जब भी खेलकूद की बात आती है, हमें बच्चों का ख्याल आता है। लेकिन क्या खेल सिर्फ मनुष्य के बच्चे खेलते हैं? हाल का एक अध्ययन बताता है कि प्रयोगशाला में भौंरे लकड़ी की छोटी-छोटी गेंदों को सिर्फ मज़े के लिए इधर-उधर लुढ़काते हैं। इससे समझ में आता है कि भौंरों का संरक्षण और कृत्रिम छत्तों में उनके साथ अच्छा सलूक ज़रूरी है।
जानवरों में, खेल मस्तिष्क के विकास में मदद करता है: जैसे, लोमड़ी के बच्चों में लड़ने का खेल खेलना सामाजिक कौशल सीखने में मदद करता है, और शिकार आसपास न हो तो भी डॉल्फिन और व्हेल उछलते-कूदते रहते हैं और गोल-गोल घूमते हैं। 2006 में हुए एक अध्ययन ने बताया था कि युवा ततैया (पॉलिस्टस डोमिनुला) लड़ने का खेल खेलते हैं।
वर्तमान अध्ययन में क्वीन मैरी युनिवर्सिटी के व्यवहार पारिस्थितिकीविद लार्स चिटका और उनके साथी देख रहे थे कि कैसे भौंरे (बॉम्बस टेरेस्ट्रिस) लकड़ी की गेंदों को खास जगह पर पहुंचाने का जटिल व्यवहार अपने साथियों से सीखते हैं। (यदि भौंरे गेंद को सही जगह पर पहुंचा देते थे, तो मीठे पेय का इनाम दिया जाता था।) इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने देखा कि कुछ भौंरे गेंदों को तब भी सरकाते रहे जब उन्हें कोई इनाम नहीं मिला। ऐसा लग रहा था कि भौंरों को गेंदों के पास लौटना, उनके साथ खेलना और उन्हें लुढ़कना अच्छा लग रहा था।
भौंरो के इस व्यवहार को तफसील से समझने के लिए दल की एक साथी समदी गालपायगे ने भौंरो के लिए एक सेटअप तैयार किया। एक-मंज़िला कमरे के एक छोर पर एक छत्ता था जिसके एकमात्र द्वार से बाहर निकलने पर रास्ते में क्रीड़ा कक्ष पड़ता था। कमरे के दूसरे छोर पर भौंरों के लिए पराग और मीठा पानी रखा गया था। क्रीड़ा कक्ष को दो भागों में बांटा गया था, हरेक भाग में भौंरों से थोड़ी बड़ी साइज़ की लकड़ी की गेंदें थी। गेंदें अपने आप नहीं लुढ़कती थीं, इसलिए भौंरो को उनके साथ खेलने के लिए तिकड़म भिड़ाना पड़ता था।
पहले प्रयोग में, शोधकर्ताओं ने कक्ष के एक भाग में गेंदों को इस तरह रखा कि वे अचर रहें और दूसरे भाग की गेंदें लुढ़काने पर लुढ़क सकती थीं। भोजन तक पहुंचने के लिए भौंरो को इस क्रीडा कक्ष – और गेंदों के बीच - से होकर जाना पड़ता था। प्रयोग में देखा गया कि भौरों ने कक्ष के उस भाग से जाना ज़्यादा पसंद किया जहां गेंद लुढ़क सकती थीं - इस भाग में उन्होंने औसतन 50 प्रतिशत अधिक बार प्रवेश किया। लगता है कि भौंरो को मात्र गोल चीज़ें नहीं, बल्कि लुढ़कने वाली चीज़ें अच्छी लगती हैं।
प्रत्येक भौंरे ने गेंद कितनी बार लुढ़काई इसकी गणना करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ ही भौंरो ने केवल एक या दो बार गेंद लुढ़काई, लेकिन बाकियों ने दिन में करीब 44 बार तक गेंदों को लुढ़काया था। बार-बार गेंद को लुढ़काना दर्शाता है कि उन्हें ऐसा करने में आनंद आ रहा था।
इस बात की पुष्टि करने के लिए शोधकर्ताओं ने भौंरो के साथ एक नए सेट-अप में प्रयोग किया। पिछले डिज़ाइन की तरह इस छत्ते से निकल कर भोजन तक पहुंचने के लिए भी भौंरो को क्रीडा कक्ष से होकर गुज़रना पड़ता था। लेकिन इस प्रयोग में, पहले 20 मिनट के लिए क्रीडा कक्ष का रंग पीला रखा गया था और उसमें गेंदें रखी गई थीं। फिर इसकी जगह कक्ष को गेंद-रहित नीले रंग का कर दिया गया। पीले रंग का सम्बंध गेंदों के साथ जोड़ने के लिए शोधकर्ताओं ने छह बार बारी-बारी नीले-पीले रंग के कक्षों की अदला-बदली की। अंत में, शोधकर्ताओं ने गेंदें हटाकर भौंरो को पीले या नीले रंग का कक्ष चुनने का विकल्प दिया।
एनिमल विहेवियर में शोधकर्ता बताते हैं कि लगभग 30 प्रतिशत अधिक भौंरो ने पीले रंग का कक्ष चुना; संभवतः इसलिए कि उन्हें गेंद लुढ़काने में मज़ा आ रहा था। शोधकर्ताओं ने गेंद-युक्त और गेंद-रहित कक्षों के रंग पलटकर प्रयोग दोहराया, तो भी ऐसे ही परिणाम मिले।
अध्ययन से यह भी पता चला कि युवा भौंरो ने गेंद को अधिक लुढ़काया। पक्षियों और स्तनधारियों में भी युवा जंतु अधिक खेलते हैं। शोधकर्ताओं को लगता है कि खेलने से जीवों के विकासशील मस्तिष्क को लाभ मिलता होगा - जैसे, मांसपेशियों के समन्वय को मज़बूत करने में। भौंरो का मस्तिष्क भी जीवन के शुरुआती दिनों (भोजन के लिए छत्ते से बाहर निकलने के पहले के समय) में नए कनेक्शन बनाने में अधिक सक्षम होता है। तो अगला सवाल यह है कि क्या गेंद लुढ़काने से भौंरो की फूलों से मकरंद प्राप्त करने की क्षमता में सुधार होता है?
वैसे, इस अध्ययन पर कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि हो सकता हैं गेंदें भौंरो के छत्ते के रख-रखाव सम्बंधी व्यवहार को उकसा रही हों – जैसे, छत्ते से मृत भौंरों की लाशों और अन्य मलबे को हटाना। वाकई भौंरे खेलने का आनंद ले रहे हैं यह दर्शाने के लिए खेल के अधिक उदाहरण देखने से मदद मिलेगी।
और भले ही भौंरे प्रयोग में खेल रहे हों, लेकिन अध्ययन से यह स्पष्ट नहीं है कि वे प्राकृतिक परिस्थितियों में भी ऐसा करेंगे या नहीं। संभव है कि प्रयोगशाला में भौंरो के पास खेलने के अधिक मौके होते हैं क्योंकि यहां वे शिकारियों से सुरक्षित होते हैं और उन्हें भोजन इकट्ठा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जंगलों में कठिन प्रतिस्पर्धा होती है और वहां सिर्फ मनोरंजन के लिए खेलने-लुढ़काने के लिए वक्त मिलना मुश्किल है।
बहरहाल, यदि वे खेलते हैं, तो कीटों में नैतिक लिहाज़ से भी इसे देखना महत्वपूर्ण हो सकता है। जानवरों के चारे के लिए कीटों को पाला जा रहा है, और उनकी भलाई सुनिश्चित करने के कोई नियम नहीं हैं। औद्योगिक उद्देश्य से जब मधुमक्खियों को ट्रक में भरकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है तो वे तनावग्रस्त हो जाती हैं, और बीमारियों की चपेट में आने और कॉलोनी के ढहने की संभावना होती है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके निष्कर्ष जंगली कीटों के लिए और अधिक सहानुभूति पैदा करेंगे। (स्रोत फीचर्स)
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