भरत डोगरा
वर्ष 2005 से 2016 के बीच भारत में प्रति व्यक्ति शराब उपभोग दुगने से भी ज़्यादा हो गया है। 2005 में भारत में प्रति व्यक्ति अल्कोहल उपभोग 2.4 लीटर था जबकि वर्ष 2016 में यह बढ़कर 5.7 लीटर हो गया। यह तथ्य विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में सामने आया है।
भारत की गिनती अब उन देशों में हो रही है जहां शराब की खपत बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। ये आंकड़े बहुत दुखद हैं, पर उनके लिए बहुत आश्चर्यजनक नहीं हैं जो वर्षों से दूर-दूर के गांवों में भी शराब के ठेके खोलने की सरकार की नीति के विरुद्ध आवाज़ उठाते रहे हैं। यह बहुत दुखद स्थिति है कि गुजरात, बिहार व उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो शेष देश में सरकारों की अपनी नीतियों ने शराब की खपत को बढ़ाया है। शराब उद्योग व व्यापार से जुड़े व्यक्तियों को बहुत शक्तिशाली व धनी बनने दिया गया है और शराब उद्योगपतियों व व्यापारियों के राजनीति में सम्पर्क व सक्रियता तेज़ी से बढ़ी है। शराब उद्योग भ्रष्टाचार का एक बड़ा स्रोत है।
इतना ही नहीं, मौजूदा प्रवृत्तियों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक भारत में प्रति व्यक्ति अल्कोहल की खपत में 2.2 लीटर वृद्धि और हो जाएगी। ये आंकड़े 15 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या के संदर्भ में एकत्र किए गए हैं। संगठन ने विश्व स्तर की स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए बताया है कि इस समय विश्व में 230 करोड़ व्यक्ति शराब पीते हैं। जिसमें 15.5 करोड़ युवा 15-19 आयु वर्ग के हैं, जो कि इस आयु वर्ग के 27 प्रतिशत हैं। (स्रोत फीचर्स)