ऐसा माना जाता रहा है कि अन्य स्तनधारियों (जैसे कुत्तों, चूहों वगैरह) की तुलना में मनुष्य की सूंघने की क्षमता काफी कमज़ोर है। किंतु हाल में साइन्स पत्रिका में प्रकाशित एक समीक्षा पर्चे में इस विचार के इतिहास पर नज़र डालते हुए बताया गया है कि मनुष्यों की सूंघने की क्षमता भी उन्नीस नहीं है।
रटजर्स विश्वविद्यालय के जॉन मैककेन ने पिछले कई वर्षों में मानव घ्राण शक्ति पर हुए अनुसंधान की तफशीश की है। मैककेन ने पाया कि मनुष्य की कमज़ोर घ्राण क्षमता के विचार की जड़ें उन्नीसवीं सदी के मशहूर शरीर रचना शास्त्री पौल ब्रोका के एक पर्चे में देखी जा सकती है। ये वही पौल ब्रोका हैं जिन्होंने मनुष्य के मस्तिष्क में वह क्षेत्र खोजा था जो वाणी के लिए जवाबदेह होता है। इसे ब्रोका क्षेत्र कहते हैं।
ब्रोका ने देखा था कि मनुष्यों के मस्तिष्क का अग्र भाग (फ्रंटल लोब) शेष स्तनधारियों की तुलना में बड़ा होता है और मनुष्यों की संज्ञान व भाषा की क्षमता कहीं अधिक विकसित भी है। चूंकि मनुष्य के घ्राण बल्ब अन्य स्तनधारियों की तुलना में छोटे होते हैं, इसलिए ब्रोका ने निष्कर्ष निकाला कि मनुष्यों की सूंघने की क्षमता भी कमतर होनी चाहिए। उन्होंने इसकी कोई जांच वगैरह नहीं की थी। किंतु उनकी प्रतिष्ठा के चलते विचार टिका रहा।
बाद में आने वाले वैज्ञानिक ब्रोका के निष्कर्ष को सही मानकर आगे बढ़े। इस बारे में और प्रमाण भी जुटते गए। जैसे पता चला कि मनुष्यों में गंध संवेदना से सम्बंधित जीन्स भी कम होते हैं। यह विचार उभरा कि हमारी अन्य संवेदनाओं (जैसे रंग-संवेदना) के विकास के दबाव में गंध संवेदना को विकास की प्रक्रिया में उतनी तरजीह नहीं मिली।
किंतु हाल के कई अनुसंधान दर्शा रहे हैं मनुष्यों की गंध संवेदना और गंध संवेदना के लिए ज़िम्मेदार संरचनाओं की संख्या वगैरह को लेकर हम कितने गलत थे। जैसे एक अध्ययन में पता चला है कि कुत्ते, चूहे और मनुष्य केलों की गंध के प्रति लगभग बराबर संवेदी होते हैं। और तो और, 2013 में किए गए एक अध्ययन में पता चला था कि चूहों के मुकाबले मनुष्य पेशाब के दो रसायनों की गंध के प्रति ज़्यादा संवेदी होते हैं। चूहे कतिपय अन्य मूत्र-रसायनों के प्रति ज़्यादा संवेदी होते हैं। इसी प्रकार से 2017 में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष था कि मनुष्य स्तनधारियों के रक्त की गंध के प्रति अधिक संवेदी होते हैं।
गंध संवेदना के लिए जवाबदेह घ्राण बल्बों की संख्या को लेकर भी नए प्रमाण बताते हैं कि स्त्रियों में इनकी संख्या पुरुषों से अधिक होती है और स्त्रियों में ये चूहों से भी अधिक संख्या में पाए जाते हैं।
पूरे मामले में एक दिक्कत यह भी रही है कि गंध संवेदना का कोई मानक नहीं है। इस वजह से गंध संवेदना की कोई एकमेव तुलना संभव नहीं है। किसी गंध के मामले में चूहे और कुत्ते बेहतर हैं, तो किसी गंध के संदर्भ में मनुष्य बीस साबित होते हैं। लिहाज़ा, यह कहना उचित होगा कि गंध संवेदना एक विविधतापूर्ण बहुआयामी संवेदना है जिसके बारे में कोई सार्वभौमिक निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - July 2017
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