सुशील जोशी [Hindi PDF, 186 kB]
पिछले अंक में हमने देखा था कि फाइलो ने जलने में हवा की भूमिका की बात की थी मगर उनका कहने का आशय यह नहीं था कि जलती वस्तु हवा के साथ कोई क्रिया करती है। उनके मुताबिक वस्तु का अग्नि-तत्व निकलने के साथ-साथ वायु के परिवर्तन से बने अग्नि-तत्व के कारण ही बर्तन में खाली जगह बनती है जिसे भरने के लिए पानी ऊपर चढ़ता है। दा विंची ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह बताया था कि जलने की क्रिया में वायु का एक भाग खर्च हो जाता है।
यानी फाइलो और बाद में लियोनार्दो दा विंची ने यह देखा था कि हवा में मोमबत्ती जलाने पर कुछ हवा तो खर्च होती है, जबकि कुछ हवा बची रहती है। फाइलो का मत था कि बर्तन की कुछ हवा अग्नि में तबदील हो जाती है और बर्तन के रन्ध्रों से बाहर रिस जाती है। दूसरी ओर, दा विंची का ख्याल था कि दहन की क्रिया में हवा का कुछ भाग खर्च होता है। दूसरे शब्दों में, दोनों को ही लगता था कि पूरी हवा एक-सी नहीं है। मगर एक बात स्पष्ट समझ लेनी होगी। फाइलो के मुताबिक किसी वस्तु का जलना उस वस्तु में से अग्नि-तत्व के निकलने का परिणाम है। इसमें हवा की कोई भूमिका नहीं है। उस ज़माने में वे यह प्रयोग करके तो नहीं देख सकते थे कि निर्वात में कोई वस्तु जलेगी या नहीं।
इसके बाद रॉबर्ट बॉयल, मेयोव और कई लोगों ने देखा कि दहन हो या श्वसन, हवा का कुछ भाग इनमें मदद करता है। जब यह भाग खत्म हो जाए, तो हवा न तो आग जलने में मदद कर पाती है, न जन्तुओं के श्वसन में। ऐसा क्यों? अब आगे बढ़ते हैं।
बॉयल व अन्य लोगों के प्रयोग
सत्रहवीं सदी में यानी दा विंची के पूरे 200 साल बाद रॉबर्ट बॉयल (1627-1691) ने सबसे पहले दर्शाया कि दहन के लिए हवा ज़रूरी है। बॉयल को फायदा मिला था रॉबर्ट हुक द्वारा बनाए गए निर्वात पम्प का। निर्वात का निर्माण नए विज्ञान का एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है। अरस्तू के मुताबिक तो प्रकृति को निर्वात से नफरत थी। जब गैलीलियो के शिष्य एवेंजेलिस्टा टॉरिसेली ने निर्वात का निर्माण किया तो यह अरस्तू के अनुयायियों के लिए एक बड़ा झटका था। मगर यदि आप निर्वात के गुणधर्मों का अध्ययन करना चाहते हैं, तो काँच की एक लम्बी नली (बैरोमीटर) के ऊपरी सिरे पर बना निर्वात बहुत उपयोगी नहीं है। जब ओटो फॉन गेरिक ने निर्वात पम्प बना लिया तो निर्वात ज़्यादा सुलभ हो गया और इसके साथ प्रयोग करना भी सम्भव हो गया। बॉयल ने निर्वात और वायु सम्बन्धी अपने सारे प्रयोग अपने सहायक रॉबर्ट हुक द्वारा बनाए गए निर्वात पम्प की मदद से किए थे।
हुक के पम्प द्वारा एक काँच के बेलनाकार बर्तन (जिसे वे रिसीवर कहते थे) में जलती हुई मोमबत्ती, सुलगता कोयला वगैरह रखकर निर्वात पैदा करने पर आग बुझने लगती थी मगर जैसे ही हवा वापिस प्रविष्ट कराई जाती, आग पुन: जी उठती थी।
हुक ने यह भी देखा कि एक निश्चित आकार के बर्तन में मोमबत्ती जलाई जाए, तो करीब 3 मिनट में बुझ जाती है। मगर यदि उसी बर्तन में हवा को दबाकर भरा जाए (यानी सम्पीड़ित हवा भरी जाए) तो मोमबत्ती पन्द्रह मिनट तक जलती रहती है। इसका मतलब यह हुआ कि हवा का जो सक्रिय तत्व ‘लौ को सहारा देता है, हवा के एक निश्चित आयतन में उसकी मात्रा को बदला जा सकता है।’
इस काम को आगे बढ़ाते हुए जॉन मेयोव (1643-1679) ने यह भी पता कर लिया कि आग के लिए हवा के मात्र एक हिस्से की ज़रूरत होती है। जॉन मेयोव ने भी कई रोचक प्रयोग किए थे। सबसे पहली बात तो उन्होंने यह देखी कि जब किसी बन्द बर्तन में भरी हवा में कोई चीज़ जलती है या कोई जन्तु साँस लेता है, तो हवा के आयतन में कमी आती है। उन्होंने यह भी देखा कि बर्तन बन्द हो तो दहन या श्वसन अनिश्चित समय तक जारी नहीं रहता। जैसे, मेयोव ने काँच के एक गोले के अन्दर एक मोमबत्ती जलाई। जब मोमबत्ती बुझ गई तो उसी गोले के अन्दर रखे कपूर को नहीं जलाया जा सका। यानी गोले में शेष बची हवा जलने में मदद नहीं करती। इसी प्रकार से उन्होंने एक बड़े बर्तन में एक चूहा रखा और बर्तन के मुँह पर एक गुब्बारा कस दिया। कुछ समय बाद देखा गया कि गुब्बारा पिचक गया था यानी अन्दर की हवा का आयतन कम हो गया था।
हालाँकि, मेयोव अपने अवलोकनों की पूरी व्याख्या तो नहीं कर पाए, मगर इतना स्पष्ट था कि हवा में एक से अधिक गैसें हैं। इसी के साथ वायु एक तत्व न रही।
निर्वात काव्य |
मेयोव का मत बना कि जलने वाली वस्तु के साथ कोई चीज़ जुड़ती ज़रूर है क्योंकि वे अपने प्रयोगों में देख चुके थे कि यदि एंटीमनी को एक बन्द बर्तन में रखकर बिल्लोरी काँच की मदद से जलाया जाए तो उसका वज़न बढ़ता है। इसकी व्याख्या तभी हो सकती है जब किसी चीज़ के कण एंटीमनी से जुड़ रहे हों।
एक प्रयोग में तो उन्होंने यह भी पता करने में सफलता पाई कि किसी बर्तन में ज़िन्दा चूहा रख दो या जलती हुई मोमबत्ती रख दो, तो आग बुझने या चूहे की मृत्यु होने तक पानी एक-चौथाई चढ़ता है। हाँ, बर्तन को पानी से भरी तश्तरी में रखना होगा। और तो और, उन्होंने यह भी देखा कि यदि एक बन्द बर्तन में एक छोटा जन्तु और एक जलती हुई मोमबत्ती रख दी जाए, तो पहले मोमबत्ती बुझती है और उसके कुछ ही देर बाद जन्तु भी दिवंगत हो जाता है। मगर यदि मोमबत्ती न रखी जाए, तो उसी बर्तन में जन्तु दुगने समय तक जीवित रहता है। मतलब जन्तु के जीवित रहने और मोमबत्ती के जलते रहने के बीच कुछ प्रतिस्पर्धा है। अर्थात् एक ही पदार्थ के कण दोनों के लिए ज़रूरी हैं। श्वसन और दहन को निर्णायक तौर पर एक-सी प्रक्रिया साबित करने की बात तो अभी एक सदी दूर थी मगर मेयोव ने इसका अन्दाज़ लगा लिया था। जैसे, उन्होंने यह कल्पना की कि हमारे फेफड़े हवा में से इस भाग को अलग करके खून में पहुँचा देते हैं। उनको यह भी लगता था कि यह भाग खून में उपस्थित ज्वलनशील कणों से जुड़ता है और यही हमारे शरीर में गर्मी का स्रोत है और इसी की बदौलत हमारी माँसपेशियाँ भी काम करती हैं। इन प्रयोगों के विवरण और निष्कर्ष उनकी पुस्तक ‘डी रेस्पिरेश्यो’ में 1668 में प्रकाशित हुए थे।
तो सत्रहवीं सदी में कई बातें साफ होने लगी थीं।
* पहली बात तो यह थी कि वायु कोई तत्व नहीं है। इसमें कम-से-कम दो भाग हैं। एक भाग दहन और श्वसन में काम आता है जबकि दूसरा नहीं। जलने व श्वसन में मददगार भाग कुल वायु का करीब एक-चौथाई होता है।
* दूसरी बात यह थी कि श्वसन और दहन में कुछ समानता है। कम-से-कम इतनी समानता तो है ही कि दोनों में हवा का एक ही भाग खर्च होता है।
* तीसरी बात कि एंटीमनी जैसे पदार्थ गर्म करने पर सम्भवत: हवा के उस भाग से जुड़ जाते हैं।
तीसरी बात का यह भी अर्थ था कि जलना मात्र ज्वलनशील वस्तु का गुण नहीं है, इस क्रिया में हवा की भी कुछ भूमिका है। हवा की इसी भूमिका की तलाश आगे की कहानी की प्रमुख घटना है। अगले अंक में हम देखेंगे कि रॉबर्ट हुक, बॉयल और जॉन मेयोव ने हवा के ‘जलने व श्वसन में सहायक भाग’ की खोज के लिए किस तरह के प्रयोग किए और दहन व श्वसन को लेकर क्या परिकल्पना प्रस्तुत की।
सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।