--चारुदत्त नवरे

धरातल के नीचे (Underworlds)


एम.आई.टी. में सेनसीएबिल सिटी प्रयोगशाला के प्रमुख कार्लो रैटी शहरों और उनके निवासियों के हालचाल का अध्ययन करना चाहते हैं। ‘अंडरवर्ल्ड’ नामक उनकी परियोजना ड्रग लॉर्ड्स या सुनियोजित अपराध से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि मल-मूत्र-युक्त पानी में मौजूद सूक्ष्मजीवों से सम्बन्धित है।


मल-मूत्र-युक्त पानी के बैक्टीरिया और वायरस को अनुक्रमित करके यानी उनकी sequencing करके, वे उम्मीद करते हैं कि वास्तविक समय में वे सार्वजनिक स्वास्थ्य का विश्लेषण कर पाएँगे।
यह बेशक एक उत्तम विचार है लेकिन इसमें बाधाएँ भी हैं।

कुछ सूक्ष्मजीव दूसरों की तुलना में काफी कम मात्रा में पाए जाते हैं। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में ही जीवित रह पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप ऐसे रोगाणुओं के बारे में पता लगाना कठिन हो जाता है।
हालाँकि, इन बाधाओं को पार करने पर हम सार्वजनिक स्वास्थ्य और मरक-विज्ञान (epidemiology) को एक नए नज़रिए से देख पाएँगे।


हवा में कुछ है
उत्तरी एरिज़ोना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ग्रेग कैपोरासो की प्रयोगशाला मानव निर्मित वातावरणों के सूक्ष्मजीवों का अध्ययन करती है। जब हम इसके बारे में सोचते हैं, तो समझ में आता है कि दरअसल हम काफी ज़्यादा समय घर के अन्दर ही व्यतीत करते हैं। उससे कहीं ज़्यादा जितना 50,000 साल पहले अफ्रीका में रहने वाले हमारे पूर्वज व्यतीत किया करते थे। उद्विकास उतनी तेज़ी-से नहीं होता जितनी तेज़ी-से संस्कृति विकसित होती है।

जब हम ऊँचाई से नीचे देखते हैं तो हमें अभी भी चक्कर आते हैं। ऊँचाई का डर मानव मस्तिष्क में निहित है, सम्भवतः क्योंकि इसने पेड़ों पर रहने वाले हमारे पूर्वजों को जीवित रहने का लाभ प्रदान किया। हालाँकि, जब हम शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले होते हैं, उस वक्त हमें डर नहीं लगता। निश्चित रूप से हम जानते हैं कि यह गलत है लेकिन हम ऐसा ‘महसूस’ नहीं करते। उद्विकास अभी यहाँ तक नहीं पहुँचा है।इसी तरह घर के अन्दर रहने की हमारी आदत तक भी उद्विकास शायद नहीं पहुँच पाया। माइक्रोबियल परिदृश्य की बेहतर समझ से हम शायद ज़्यादा स्वास्थ्य-वर्धक मानव निर्मित वातावरण बना पाएँ।

माउंट सिनाई स्थित आईकान स्कूल ऑफ मेडिसिन में प्रोफेसर होसे क्लेमेंटे और प्रोफेसर जेरेमीयाह फेथ की प्रयोगशालाएँ, सूजन-सम्बन्धी आँत रोग (इनफ्लेमेटरी बाउल डिसीज़, आईबीडी) और खाद्य एलर्जी के बारे में अध्ययन करती हैं। वे जर्म-मुक्त चूहों में आँत के सूक्ष्मजीवों पर आहार के प्रभाव का भी अध्ययन करते हैं, और इसके उलटे प्रयोग भी करते हैं। उनके प्रयोगों में अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी बीमारियों के मामलों में एक स्वस्थ व्यक्ति के विष्ठा-प्रत्यारोपण से सुधार देखा गया है जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भविष्य में सूक्ष्मजीवीय पारिस्थितिकी बहुत-से प्रतिरक्षा-विकार और एलर्जी के इलाज के लिए एक महत्वपूर्ण समाधान हो सकती है।

आप
2006 में, टाइम पत्रिका ने पर्सन ऑफ द इयर के रूप में ‘आप’ को चुना था। आप, जो विकिपीडिया में योगदान देते हैं, जिनके स्वास्थ्य सम्बन्धी आँकड़ों से रोग तंत्र की नई समझ बनती है, जिनकी कंप्यूटिंग परियोजनाओं में भागीदारी जटिल समस्याओं से निपटने में सक्षमता प्रदान करती है। मानव माइक्रोबायोम परियोजना में बहुत अधिक डाटा है, लेकिन यह ज़्यादातर पश्चिमी आबादी के सूक्ष्मजीवों तक ही सीमित है। ऐसा ही अन्य बड़ी परियोजनाओं जैसे अमेरिकन गट परियोजना, अर्थ माइक्रोबायोम परियोजना के साथ भी है। हमें इसकी बेहतर समझ की आवश्यकता है कि विभिन्न आबादियों एवं विभिन्न संस्कृतियों की विभिन्न बीमारियों में माइक्रोफ्लोरा कैसे बदलता है। समय आ गया है कि सभी इस क्रान्ति में शामिल हो जाएँ। क्वांटीटेटिव इन्साईट्स इंटू माइक्रोबियल इकोलॉजी (QIIME) एक ओपन-सोर्स प्रोजेक्ट है जो माइक्रोबियल पारिस्थितिकी का अध्ययन करने के लिए कम्प्यूटेशनल टूल्स विकसित करता है। यह मुख्य रूप से नाइट, कैपोरसो और क्लेमेंटे लैब में विकसित किया गया है। यदि आपको प्रोग्रामिंग (पाईथन में) करना पसन्द है और उसमें शामिल होने में रुचि रखते हैं, तो आप निश्चित रूप से ऐसा कर सकते हैं।
ब्रह्माण्ड में अनुमानित 1024 तारे हैं और हमारे ग्रह पर 1030 बैक्टीरिया हैं, और मेरा यह तर्क है कि एक अनोखा कार्य करने वाली माइक्रोबियल प्रजाति की खोज, एक तारे की खोज जितनी ही दिलचस्प होगी।
­­– प्रो. जेनेट जैनसन।


चारुदत्त नवरे: होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन (एच.बी.सी.एस.ई.), मुम्बई में शोध छात्र हैं। आइकेन चिकित्सा स्कूल, न्यू यॉर्क और एन.सी.एल, पुणे से शोध का अनुभव। उनके द्वारा तैयार की गई यह पुस्तक एकलव्य से शीघ्र प्रकाशित होने वाली है।  
सभी चित्र: रेशमा बर्वे: अभिनव कला महाविद्यालय, पुणे से वाणिज्यिक कला में पढ़ाई। कई पुस्तकों का चित्रांकन किया है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।