पर्यावरण वैज्ञानिकों ने वर्ष 2019 को पुन: काफी गर्म बताया, परंतु इस गर्म वर्ष में भी दुनिया भर में पर्यावरण बचाने के अनुकरणीय एवं प्रेरक प्रयास हुए।
कोलंबिया की सरकार ने दक्षिण अफ्रीका की एक कंपनी एंग्लोगोल्ड को छोटे से गांव काज़मारका में ज़मीन के नीचे दबे सोने के खनन की अनुमति प्रदान की थी। यहां लगभग 680 टन सोना होने की संभावना बताई गई थी। लगभग 30 हज़ार की आबादी वाले इस गांव में खनन कार्य के संदर्भ में अप्रैल में एक जनमत संग्रह का आयोजन किया। केवल 80 लोगों ने खनन के पक्ष मत रखा एवं शेष लोगों ने विरोध किया। लोगों का कहना था कि सोने से ज़्यादा महत्वपूर्ण पर्यावरण है; पर्यावरण बचेगा तो ही हम बचेंगे। हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को बेहतर पर्यावरण मिले। जनमत के परिणाम से सरकार काफी परेशान हो गई।
इसी तरह, म.प्र. के सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में केंद्र सरकार के युरेनियम खनन के प्रस्ताव का राज्य सरकार ने विरोध किया एवं कहा कि वन्य प्राणियों की कीमत पर युरेनियम खनन नहीं करने दिया जाएगा। बैतूल ज़िले में युरेनियम होने की संभावना बताई गई थी।
मंगोलिया के दक्षिण गोबी रेगिस्तान में बड़े पैमाने पर खनन की योजना लगभग 10 वर्ष पूर्व वहां की सरकार ने बनाई थी। यह वह क्षेत्र है जहां हिम तेंदुए बहुतायत में पाए जाते हैं। अन्य स्थानों पर शिकार एवं अन्य पर्यावरणीय कारकों की वजह से इनकी संख्या काफी कम हो गई थी। दक्षिण मंगोलिया की 50 वर्षीय शिक्षिका बयारजारगल आगवांतसेरेन ने खनन की इस योजना का विरोध शुरू किया। उन्होंने लोगों को समझाया कि हिम तेंदुए उनकी पहचान हैं। खनन कार्य से यदि हिम तेंदुए समाप्त होते हैं तो उनकी पहचान भी मिट जाएगी। किसानों, चरवाहों एवं स्थानीय ग्रामीणों को लेकर अगवांतसेरेन ने कई स्थानों पर इस योजना का लगातार विरोध किया। बढ़ते जन-विरोध को देखते हुए सरकार ने 34 खदानों के लायसेंस निरस्त कर दिए और 18 लाख एकड़ क्षेत्र को प्राकृतिक संरक्षित पार्क घोषित किया। अगवांतसेरेन को इस कार्य के लिए 2019 में एशिया का प्रसिद्ध गोल्डमैन पुरस्कार प्रदान किया गया।
समुद्र के अंदर पाई जाने वाली मूंगे की चट्टानें (कोरल रीफ) कई समुद्री जीवों के लिए प्राकृतिक आवास तथा प्रजनन स्थल होती हैं। पिछले 30-40 वर्षों में प्रदूषण के कारण लगभग आधी कोरल रीफ समाप्त हो गई हैं। इस समस्या से निपटने हेतु दो युवाओं - सेम टीचर तथा गैटोर हाल्पर्न - ने केरेबियन द्वीप के बहामास नामक स्थान पर 14 करोड़ रुपए की लागत से दुनिया का पहला व्यावसायिक कोरल-रीफ फार्म प्रारंभ किया। फार्म में कोरल रीफ के छोटे-छोटे टुकड़े समुद्र से लाकर ज़मीन पर बनी पानी की टंकियों में उगाए जाते हैं। इन टंकियों में कोरल के टुकड़े 50 गुना तेज़ी से बढ़ते हैं। उगे हुए टुकड़ों को समुद्र में डाल दिया जाता है।
वाहनों से पैदा वायु प्रदूषण को थोड़ा नियंत्रित करने हेतु लंदन में प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर 8 अप्रैल से प्रदूषण टैक्स लगाया गया। लंदन के मध्य में अल्ट्रा-लो-टूरिज़्म ज़ोन बनाया गया जिसमें प्रवेश करने पर प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को 1150 से 9000 रुपए तक टैक्स देना होगा।
पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन कम करने एवं र्इंधन की बचत करने हेतु सिंगापुर में छत पर बगीचे वाली बसें शुरू की गर्इं। अभी सिंगापुर के चार मार्गों पर दस बसें चलाई जा रही हैं एवं धीरे-धीरे इनकी संख्या 400 तक बढ़ाई जाएगी। प्रत्येक बस से कार्बन उत्सर्जन में 52 प्रतिशत कमी तथा 25 प्रतिशत ईधन बचने का अनुमान है।
प्रदूषण की सही ढंग से रोकथाम नहीं करने एवं इसके कारण स्वास्थ्य बिगड़ने से मांट्रल (फ्रांस) की प्रशासनिक अदालत में एक मां-बेटी ने याचिका दायर कर सरकार से 1.25 करोड़ रुपए के हर्जाने की मांग की।
अधिकांश विकसित देश अपना प्लास्टिक व इलेक्ट्रॉनिक कचरा विकासशील देशों को भेज देते हैं। कई देश इस खतरनाक कचरे का अवैज्ञानिक तरीके से निपटान करते हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इस खतरनाक सच्चाई को जानकर मलेशिया की महिला पर्यावरण मंत्री यिओ बी यीन ने 3000 मीट्रिक टन कचरा अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों को वापस भेजने का निर्णय लिया।
पानी पर्यावरण का महत्वपूर्ण भाग है परंतु इसकी उपलब्धता घटती जा रही है। इसी संदर्भ में सूखे से प्रभावित ऑस्ट्रेलिया के शहर सिडनी में जल प्रतिबंध नियमों के तहत जल खुला छोड़ना अपराध घोषित किया गया। न्यू साउथ वेल्स सरकार के अनुसार यह नियम जून से लागू कर दिया गया है।
जंगल एवं पेड़ भी पर्यावरण के अहम भाग होते हैं। अत: उनको बचाने के प्रयास भी सराहनीय है। ब्रिाटिश कोलंबिया प्रान्त (कनाडा) के डार्कवुड नामक संरक्षित क्षेत्र में पेड़ पौधों एवं जीवों की 40 दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं। नेचर कंज़रवेंसी ऑफ कनाडा नामक एक स्वैच्छिक संगठन इस क्षेत्र की देखभाल करता है। इस क्षेत्र का लगभग 80 वर्ग कि.मी. का भाग किसी की निजी मिल्कियत में था जो संरक्षण कार्य में बाधा पैदा करता था। इस परेशानी को देखकर उपरोक्त संगठन ने जुलाई 2019 में यह निजी मिल्कियत का भाग 104 करोड़ रुपए में खरीद लिया एवं संरक्षण का कार्य बेहतर तरीके से किया।
लगभग ऐसा ही स्कॉटलैंड में भी हुआ। यहां एक पहाड़ी पर देवदार के प्राचीन पेड़ बड़ी संख्या में लगे हैं। सरकारी रिकॉर्ड में यह पहाड़ी किसी की निजी संपत्ति के रूप में दर्ज थी। पहाड़ी के आसपास बसे लोगों को यह डर हमेशा बना रहता था कि संपत्ति का मालिक कभी भी देवदार के प्राचीन पेड़ों को कटवा देगा। इन प्राचीन पेड़ों को बचाने हेतु लोगों ने एक ट्रस्ट बनाया। ट्रस्ट के माध्यम से धन एकत्र करके 15 करोड़ रुपए में पहाड़ी को ही खरीद लिया। ट्रस्ट के लोग अब देवदार पेड़ों को तो बचा ही रहे हैं, साथ में अन्य पेड़ पौधे भी लगा रहे हैं ताकि पूरी पहाड़ी हरी-भरी हो जाएं।
जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से पैदा विकिरण के कारण ज़्यादातर पेड़ क्षतिग्रस्त हो गए थे। वर्तमान में 4 कि.मी. के क्षेत्र में 46 में से 30 पेड़ ज़्यादा क्षतिग्रस्त पाए गए। इन सभी पेड़ों को बचाने हेतु अगस्त 2019 तक लगभग 1.60 करोड़ रुपए की राशि एकत्र हो गई थी। पेड़ों को बचाने हेतु प्रभावित भाग हटाए जाएंगे एवं रसायनों का लेप लगाया जाएगा ताकि भविष्य में और संक्रमण न हो। कमज़ोर तनों एवं शाखाओं को सहारा देकर जड़ों में खाद भी दी जाएगी।
ब्रिटेन के कई शहरों (डार्लिंगटन, बकिंगहैम, ग्लॉचेस्टर, वार्विकशावर) में भवन निर्माताओं ने 500 पेड़ों को जालियों से ढंक दिया ताकि पक्षी घोंसला न बनाएं एवं गंदगी न फैले। स्थानीय लोग इस कार्य से नाराज़ हुए एवं इसके विरोध में न्यायालय में याचिका दायर की। विरोध स्वरूप कई स्थानों पर जालियां तोड़ी गई एवं पेड़ों पर हरी पट्टियां बांधी गई। लगातार बढ़ता विरोध देखकर भवन निर्माताओं ने सारे पेड़ों से जालियां हटा लीं।
हमारे देश में हरियाणा, दिल्ली तथा छत्तीसगढ़ में पेड़ बचाने के प्रयास हुए। हरियाणा सरकार ने 24 फरवरी 2019 को विधान सभा में पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम में संशोधन को स्वीकृति प्रदान की थी। इस स्वीकृति से 60 हज़ार एकड़ वन भूमि पर गैर-वानिकी एवं निर्माण कार्य को छूट दी गई। इसके विरोध में फरीदाबाद तथा गुड़गांव में कई प्रदर्शन हुए एवं कहा गया कि इससे अरावली का बड़ा जंगल क्षेत्र समाप्त हो जाएगा। विरोध के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर नाराज़ी व्यक्त करते हुए संशोधन पर रोक लगाई। दिल्ली सरकार ने कहा कि विकास कार्यों के लिए पेड़ काटने की अनुमति तभी मिलेगी जब पेड़ों की कुल संख्या में से 80 प्रतिशत स्थानांतरित किए जाएंगे। इस अधिसूचना पर लोगों से सुझाव भी मांगे गए थे।
जगदलपुर (छत्तीसगढ़) के बेलाडीला में खनन की अनुमति के विरोध में जून में 200 गांवों के लोगों ने कई दिनों तक प्रदर्शन किए। खनन हेतु 20 हज़ार पेड़ काटे जाने थे। कई स्थानों पर तीर-कमान के साथ पेड़ों की पहरेदारी की गई। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - April 2020
- कयामत से मात्र 100 सेकंड दूर कयामत की घड़ी
- 2019 में पर्यावरण बचाने के प्रेरक प्रयास
- वैकल्पिक ईंधन की ओर भारत के बढ़ते कदम
- सौर ऊर्जा की मदद से ईंधन धन निर्माण
- एक अंधविश्वास का इतिहास
- स्पिट्ज़र टेलिस्कोप की महान उपलब्धियां
- विज्ञान शिक्षा का मकसद और पद्धति
- रासायनिक हथियारों से बचाव के लिए जेनेटिक उपचार
- पोषण कार्यक्रमों की कितनी पहुंच है ज़रूरतमंदों तक
- नया कोरोना वायरस कहां से आया?
- भारत में गर्म शहरी टापू
- अम्लीय होते समुद्र के प्रभाव
- सबसे बड़े भाषा डैटाबेस तक पहुंच हुई महंगी
- फेसबुक डैटा शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध
- गंध और मस्तिष्क का रिश्ता
- साढ़े पांच हज़ार वर्ष पुरानी चुईंगम
- प्राचीन मिस्र के पुजारियों की कब्रगाह मिली
- तीन हज़ार साल पुराना शव बोला!
- बिल्ली को मिली कृत्रिम पैरों की सौगात
- आसान नहीं है चीतों का पुनर्वास
- नींद को समझने में छिपकली की मदद
- भेड़ियों की नई प्रजाति विकसित हुई
- क्यों करती है व्हेल हज़ारों किलोमीटर का प्रवास
- पृथ्वी का एक नया युग: चिबानियन
- बरमुडा त्रिकोण के मिथक का पुन: भंडाफोड़