टेक्सास विश्व विद्यालय के विकास वादी जीव विज्ञानी क्रिश्चियन रेबलिंग ने ब्राज़ील के अमेज़न के जंगल में एक निहायत विचित्र चींटी खोजी है। यह इतनी विचित्र है कि इसके वर्गीकरण के लिए चींटियों का एक नया उप-कुल निर्मित करना पड़ा है।
वास्तव में, रेबलिंग तो किसी अन्य चींटी की खोज में अमेज़न के जंगलों में भटक रहे थे मगर तभी इस चींटी ने उनका रास्ता काटा। यह कुछ अजीब-सी दिखी तो उन्होंने इसे पकड़कर एक शीशी में रख लिया। इसे मार्टिएलिस ह्यूरेका नाम दिया गया है। इस खोज का विवरण प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेज़ में प्रकाशित हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि चींटियों का विकास ततैयों यानी वास्प से हुआ है। इसलिए वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि चींटी की कोई प्राचीन प्रजाति मिलेगी तो वह ततैयों जैसी दिखेगी। क्रिश्चियन रेबलिंग का कहना है कि मार्टिएलिस ह्यूरेका लगती तो ऐसी है मानो यह कोई अवशिष्ट प्रजाति है जिसका विकास शेष चींटियों से बहुत पहले ही अलग दिशा में होने लगा था। मगर मार्टिएलिस ततैयों जैसी तो बिलकुल नहीं दिखती।
यह हल्के पीले रंग की है और साथ में नेत्रहीन भी। इससे लगता है कि यह ज़मीन के अन्दर रहती होगी। इसके मुखांग बहुत नाज़ुक हैं और इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि यह मुलायम अकशेरुक जन्तुओं को कुतरती होगी। इसकी एक विशेषता यह है कि इसकी अगली टाँगें तो लम्बी और मज़बूत हैं मगर पिछली दो जोड़ी टाँगें एकदम छोटी-छोटी हैं। इन्हें देखकर विश्वास ही नहीं होता कि यह चलती भी होगी। मगर यह चलती तो ज़रूर है क्योंकि इसने रेबलिंग का रास्ता काटा था।
खैर, रेबलिंग ने जब इसका अध्ययन किया तो पाया कि ऐसी चींटी ‘मानक पहचान मार्गदर्शिकाओं’ में नहीं है। यह तो एक नई प्रजाति है। और नई प्रजाति ही नहीं, यह तो चींटियों के एक नए उप-कुल, मार्टिएलिनी की संस्थापक है। इस नए उप-कुल की यह एकमात्र सदस्य ब्राज़ील के साओ पौलो विश्वविद्यालय के जन्तु संग्रहालय में सुरक्षित रखी है। रेबलिंग इसके और साथियों की तलाश करना चाहते हैं। चूँकि चींटियाँ सामाजिक जीव हैं, इसलिए पूरी उम्मीद है कि उस जगह और भी चींटियाँ मिलेंगी।
इस चींटी को देखकर मशहूर प्रकृतिविद ई.ओ. विल्सन ने तो इसे ‘मंगल ग्रह की चींटी’ का खिताब तक दे दिया। ऐसा माना जा रहा है कि प्राचीन काल में चींटियों के शुरुआती विकास के दौरान मार्टिएलिस ने अलग दिशा पकड़ ली थी। यह चींटियों की दुनिया में वैसा ही उदाहरण है जैसा स्तनधारियों की दुनिया में प्लेटिपस जो स्तनधारी होने के बावजूद अण्डे देता है। अन्य जीव वैज्ञानिकों का ख्याल है कि इस खोज से नसीहत यह मिलती है कि हमें प्रकृति की खोज करते हुए दिमाग खुला रखना चाहिए।
— स्रोत फीचर से साभार