बृहस्पति के कई चांदों में से एक युरोपा में वैज्ञानिकों की काफी रुचि रही है। युरोपा मुख्य रूप से सिलिकेट चट्टान से बना है जिस पर बर्फ की परत है। इस पर विशाल भूमिगत महासागर का होना जीवन की आशा जगाता है। हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा नासा को प्रमुख वित्तीय मदद मिली ताकि युरोपा की सतह पर रोबोटिक लैंडर (क्लिपर) भेज कर उसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके।
लेकिन युरोपा पर यान को उतारना इतना आसान भी नहीं है। अध्ययनों से पता चला है कि बर्फ से ढंकी सतह दरारों और उभारों से भरी पड़ी है। नेचर जियोसाइन्सेस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस बर्फीले चट्टानी क्षेत्र में प्रत्येक नुकीला उभार पांच मंज़िला इमारत जितना ऊंचा है।
इस तरह के शिखर पृथ्वी पर एंडीज़ पर्वत पर देखने को मिलते हैं। इन्हें ‘पेनिटेन्ट्स’ (यानी तपस्वी) कहा जाता है क्योंकि ये ऐसे लगते हैं जैसे कोई सफेद चादर ओढ़े तपस्या कर रहा हो। इनका वर्णन सबसे पहले डार्विन ने किया था। पेनिटेन्ट्स बर्फीले क्षेत्रों में सूरज द्वारा मूर्तिकला का नमूना है। यहां बर्फ पिघलती नहीं है। बल्कि प्रकाश का निश्चित पैटर्न बर्फ को सीधे वाष्पित करता है जिसके परिणाम स्वरूप सतह की भिन्नताओं के कारण छोटी नुकीली पहाड़ियां और छायादार घाटियां बनती हैं। ये अंधेरी घाटियां चारों ओर मौजूद रोशन चोटियों की तुलना में अधिक प्रकाश अवशोषित करती हैं, और एक फीडबैक लूप में वाष्पीकरण की प्रक्रिया चलती रहती है।
इससे पहले पृथ्वी के अलावा प्लूटो पर पेनिटेन्ट्स देखे जा चुके हैं। युरोपा पर अन्य प्रक्रियाओं के आधार पर की गई गणना से पता चलता है कि बर्फ का वाष्पीकरण विषुवत रेखा में अधिक प्रभावी होगा, और ये शिखर 15 मीटर लंबे और 7-7 मीटर की दूरी पर होंगे। इस तरह की आकृतियों से ग्रह के रडार अवलोकन करने पर भूमध्य रेखा पर ऊर्जा में गिरावट का कारण समझा जा सकता है। लेकिन यूरोपा पर यान उतरना कितना कठिन है ये 2020 के मध्य में क्लिपर को भेजने पर ही मालूम चलेगा। (स्रोत फीचर्स)