तब तक नहीं खिलते जब तक कि सर्वाधिक ठंड का कठिन दौर गुज़र न जाए। उसके बाद भी अंधकार की सही अवधि तो उसे मिल ही रही होती है। इसलिए बसन्त या शुरुआती गर्मी में फूल खिलते हैं। और बीजों के बनने तक पोषण भी पर्याप्त मात्रा में मिल पाना संभव होता है। इसे वर्नेलाईज़ेशन या शीत प्रभाव कहते हैं।
हर सवाल का जवाब नहीं
आखिर फूलों की बात हो और बांस बीच में न आए, तो कैसे काम चले। बांस के बारे में सभी जानते हैं कि यह जीवन में एक बार ही फूलता है और फूलने के बाद समाप्त हो जाता है। यह भी सर्वविदित है कि जब बांस का एक जंगल फूलने पर आए तो बस शामत है। क्योंकि तब सारे बांस नष्ट हो जाते हैं। अब बांस में ऐसी क्या प्रक्रिया है? किसी प्रकार से एक पेड़ का संकेत दूसरे तक पहुंच रहा है, ऐसा लगता है। आप समझ रहे होंगे कि अब बांस के इस पेचीदा बर्ताव का कुछ जवाब मिलेगा। यह आपकी गलतफहमी है। अलग अलग तरह की अटकलें ज़रुर लगाई गई हैं। परन्तु अभी हमें इसका पक्का जवाब नहीं मालूम ।
दिन-रात की लंबाई के और भी कई असर होते हैं। आलू कब बढ़ेगा, प्याज में रस कब ज़्यादा भरेगा, पेड़ ज्यादा लंबे कब होंगे, पत्तियां ज़्यादा कब निकलेंगी आदि बातों पर दिन-रात का बड़ा असर होता है। यहां तक कि उजाले अंधेरे का ज्यादा हेरफेर करने से एकलिंगी पौधे का लिंग भी बदल
खेती पर प्रभाव
इस फूल खिलने की प्रक्रिया की समझ बनने से दुनिया में खेती पर भी बहुत असर पड़ा है। कुछ फसलें रातों की खास लम्बाई और कम तापमान पर फूलने के कारण विशेष इलाकों में ही पैदा होती थीं। अन्य जगहों पर लगाने की कोशिश करने पर इनमें न तो फूल लगते थे और न बीज बन पाते थे पर अब कृत्रिम रूप से अंधकार और ठंड की अनुकूल स्थितियाँ बनाकर ऐसी फसलों को कहीं भी किसी भी नए इलाके में उगाया जा सकता है।
जाने के समाचार हैं। इन सब उलझन भरे सवालों पर खोज जारी है और शायद काफी समय जारी रहेगी। फूलों के खिलने में और उनकी सुगन्ध में जाने और कितने सवाल हैं, जिनके हमें उत्तर नहीं मालूम। पता नहीं। अंधेरे-उजाले से शुरू हुई बात कहां जाकर रुकेगी।
(सुशील जोशी- विज्ञान एवं पर्यावरण विषयों पर सतत् लेखन।)
आप भी सोचिए
हाथी और उसका बच्चा
हाथी पानी कैसे पीता है? यह भी क्या सवाल हुआ, आप कहेंगे कि वो तो सबको मालूम है - सूंड से। कोई ज्यादा सटीक जवाब देगा तो कहेगा कि सूंड में भरकर फिर मुंह में डाल लेता है। सही कहा यह तो सबको मालूम है।
तो फिर अब यह बताइए कि हाथी का बच्चा दूध कैसे पीता है?
अगर इस गुत्थी को आप सुलझा पाएं तो हल हमें ज़रूर लिख भेजिए।