Sandarbh - Issue 156
मच्छरों का युगल गीत - विपुल कीर्ति शर्मा [Hindi, PDF]
कानों में भिनभिनाते मच्छरों की आवाज़ जहाँ हमारे लिए चिड़चिड़ाहट का कारण हो सकती है, वहीं यह किसी अन्य मच्छर के लिए प्रेम का गीत भी हो सकती है। एक ऐसा प्रेम गीत जहाँ दूसरा मच्छर पहले मच्छर की लय में लय मिलाने की कोशिश करता है। जानिए, कैसे फड़फड़ाते पंखों के संगीत पर अगली पीढ़ी के मच्छरों का अस्तित्व टिका होता है, विपुल कीर्ति शर्मा के इस लेख
वेलक्रो के आविष्कार की कहानी - कल्याणी मदान [Hindi, PDF]
कमाल है न! दो सामग्रियों पर लगे कुछ खुरदुरे हिस्सों को आपस में मिलाया और वे जुड़ गए! फिर थोड़ा जतन करके दोनों को विपरीत दिशाओं में खींचा और एक चर्रऽऽऽ की आवाज़ के साथ वे अलग हो गए! अमूमन रोज़मर्रा की वस्तुओं पर इस्तेमाल होने वाला यह वेलक्रो अन्तरिक्षयान में भी इस्तेमाल होता है। तो कुछ अतिशयोक्ति ही होगी मगर इस साधारण-सी चीज़ पर दुनिया ही नहीं अन्तरिक्ष भी टिका है। मगर इस अत्यन्त उपयोगी वस्तु का आविष्कार आखिर कैसे हुआ होगा? ज़रूर कुछ दिलचस्प कहानी होगी। पढ़िए इसे कल्याणी मदान के लेख में।
करके देखा बनाम खोज आधारित शिक्षा - निधि सोलंकी [Hindi, PDF]
सीखना एक सतत प्रक्रिया है – यह शिक्षकों के लिए भी उतना ही सच है जितना कि शिक्षार्थियों के लिए। तो लाज़मी है, सीखने के इस अनन्त सफर में, सीखने-सिखाने और शिक्षण के तरीके भी बदलते होंगे, विकसित होते होंगे। इस लेख में भी, निधि साझा करती हैं कि कैसे शिक्षक बतौर उनके सफर में उनके शिक्षण का तरीका ‘खुद करके सीखना’ से ‘खोज-आधारित सीखना’ में बदल गया है। मगर क्या ये दोनों तरीके सर्वथा भिन्न हैं? इस बदलाव ने कैसे रूप लिया? और, विज्ञान शिक्षण की इस कक्षा में बच्चों व उनके शिक्षक ने और क्या-क्या सीखा? जानने के लिए पढ़िए, सटीक उदाहरणों से भरपूर इस चिन्तनशील लेख को।
कौओं के घोंसले और कोयल के अण्डे - माधव केलकर / कौआ और कोयल: संघर्ष या सहयोग? - कालू राम शर्मा [Hindi, PDF]
कोयल अपने अण्डे कौओं के घोंसलों में क्यों रखती है? और फिर कौआ अपनी कोयल बच्ची को खाना भी खिलाता है। यह कैसा रिश्ता है? इन्सानी नैतिकता के मूल्यों के परे जाकर इन जीवों के ऐसे व्यवहार को समझने की कोशिश करें तो प्रकृति अपने कई राज़ खोल सकती है। खोलिए इस राज़ को माधव केलकर और कालू राम शर्मा के इन लेखों में।
बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान: एक वैकल्पिक समझ - मुकेश मालवीय [Hindi, PDF]
बच्चे पढ़ना-लिखना और गिनती करना क्यों नहीं सीख पा रहे हैं? क्या यह व्यक्तिगत रूप से शिक्षकों की असफलता है? या व्यापक स्कूली व्यवस्था की कार्यशैली की? शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच अन्तर्क्रिया करने के लिए समय कहाँ गुम है? और तो और, शिक्षक ही कहाँ गुम हैं? एक समालोचनात्मक आकलन से भरे इस लेख में, मुकेश मालवीय न सिर्फ ऐसे ज़रूरी प्रश्न उठाते हैं, मगर साथ ही, एक सरकारी स्कूल में शिक्षक होने के अपने अनुभवों को आधार बनाकर इन सवालों के व्याख्यात्मक जवाब भी देते हैं।
गणित की भाषा और बच्चों का नज़रिया - महेश झरबड़े [Hindi, PDF]
एक मैदान में 6 बकरियाँ और 7 गायें मिलाकर कुल कितने जानवर हुए? पूनम ने अपने खयालों में बकरियों और गायों को मिलाने की कोशिश की, जैसे दूध में मिलाते हैं शक्कर, पानी और चायपत्ती! भाषा शिक्षण में जहाँ शिक्षण में इस्तेमाल की जा रही भाषा पर अमूमन ध्यान दिया जाता है, वहीं गणित शिक्षण में ऐसा क्यों नहीं होता? इसके चलते शिक्षक जो कहते हैं, शिक्षक जो सुनना चाहते हैं और बच्चे जो समझते हैं – इन तीनों के बीच एक खाई बन जाती है और गणित एक मुश्किल विषय बन जाता है। बच्चों के अप्रत्याशित नज़रियों के उदाहरण पेश करता महेश झरबड़े का यह लेख गणित शिक्षण की भाषा पर ज़ोर देता है।
ग्लोब और बच्चे: भाग-2 - प्रकाश कान्त [Hindi, PDF]
“पृथ्वी गोल है।” शिक्षक कहते हैं। बच्चे ‘हाँ’ में सिर हिला देते हैं। मगर क्या वे सचमुच महज़ एक कथन के आधार पर सपाट दिखती धरती से सुनी-सुनाई गोल पृथ्वी तक की अवधारणात्मक छलाँग लगा पाते हैं? ऐसे संशय के दौरान जब उनका परिचय बमुश्किल नसीब हुए ग्लोब से होता है तो कौतूहल की लहरें दौड़ पड़ती हैं! ग्लोब तो पेडस्टल पर टिका है, पृथ्वी किस पर टिकी है? पृथ्वी गोल तो समुद्र का पानी क्यों नहीं गिर जाता? ग्लोब तो हम घुमाते हैं, पृथ्वी कौन घुमाता है? सवालों का शोर भारी है। अब ऐसे में, शिक्षक जी नहीं चुरा सकते। आखिर शिक्षक क्या करते हैं? क्या वे बच्चों की जिज्ञासाओं को शान्त करते हुए अपने शिक्षण कर्तव्य को निभा पाएँगे? जानने के लिए पढ़िए, बच्चों और ग्लोब के रिश्ते पर आधारित प्रकाश कान्त का यह लेख।
घड़ी, तुम किताब हो न? - राजेश जोशी [Hindi, PDF]
“हर चीज़ के भीतर एक चीज़ और होती है, और शायद उसके भी भीतर एक और…” यह कहानी नहीं एक रोटी है। आपके लिए न सही, कम-से-कम टीपू और सपने देखने वालों के लिए सही। क्या आप भी सपने देखना चाहते हैं? तो बैठिए, पढ़िए इसे और भूल जाइए अपना नाम। वैसे, लेखक का नाम राजेश जोशी है।
हमें गुदगुदी क्यों होती है? - सवालीराम [Hindi, PDF]
हँसिए नहीं, जवाब दीजिए! जवाब नहीं पता तो आइए सवाल के पीछे साथ-साथ चलते हैं। गुदगुदी क्यों होती है, समझने के लिए पहले समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर गुदगुदी होती क्या है। इस बार तीन अलग-अलग सवालीरामों ने इस हँसमुख सवाल का जवाब दिया है। पढ़िए।