किशोर पंवार [Hindi PDF, 121 kB]

छत पर मैंने बहुत सारे गमले लगा रखे हैं। उनमें वांछित पौधों के अलावा कुछ खरपतवार और घास-फूस भी उगी है। इन गमलों पर लगी घास पर अक्सर एक छोटी-सी तितली को मैंने मण्डराते हुए देखा है - मटमैले सफेद रंग की। उसके दोनों पंखों पर, दरअसल चारों पंखों पर क्योंकि एक तरफ से देखने पर दो पंख ही दिखाई देते हैं, बाहरी किनारों पर काली धारियों की एक बॉर्डर-सी बनी थी। पंखों के अन्दरूनी हिस्सों पर चार-पाँच काले धब्बे थे। आँखें बड़ी-बड़ी और एन्टीना काले-सफेद पट्टों वाले जिनके सिरे मुगदराकार थे। जब इसका नाम पता किया तो मालूम हुआ कि यह ‘पेल ग्रास ब्लू’ है।

इस तितली के नर के पंखों की ऊपरी सतह चमकदार नीली होती है और मादा की भूरी। पंखों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बों का संयोजन उसे सुन्दर बनाता है। ऊपरी पंख पर चार-पाँच भूरे काले गोल धब्बे होते हैं। पिछले पंखों पर लगभग एक गोल घेरे में 10-12 धब्बे होते हैं। पंखों का बाहरी किनारा रोएँदार नज़र आता है जिसके नीचे धारियों के पास हल्के रंग की ‘ज्’ के आकार की कई रचनाएँ बनी होती हैं। धब्बों के गोल घेरे के अन्दर भी उड़ती चिड़िया-सी आकृति बनी होती है।
इस तितली के बारे में इतना सब पढ़ने के बाद आपका मन भी इसे देखने का हो रहा होगा। तो कोशिश करते रहिए। बगीचे में या घर के गमलों के आसपास भी इस तितली को देखा जा सकता है। सुबह-सुबह इसे देखेंगे तो इसके काफी पास जा सकेंगे और ऐसे वक्त यदि हाथ में हेंडलेंस हो तो क्या बात है।

जिस पौधे से इस तितली का खास रिश्ता है उसका नाम ऑक्ज़ेलिस कार्नीकुलेटा है। आम बोलचाल में इसे खट्टी बूटी कहा जाता है। ऑक्ज़ेलिडेसी कुल के इस पौधे की पत्तियाँ खट्टी होती हैं।
कुछ दिनों बाद वही तितली मुझे गमले में उग आई खट्टी बूटी पर बैठी दिखाई दी। कहीं आसपास फूल नहीं थे। तितली वहाँ क्या कर रही है, यह जानने के लिए जब गमले के थोड़ा पास गया तो तितली तो उड़ गई परन्तु जिस पौधे की पत्तियों पर वह बैठी थी, उसकी हरी-हरी पत्तियों पर सफेद, लगभग पारदर्शी मोटी धारियाँ नज़र आईं। पत्तियों को उलट-पलट कर देखने पर एक छोटे-से प्यूपा का खाली खोल दिखाई दिया। कुछ और पत्तियों को पलटा तो हरे रंग के एक-दो छोटे लार्वा भी नज़र आए। अब तक यह तो पक्का हो गया था कि ये ज़रूर किसी तितली के लार्वा एवं प्यूपा हैं। मैंने इनके फोटो लिए और ‘कॉमन बटर फ्लाइज़ ऑफ इंडिया’ किताब में इस तितली को ढूँढ़ा। मुझे पता चला कि एक तितली है ‘पेल ग्रास ब्लू’ जो ऑक्ज़ेलिस कार्नीकुलेटा की पत्तियों पर अपने अण्डे देती है। सात-आठ दिन फिर ऐसे ही बीत गए फिर एक दिन कुछ और पत्तियों की खोजबीन की तो ऑक्ज़ेलिस की एक पत्ती के नीचे एक प्यूपा मिल गया। यह ताज़ा-ताज़ा बना था क्योंकि उसके पास ही कुछ काले रंग के द्रव की बूँदें चिपकी थीं। पिछली बार मिले प्यूपा के खाली खोल से इसे मिलाया तो तय हो गया कि ये एक ही जैसे हैं। अब तक यह निश्चित हो गया था कि जो तितली गमले की घास-फूस पर मण्डरा रही थी, ये उसी के लार्वा एवं प्यूपा हैं। इस तितली का नाम ज़रूर ‘पेल ग्रास ब्लू’ है परन्तु इसका घास (ग्रास) से कुछ लेना-देना नहीं है। न तो यह घास पर अपने अण्डे देती है, न इसके लार्वा घास खाते हैं और न ही घास के फूलों से तितली को मकरन्द मिलता है। तो फिर इसका नाम ‘पेल ग्रास ब्लू’ की बजाय ‘पेल ऑक्ज़ेलिस ब्लू’ या ‘खट्टी बूटी ब्लू’ होना चाहिए, या नहीं?

जितनी सुन्दर और मज़ेदार यह तितली है ऑक्ज़ेलिस भी उतना ही शानदार पौधा है। इसकी पत्तियाँ बड़ी सुन्दर हैं और वैसे ही सुन्दर हैं इसके गहरे पीले रंग के छोटे-छोटे फूल। दरअसल, यह एक खरपतवार है जो यूरोप से हमारे यहाँ आई है। नम छायादार बगीचों, नर्सरी और लॉन में यह खूब फैलती है। इसे निकालना भी खासा मुश्किल है। लगभग साल भर इस पर फूल आते हैं। तना रनर (रेंग कर बढ़ने वाला) का श्रेष्ठ उदाहरण है। गमलों में यह आ जाए तो उखाड़ना मुश्किल होता है। इसकी मूसला जड़ बड़ी गहरी और मज़बूत होती है। गमले में यह गोल-गोल घूमकर फैलती रहती है। पत्तियाँ मेथी की भाजी की तरह परन्तु तीन-तीन के जोड़े में ‘स्लीपिंग गति’ (sleep movements) दर्शाती हैं यानी रात होते ही बन्द हो जाती हैं। फूल लगभग 2 से.मी. लम्बा एक केप्सूल होता है जिस पर पाँच धारियाँ होती हैं। इसमें ढेरों बीज भरे होते हैं। बीजों का टेस्टा (खोल) इलास्टिक होता है। पका फल स्पर्श संवेदी (गुल तेवड़ी जैसा) होता है। हल्के-से छूते ही ढेरों राई के दाने के बराबर कत्थई रंग के बीजों और सफेद टेस्टा की चारों दिशाओं में बौछार होने लगती है। यह नज़ारा वाकई देखने लायक है। आप ज़रूर छूकर इसका यह जादू देखें। और तितली की सुन्दरता का लुत्फ उठाएँ यानी, एक तीर से दो निशाने।


किशोर पंवार: होल्कर साइंस कॉलेज, इन्दौर में बीज तकनीकी विभाग के विभागाध्यक्ष और वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं।
फोटो: किशोर पंवार।