कोरोनावायरस के नए-नए संस्करणों ने टीकों की प्रभाविता को कम किया है। वर्तमान में प्रचलित ऑमिक्रॉन और उसके उप-संस्करण अधिक संक्रामक और शरीर की प्रतिरक्षा को चकमा देने में माहिर हैं। हालांकि वर्तमान टीके गंभीर बीमारी को रोकने में अभी भी सक्षम हैं लेकिन संक्रमण का सफाया करने की क्षमता कम हो गई है।
कई वैज्ञानिक संक्रमण को पूरी तरह से रोकने के लिए उस स्थान पर टीका देना चाहते हैं जहां वायरस सबसे पहले पहुंचता है - नाक। यह टीका नाक में स्प्रे के रूप में दिया जाता है इसलिए इसे कोई भी बड़ी आसानी से अपनी नाक में खुद डाल सकता है। फिलहाल 8 नासिका टीके विकास और तीन टीके क्लीनिकल जांच के चरण में हैं। लेकिन इनके विकास की प्रक्रिया काफी धीमी रही है। सबसे बड़ी चुनौती श्वसन मार्ग से टीका देने के ऐसे तरीके खोजना है जो प्रभावी होने के साथ सुरक्षित भी हों।
नाक से दिए जाने वाले टीकों का मुख्य उद्देश्य श्लेष्मा प्रतिरक्षा को सक्रिय करना है। श्लेष्मा प्रणाली नाक और श्वसन मार्ग के अन्य भागों तथा आंत के अस्तर में उपस्थित विशेष कोशिकाओं और एंटीबॉडीज़ पर निर्भर करती है। यह प्रतिरक्षा की प्रथम पंक्ति है।
कुछ नासिका स्प्रे में कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन को छोटी-छोटी बूंदों में कैद किया जाता है, जबकि कुछ अन्य में हानिरहित बनाए गए किसी वायरस के स्पाइक में विशिष्ट जीन को जोड़कर नाक में डाला जाता है। कुछ अन्य स्प्रे दुर्बलीकृत सार्स-कोव-2 का उपयोग करते हैं।
मांसपेशियों में दिए जाने वाले टीके तंत्रगत प्रतिरक्षा प्रक्रिया के तहत इम्यूनोग्लोबुलिन जी (IgG) एंटीबॉडीज़ का निर्माण करते हैं। जो पूरे शरीर में वायरस का पता लगाते हैं। नेज़ल स्प्रे एक अलग प्रकार की एंटीबॉडीज़ का निर्माण करते हैं (इम्यूनोग्लोबुलिन ए, IgA)। ये श्लेष्मा ऊतकों में फैल जाते हैं जहां कोरोनावायरस सबसे पहले हमला करता है। ये वायरस को शरीर में प्रवेश से पहले ही नष्ट कर देते हैं।
ये नेज़ल टीके श्लेष्मा के साथ-साथ तंत्रगत प्रतिरक्षा को भी शुरू करते हैं। हैमस्टर्स पर किए गए एक अध्ययन में मांसपेशीय टीके की तुलना में नासिका टीके से रक्त में अधिक मात्रा में एंटीबॉडीज़ पाई गईं।
श्लेष्मा प्रतिरक्षा के बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी के चलते नेज़ल टीके तैयार करना थोड़ा मुश्किल है। इसके अलावा नाक की मस्तिष्क से निकटता को देखते हुए अधिक सावधानी आवश्यक है। 2000 के दशक में स्विटज़रलैंड में नेज़ल फ्लू टीके से कुछ तंत्रिका समस्या उत्पन्न हुई थी जिसमें चेहरा अस्थायी रूप से लकवाग्रस्त हो जाता है।
एक ओर बात का ध्यान रखना ज़रूरी है। यह सुनिश्चित करना होगा कि स्प्रे छींक के माध्यम से बाहर न निकलें और किसी तरह से श्वसन मार्ग में रास्ता बनाते हुए श्लेष्मा की मोटी परत को पार कर जाए। सभी नासिका स्प्रे इसमें कामयाब नहीं हो पाए हैं।
कुछ टीकों के पहले चरण के परीक्षण के आशाजनक परिणाम मिले हैं। एक ऐसा नासिका स्प्रे भी तैयार किया गया है जो मांसपेशियों में दिए जाने वाले टीके के बूस्टर शॉट के रूप में काम करेगा। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - July 2022
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