चंद्रमा के ध्रुवों पर उपस्थित बर्फ वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय होने के साथ आगामी मानव अभियानों के लिए एक संभावित संसाधन भी है। हाल ही में चंद्रमा जैसे शुष्क स्थान पर लंबे समय से बर्फ के उपस्थित होने का कारण का पता लगाया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार कुछ ध्रुवीय क्रेटर प्राचीन चुम्बकीय क्षेत्र के कारण संरक्षित हैं।
गौरतलब है कि चंद्रमा का अपने अक्ष पर झुकाव पृथ्वी के 23.4 डिग्री की तुलना में मात्र 1.5 डिग्री है। कम झुकाव के कारण सूर्य आसमान में बहुत ऊपर नहीं उठता और सूर्य की किरणें इन क्रेटर्स के अंदर पहुंच नहीं पातीं। यहां तापमान शून्य से 250 डिग्री सेल्सियस से भी कम रहता है। यहां कुछ गड्ढों में पानी और बर्फ के साक्ष्य मिले हैं। 2018 में भारत के चंद्रयान-1 ने भी ध्रुवीय बर्फ के साक्ष्य प्रदान किए थे।
चंद्रमा पर बर्फ के अस्तित्व की व्याख्या एक चुनौती रही है। हालांकि वहां सूर्य की रोशनी तो नहीं पहुंच सकती लेकिन सौर हवाएं तो पहुंच सकती हैं जो बर्फ को अणु-अणु-दर नष्ट कर सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन सौर हवाओं के चलते बर्फ को कुछ लाख वर्षों में पूरी तरह नष्ट हो जाना चाहिए था।
लिहाज़ा, युनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना के ग्रह वैज्ञानिक लोन हुड और उनके सहयोगियों ने बर्फ के बचे रहने का कारण समझने का प्रयास किया। ल्यूनर एंड प्लेनेटरी साइंस कांफ्रेंस में हुड ने बताया कि चंद्रमा के सुदूर अतीत की चुम्बकीय विसंगतियां कई ध्रुवीय क्रेटर की रक्षा कर रही हैं। ये विसंगतियां सौर हवा को विक्षेपित करने की क्षमता रखती हैं और सूर्य की किरणों से ओझल क्रेटर्स में बर्फ को सुरक्षित रखने में भूमिका निभाती हैं।
गौरतलब है 1971 और 1972 के अपोलो 15 और 16 मिशनों के बाद से ही असामान्य चुम्बकीय शक्ति वाले क्षेत्रों को मापा गया था। हालांकि, स्पष्ट रूप से तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन संभावना है कि इनकी उत्पत्ति 4 अरब वर्ष पूर्व हुई होगी जब चंद्रमा पर चुम्बकीय क्षेत्र उपस्थित था और लौह से भरपूर क्षुद्रग्रह इसकी सतह से टकराए होंगे। इन टक्करों के नतीजे में पिघला हुआ पदार्थ स्थायी रूप से चुम्बकित हो गया होगा।
हुड ने 2007 से 2009 के बीच चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले एक जापानी अंतरिक्ष यान कागुया के डैटा का उपयोग करके दक्षिण ध्रुव का विस्तार से अध्ययन किया। उन्हें स्थायी रूप से ओझल कम से कम दो क्रेटर मिले जो इन विसंगतियों से प्रभावित थे। हालांकि चुम्बकीय क्षेत्र अत्यंत कमज़ोर है लेकिन सौर हवाओं को विक्षेपित करने के लिए पर्याप्त हो सकता है।
निकट भविष्य में चंद्रमा पर कई अभियान पहुंचने की अपेक्षा है। नासा मनुष्यों को भी भेजने की योजना बना रहा है। चंद्रमा की बर्फ के अध्ययन से पता चलेगा कि चांद पर पानी कैसे पहुंचा था और पृथ्वी पर पानी की उपस्थिति की गुत्थी भी सुलझ सकती है।
चुम्बकीय क्षेत्र के सुरक्षात्मक प्रभाव की पुष्टि करने के लिए और डैटा ज़रूरी है। इसके लिए हुड चंद्रमा की सतह पर सौर पवन उपकरण लगाना चाहते हैं ताकि क्रेटर के किनारों से गुज़रने वाले आवेशित कणों का मापन किया जा सके। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - May 2022
- विलुप्त प्रजातियों को पुनर्जीवन
- गंधबिलाव का क्लोन अपनी प्रजाति को बचाएगा
- मक्खी से बड़ा बैक्टीरिया
- मछलियां जोड़ना-घटाना सीख सकती हैं
- ऑक्टोपस के पूर्वज की 10 भुजाएं थीं
- विकास का खामियाजा भुगत रही हैं जैव प्रजातियां
- चलता-फिरता आम का पेड़
- आखिर हिमालय में कितने बांध बनेंगे?
- ग्लासगो जलवायु सम्मेलन पर एक दृष्टि
- सिंगल यूज़ प्लास्टिक का विकल्प खोजना बेहद ज़रूरी
- नदियों में बढ़ता प्रदूषण
- भयावह है वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव
- धूम्रपान से सालाना सत्तर लाख जानें जाती हैं
- एक मकबरे के रहस्य की गंध
- चांद की बर्फ प्राचीन चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा संरक्षित है
- दीपक धर: बोल्ट्ज़मैन पदक से सम्मानित प्रथम भारतीय
- कैंसर वैज्ञानिक डॉ. कमल रणदिवे
- मानव-विज्ञानी और सामाजिक कार्यकर्ता: पॉल फार्मर
- क्रिस्पर शिशुओं की देखभाल पर नैतिक बहस
- कोविड मौतों की संख्या का नया अनुमान
- कोविड से मधुमेह के जोखिम में वृद्धि
- गोदने की सुई से प्रेरित टीकाकरण
- सबसे छोटा कोशिकीय स्विचयार्ड बनाया