नोबेल पुरस्कारों की घोषणा के बाद हर बार की तरह इस बार के इगनोबेल पुरस्कार की भी घोषणा की गई। 1991 से हर वर्ष इगनोबेल पुरस्कार भी उन वैज्ञानिकों को दिए जाते हैं जिनकी खोज पहले तो सबको हंसाती है और फिर गंभीर चिंतन करने पर विवश करती है। इस वर्ष तस्मानिया में कार्यरत ऑस्ट्रेलिया के शोधार्थी को इस खोज के लिए पुरस्कृत किया गया कि वॉम्बेट नामक जंतु की विष्ठा घनाकार (क्यूब) क्यों होती है। पुरस्कार प्राप्त करने वाली पैट्रेशिया यंग और 5 साथियों को यह पुरस्कार भौतिकी में प्राप्त हुआ।
विश्व के अनेक वैज्ञानिक जंतुओं की विष्ठा पर शोध करके आंकड़े बटोरते हैं। उदाहरण के लिए कई बार वैज्ञानिकों को डायनासौर्स की विष्ठा (कोप्रेलाइट) के 6 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म प्राप्त होते हैं। विष्ठा का बारीकी से अध्ययन करके यह बताया जा सकता है कि वे मांसाहारी थे या शाकाहारी या सर्वाहारी थे और भोजन में क्या खाते थे - फल-फूल खाते थे, घास खाते थे या छाल खाते थे।
हाल ही में विष्ठा पर शोध के लिए ‘इन विट्रो’ एवं ‘इन विवो’ की तर्ज़ पर एक नया शब्द गढ़ा गया है: ‘इन-फिमो’। जब शोध टेस्ट ट्यूब, बीकर या पेट्री डिश जैसे कांच के बर्तन में होता है तो उसे ‘इन विट्रो’ कहते हैं और जब प्रयोग जीवित प्राणी में होता है तो ‘इन विवो’। ‘फिमो’ शब्द लेटिन भाषा के शब्द ‘फिमस’ से लिया गया है जिसका मतलब ‘गोबर’ है।
विष्ठा की बातें करना अधिकांश लोगों को बेकार लग सकता है। कुछ एक बीमारी के प्रकरणों में तो डॉक्टर ने भी आपसे मल के नमूने एकत्रित कर प्रयोगशाला में टेस्ट करने भेजे ही होंगे। इसलिए कुछ वैज्ञानिकों के लिए विष्ठा या मल से प्राप्त आंकड़े सोने की खदान हो सकते हैं।
पैट्रेशिया यंग अटलांटिक जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में जानवरों में तरल पदार्थ यांत्रिकी का अध्ययन करती हैं। वे उन वैज्ञानिकों में से नहीं है जो झक सफेद एप्रन पहनकर साफ-सुथरी प्रयोगशाला में काम करते हैं। वे चिड़ियाघर पहुंचकर वॉम्बेट को घनाकार विष्ठा करते देखना चाहती थीं और वे देखते ही तुरंत ही समझ गई कि इस प्राणी की आंत में तरल यांत्रिकी की कोई परेशानी है जिसे वह अध्ययन कर बता सकती हैं।
यंग ने इससे पहले शरीर के अनेक तरल पदार्थों जैसे लिम्फ, रक्त, मूत्र और विष्ठा पर अध्ययन किया है। पर वॉम्बेट की विष्ठा के घनाकार आकार से वे आश्चर्य चकित थी। विष्ठा दो मुख्य आकृतियों में त्यागी जाती है। पहले समूह में वे जंतु आते हैं जिनमें बेलनाकार विष्ठा त्यागी जाती है। इस समूह में मानव, कुत्ते एवं बिल्ली परिवार हैं। एक दूसरा समूह हिरण, बकरी तथा खरगोश का है जिनमें विष्ठा गोल आकार (मिंगनी) की होती हैं। वॉम्बेट में हमें तीसरा आकार - घन - देखने को मिलता है।
कौन है वॉम्बेट?
ये ऑस्ट्रेलिया के चार पैर वाले नाटे कद के तगड़े भालू जैसे दिखने वाले मार्सुपियल्स हैं (जिनके बच्चे पैदा होने के बाद कुछ अवधि के लिए पेट पर स्थिति एक थैली में विकसित होते हैं)। सिर के अगले सिरे से लेकर पूंछ तक की लंबाई 1 मीटर के करीब होती है। कुतरने वाले जंतुओं जैसे सामने के बड़े दांत और शक्तिशाली पंजों से ये जमीन में बहुत फैली हुई सुरंग जैसा बिल बनाते हैं। निशाचर होने के कारण ये जंगलों में अक्सर दिखते तो नहीं है परंतु इनकी विष्ठा को पहचानकर इनकी मौजूदगी का आभास हो जाता है। ये शाकाहारी जंतु हैं और पत्तियां, घास, जड़ें तथा छाल खाते हैं। इनके जबड़ों में केनाइन दांत अनुपस्थित रहते हैं तथा ये अन्य घास खाने वाले जंतुओं की तरह जुगाली भी करते हैं।
मादा वॉम्बेट प्रजनन काल में केवल एक बच्चे को जन्म देती है। मात्र 21 दिनों तक बच्चादानी में पलकर बच्चे अविकसित अवस्था में ही शरीर से बाहर निकल आते हैं पर मादा उन्हें बाकी के सात महीने पेट से लगी थैली में रखकर पालती है। वहीं ये वॉम्बेट मां का दूध चाटकर बड़े होते हैं।
विचित्र विष्ठा
विष्ठा पर शोध करने वाली यंग को तुरंत समझ आ गया कि शरीर की बनावट एवं कार्यिकी के आधार पर घनाकार विष्ठा सही नहीं है और अत्यंत दुर्लभ मामला है। समुद्री घोड़ा (सी हार्स नामक मछली) की दुम के अलावा जंतुओं में वर्गाकार या घनाकार संरचना देखने को ही नहीं मिलती है। सूर्य, पृथ्वी, चंद्रमा और अन्य ग्रह भी गोलाकार ही हैं। आखिरकार पहेली को सुलझाने के लिए दुर्घटना में मरे दो वॉम्बेट की आंत निकालकर यंग के पास भेजी गईं। वॉम्बेट की आंत सभी शाकाहारी जानवरों के समान ही लंबी थी। 19 फीट लंबी आंत का अंतिम 5 फीट का आकार असामान्य रूप से बेलनाकार ना होकर घनाभ था। अमाशय से लुगदी के समान भोजन जब आंत में आता था तो लसलसा व नरम गूंथे हुए आटे के समान होता है और अंतिम 5 फीट में पहुंचने से पूर्व भी वह नरम एवं बेलनाकार ही होता है। परंतु अन्तिम पांच फीट में आंत इस विष्ठा को 2×2 सेंटीमीटर के घन में बदल देती है।
सवाल था कि आंत कैसे इन घनों को कम घर्षण करते हुए शरीर से त्यागती है और अगर विष्ठा को निकालने वाला बल एक समान रूप से न लगे तो क्या होगा? प्रश्नों के उत्तर के लिए वैज्ञानिकों ने एक जुगत लगाई। उन्होंने वॉम्बेट के आंत के आकार जैसा एक गुब्बारा लिया और आंत के अन्दर फिट कर दिया। आंत के घन बनाने वाले हिस्सों पर निशान बनाए गए। हवा भरने पर गुब्बारे ने वही आकार लिया जो आंत की दीवारों का था। अब यह देखा गया कि विष्ठा आगे बढ़ने के दौरान पूरी आंत एक जैसी है या नहीं। वैज्ञानिकों ने पाया कि आंत के अंतिम 5 फीट की लंबाई में सारे ऊतक एक जैसे नहीं है। आंत में कुछ हिस्सा नरम है तो कुछ कठोर है और खिंचता नहीं है। जब आंत विष्ठा को मल द्वार की ओर भेजने के लिए सिकुड़ती है तो पूरी लंबाई में समान रूप से कार्य नहीं कर पाती है। आंत के कुछ भाग में विष्ठा को आगे बढ़ा दिया जाता है और कुछ में नहीं। इससे किनारों वाले टुकड़े घनाकार बनते हैं।
क्यों वॉम्बेट घनाकार विष्ठा बनाते हैं? इसका सबसे प्रचलित कारण यह माना जाता है कि इससे वे अपने अधिकार क्षेत्र (इलाके) की निशानदेही कर सकते हैं। घनाकार विष्ठा लुढ़केगी भी नहीं और लंबे समय तक गंध के ज़रिए अधिकार क्षेत्र का विज्ञापन भी करती रहेगी। किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। यद्यपि विष्ठा की गंध अधिकार क्षेत्र को जताती है पर जहां-जहां वॉम्बेट अपना जीवन व्यतीत करते हैं वह सूखा क्षेत्र होता है। आंत का आखरी भाग हमेशा भोजन से पानी की हर बूंद को सोखकर शरीर में पानी की कमी को पूरा करने की कोशिश करता है। चिड़ियाघर में जहां इन्हें भरपूर पानी मिलता है घनाकार विष्ठा के किनारे अक्सर गोलाकार होने लगते हैं। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - February 2020
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