प्रत्येक राष्ट्र के अपने राष्ट्रीय पशु, पक्षी, पुष्प आदि होते हैं। इनका चयन इन क्षेत्र के विशेषज्ञों और सरकार द्वारा कई पहलुओं और तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए किया जाता है। अभी हमारे देश में राष्ट्रीय तितली के चयन की प्रक्रिया की जा रही है और जल्द ही हमें राष्ट्रीय तितली भी मिल जाएगी। इस बार राष्ट्रीय प्रतीक के चयन की मुख्य विशेषता यह है कि देश में पहली बार राष्ट्रीय प्रतीक का चयन आम लोगों के द्वारा किया जा रहा है। इसलिए हमें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
तितलियों के चयन की बात से पहले यह समझने का प्रयास करते हैं कि भारत के राष्ट्रीय पक्षी का खिताब मोर (Pavocristatus) को क्यों दिया गया।
अद्भुत सौंदर्य रखने वाले मोर पक्षी दक्षिणी और दक्षिण पूर्वी एशिया में पाए जाते हैं। ये खुले वनों में वन्य पक्षी की तरह रहना पसंद करते हैं। नर अपनी रंग बिरंगी पूंछ खोलकर प्रणय निवेदन के लिए नाचता है। जब यह पक्षी पंख फैलाकर नाचता है तो इसका अनोखा नाच मन मोह लेता है और इसके खुले हुए सुंदर पंख हीरे-जड़ित पोशाक की भांति लगने लगते हैं। नीला मोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी है।
किंतु मोर को भारत का राष्ट्रीय पक्षी के रूप में चुने जाने का कारण सिर्फ उसका अद्भुत सौंदर्य ही नहीं रहा बल्कि अन्य कई कारण हैं। जब देश के राष्ट्रीय पक्षी का चयन किया जा रहा था तब मोर के अलावा कई पक्षियों के नाम भी शामिल थे। 1961 में माधवी कृष्णन ने अपने लेख में लिखा था कि उटकमंड में भारतीय वन्य प्राणी बोर्ड की बैठक हुई थी। इस बैठक में सारस क्रैन, ब्राह्मणी काइट, बस्टर्ड, और हंस के नामों पर भी चर्चा हुई थी। लेकिन इन सब में मोर को चुना गया।
दरअसल, इसके लिए जो गाइडलाइन्स बनाई गई थी उसके अनुसार राष्ट्रीय पक्षी घोषित किए जाने के लिए उस पक्षी का देश के सभी हिस्सों में पाया जाना ज़रूरी है। साथ ही आम आदमी इसे पहचान सके व इसे किसी भी सरकारी प्रकाशन में चित्रित किया जा सके। इसके अलावा यह पूरी तरह से भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा होना चाहिए। इन सब विशेषताओं के साथ मोर को 26 जनवरी 1963 को भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया।
अब राष्ट्रीय तितली के चयन की प्रक्रिया। भारत में पाई जाने वाली 1500 तरह की तितलियों में से तितली विशेषज्ञों की टीम ने इनके संरक्षण और पारिस्थितिकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए वोटिंग के लिए सात तितलियों को चुना है। आम लोग इन सात तितलियों में से किसी एक तितली को ऑनलाइन वोटिंग के ज़रिए चुन सकते है। सर्वाधिक वोट प्राप्त करने वाली प्रथम तीन तितलियों में से किसी एक तितली को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा राष्ट्रीय तितली चुना जाएगा।
ऐसा करने से आम लोगों में तितलियों के प्रति रुचि बढ़ेगी और वे इनका संरक्षण भी करेंगे। जैविक महत्व के साथ ही तितलियों की कोमलता, सुंदरता व सादगी से इन्हें राष्ट्रीय पहचान मिलना हम सभी के लिए गर्व की बात होगी।
तितलियां प्रकृति संरक्षण में राजदूत की भूमिका निभाती हैं। साथ ही वे महत्वपूर्ण जैविक संकेतक भी हैं जो हमारे पर्यावरण के बेहतर स्वास्थ्य को प्रतिबिंबित करती हैं। राष्ट्रीय तितली होने से लोगों में तितलियों के प्रति जागरूकता पैदा होगी। आम लोग भी तितलियों को उनके नाम से जान सकेंगे व इनसे प्रेम करेंगे।
राष्ट्रीय तितली के सर्वेक्षण के लिए प्रजातियों की अंतिम सूची कैसे तैयार की गई:
1. उस तितली का राष्ट्र के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक, पारिस्थितिक और संरक्षण महत्व हो।
2. वह करिश्माई होना चाहिए।
3. उसमें कोई ऐसा जैविक पहलू होना चाहिए जो लोगों को आकर्षित करे।
4. उसे आसानी से पहचाना, देखा और याद रखा जा सके।
5. उसकी प्रजातियों के कई रूप नहीं होने चाहिए।
6. उसके कैटरपिलर हानिकारक नहीं होने चाहिए।
7. वह बहुत आम नहीं होनी चाहिए।
8. वह उन प्रजातियों के अलावा होना चाहिए जो पहले से ही किसी राज्य की तितली घोषित है।
उपरोक्त मानदंडों को ध्यान में रखते हुए टीम ने लगभग 50 तितली प्रजातियों की अंतिम सूची तैयार की। फिर टीम के सदस्यों ने मतदान में स्कोरिंग प्रणाली का उपयोग करके निम्नलिखित सात प्रजातियों की अंतिम सूचि बनाई।
1. फाइव बार स्वॉर्डटेल (Graphiumantiphates): इस प्रजाति को पहली बार 1775 में पीटर क्रैमर द्वारा वर्णित किया गया था। यह पश्चिमी घाट के सदाबहार वनों, पूर्वी हिमालय एवं उत्तर-पूर्वी भारत में पाई जाती है। इसके पीछे के पंखों पर काली तलवार के समान पूंछ जैसी संरचना से इसे पहचाना जाता है। पंखों पर काले सफेद पट्टे पर हरे-पीले रंग का विन्यास होता है।
2. इंडियन जेज़बेल या कॉमन जेज़बेल (Delias eucharis): सामान्य आकार की यह तितली पूरे भारत में पाई जाती है। इसे उद्यानों में आसानी से देखा जा सकता है। इसके पंखों की ऊपरी सतह सफेद और निचली सतह पीली होती है। पंखों पर काली धारियां होती हैं और किनारों पर नारंगी धब्बे भी होते है।
3. इंडियन नवाब या कॉमन नवाब (Charaxesbharata/Polyurabharata): लगभग पूरे भारत के नम जंगलों में पाई जाती है। तेज़ी से उड़ने और पेड़ों के ऊपरी हिस्सों में रहने के कारण आम तौर पर कम दिखाई देती है। ऊपरी पंख काले एवं नीचे के पंख चॉकलेटी होते हैं। पंखों के बीच हल्के पीले रंग की टोपी सामान संरचना के कारण इसे नवाब कहा जाता है।
4. कृष्णा पीकॉक (Papiliokrishna): अपने बड़े पंख के लिए प्रसिद्ध और उन्हीं से पहचानी जाने वाली यह तितली उत्तर-पूर्वी भारत व हिमालय में पाई जाती है। इसके पंख काले होते हैं एवं इनमें पीले रंग की धारी होती है। इनके निचले पंख पर नीले लाल रंग के पट्टे होते हैं।
5. ऑरेंज ओकलीफ (Kallimainachus): यह पश्चिमी घाट एवं उत्तर -पूर्व के जंगलों में पाई जाती है। पंखों पर नारंगी पट्टा और गहरा नीला रंग होता है। बंद होने पर पंख एक सूखी पत्ती जैसा दिखता है। पंख खुले होते हैं तो एक काला एपेक्स, एक नारंगी डिस्कल बैंड और गहरा नीला आधार प्रदर्शित होता है। जो बहुत आकर्षक लगता है।
6. नॉर्थन जंगल क्वीन (Stichophthalmacamadeva): यह अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है। बड़े आकार की होती है। पंख चॉकलेटी ब्राउन के साथ सफेद धब्बेदार होते हैं। पंखों पर चॉकलेटी गोल घेरे होते हैं। यह फ्लोरेसेंट कलर में भी देखी जाती है। इस पर हल्की नीली धारियां होती है जिससे यह अधिक सुंदर लगती है।
7. येलो गोर्गन (Meandrusapayeni): यह पूर्वी हिमालय और उत्तर पूर्व भारत में पाई जाती है। इसका आकार मध्यम होता है। इसके पंखों से कोण बनता है। इसके अनूठे पंखों से इसकी पहचान है। पंखों की आंतरिक सतह गहरी पीली होती है। यह तेज़ी से ऊंचा उड़ सकती है।(स्रोत फीचर्स)