कुछ जीवाश्म स्थल अक्सर खरोचों और ऐसे निशानों से भरे होते हैं जो संभवत: किसी चलते-फिरते जीव द्वारा छोड़े गए होते हैं। इन निशानों के स्रोत की पुष्टि नहीं हो पाती क्योंकि उन्हें बनाने वाले जीव अब पाए नहीं जाते हैं।
लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक अपवाद खोज निकाला है। एक जीवाश्म का पता लगाया है जो रेंगने की क्रिया करते अश्मीभूत हुआ है। यह चट्टान लगभग 56 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टान है यानी लगभग उतनी ही पुरानी जितने कि जंतु हैं। यह छोटे-छोटे अनेक पैरों वाला एक चपटा-सा खंडित शरीर वाला जीव है जो काफी कुछ आधुनिक कनखजूरे जैसा दिखता है लेकिन इसका शरीर नर्म मालूम होता है। इस जीवाश्म के पीछे की चट्टान में एक लम्बी खांचेदार किनारों की लकीर-सी दिखाई देती है।
शोधकर्ताओं ने इसे यिलिंगिया स्पाइसीफॉर्मिस नाम दिया है। गौरतलब है कि यिलिंगिया नाम यांगेज़ नदी घाटी के नाम से लिया गया है जहां यह जीवाश्म पाया गया, और स्पाइसीफॉर्मिस नाम जीव के कांटेदार शरीर के कारण दिया गया है। इसके प्रत्येक खंड में तीन भाग हैं, एक बड़ा केंद्रीय भाग जिसके दोनों ओर छोटे-छोटे पीछे की ओर मुड़े हुए भाग जुड़े हुए हैं। वहां मिले 35 यिलिंगिया नमूनों में सबसे लम्बा 27 सेंटीमीटर लम्बा था जो एक वयस्क मानव पैर की लंबाई के बराबर है।
नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जीवाश्म की शारीरिक रचना और उसके पदचिन्हों के आधार पर, इस जगह पाए गए अन्य पदचिन्ह भी इसी तरह की जोड़वाली टांगों वाले जीवों द्वारा बनाए गए होंगे। यह विशेषता शुरुआती विकसित होते जीवों से मेल नहीं खाती और उनके हिसाब से काफी आगे की है। जोड़दार पैरों वाले अधिकांश जंतु तो इसके 15 करोड़ साल बाद तक विकसित नहीं हुए थे।
वैज्ञानिकों का मत है कि इन खंडों का विकास जीवों को चलने-फिरने में मदद करता था। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप जीवों के विविधीकरण में मदद मिली। वास्तव में, शोधकर्ताओं को लगता है कि यह जीवाश्म बिना खंड वाले जीवों (जैसे साधारण कृमि) और जोड़वाली टांगों वाले जीवों (जैसे कीड़े और झींगा मछलियों) के बीच की लापता कड़ी हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - December 2019
- बैक्टीरिया की मदद से मच्छरों पर नियंत्रण
- पहले की तुलना में धरती तेज़ी से गर्म हो रही है
- एक जेनेटिक प्रयोग को लेकर असमंजस
- चांदनी रात में सफेद उल्लुओं को शिकार में फायदा
- पक्षी एवरेस्ट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं
- पदचिन्हों के जीवाश्म और चलने-फिरने का इतिहास
- कई ततैयों को काबू में करती है क्रिप्ट कीपर
- शीतनिद्रा में बिना पानी कैसे जीवित रहती है गिलहरी
- स्वास्थ्य सम्बंधी अध्ययन प्रकाशित करने पर सज़ा
- अमेज़न में लगी आग जंगल काटने का नतीजा है
- प्लास्टिक का प्रोटीन विकल्प
- स्थिर विद्युत का चौंकाने वाला रहस्य
- भारत में ऊर्जा का परिदृश्य
- गुणवत्ता की समस्या
- प्रकाश व्यवस्था: लोग एलईडी अपना रहे हैं
- वातानुकूलन: गर्मी से निपटने के उपाय
- अन्य घरेलू उपकरण
- खाना पकाने में ठोस र्इंधन बनाम एलपीजी
- पानी गर्म करने में खर्च ऊर्जा की अनदेखी
- सार-संक्षेप
- क्षयरोग पर नियंत्रण के लिए नया टीका
- हड्डियों से स्रावित हारमोन
- दृष्टिहीनों में दिमाग का अलग ढंग से उपयोग
- समस्याओं का समाधान विज्ञान के रास्ते
- क्या शिक्षा प्रणाली भारत को महाशक्ति बना पाएगी?
- व्याख्यान के दौरान झपकी क्यों आती है?
- नई खोजी गई ईल मछली का ज़ोरदार झटका
- क्या रंगों को सब एक नज़र से देखते हैं