हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय नाप-तौल ब्यूरो ने कई राशियों की बदली हुई परिभाषाएं स्वीकार कर ली हैं। लंबाई, द्रव्यमान वगैरह की परिभाषाओं को किसी वास्तविक वस्तु से तुलना करके मापने की बजाय इन्हें कतिपय प्राकृतिक स्थिरांकों के आधार पर परिभाषित किया गया है। इससे प्रेरित होकर यूएस के कुछ शोधकर्ता दबाव की परिभाषा को बदलने तथा दबाव नापने का तरीका बदलने पर काम कर रहे हैं।
पांरपरिक तौर पर दबाव को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले बल के रूप में परिभाषित किया जाता है। लगभग 400 वर्ष पूर्व टॉरिसेली ने पारद-आधारित दाबमापी (मैनोमीटर) का आविष्कार किया था और तब से आज तक वही हमारा दबाव नापने का मानक तरीका रहा। इस उपकरण में छ आकार की एक नली में पारा भरा जाता है और नली की दोनों भुजाओं में पारे की ऊंचाई की तुलना से दबाव ज्ञात किया जाता है। दबाव की अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्य इकाई न्यूटन प्रति वर्ग मीटर है।
अब यूएस के नेशनल इंस्टीट्यूटऑफ स्टैण्डर्डस एंड टेक्नॉलॉजी के वैज्ञानिक दबाव के लिए सर्वथा नई परिभाषा प्रस्तुत कर रहे हैं। इस तकनीक का सार यह है कि किसी गुहा यानी कैविटी में लेज़र की मदद से गैस के परमाणुओं की गणना की जाए, जिससे गैस का घनत्व पता चल जाएगा और इसके आधार पर दबाव की गणना की जा सकेगी। एनआईएसटी के इस नए दाबमापी का नाम है फिक्स्ड-लेंथ ऑप्टिकल कैविटी (फ्लॉक)। जिस गैस का दबाव नापना हो उसे एक कैविटी में भरकर उसमें से लेज़र किरणपुंज भेजा जाता है और उसकी चाल पता की जाती है। इस चाल की तुलना उस कैविटी में निर्वात में लेज़र की चाल से करने पर घनत्व पता चल जाता है क्योंकि लेज़र की चाल गैस के घनत्व पर निर्भर है। इसके आधार पर भौतिकी के कुछ स्थिरांकों की मदद से दबाव की गणना कर ली जाती है।
अभी स्थिति यह है कि सटीकता के मामले में यह तकनीक मैनोमीटर तकनीक से उन्नीस ही बैठती है। इसकी सटीकता फिलहाल दस लाख में 6 भाग के बराबर है जबकि पांरपरिक मैनोमीटर में त्रुटि की संभावना दस लाख में 3 भाग होती है। नई तकनीक गैस में परमाणुओं/अणुओं की संख्या पर आधारित है। इसका मतलब है कि इस पर अशुद्धियों या समस्थानिकों की उपस्थिति से फर्क पड़ेगा। इसके अलावा एक सवाल यह भी है कि प्रयोग के दौरान स्वयं कैविटी में कितनी विकृति उत्पन्न होती है।
बहरहाल, पहले तो एनआईएसटी के शोधकर्ताओं को पारंपरिक विधि और उनकी नई विधि के परिणामों के तुलनात्मक आंकड़े प्रकाशित करने होंगे। उसके बाद इसे अंतर्राष्ट्रीय नाप-तौल ब्यूरो के सामने रखा जाएगा। ब्यूरो इसे परीक्षण के लिए जर्मनी स्थित एक संस्थान को भेजेगा। इसके अलावा एक और प्रयोगशाला को फ्लॉक यंत्र तैयार करना पड़ेगा और दोनों की तुलना की जाएगी। कुल मिलाकर फ्लॉक तकनीक को मानक तकनीक बनने में अभी काफी समय लगेगा। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - October 2019
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