लेखक : जितेंद्र बेरा
अनुवाद: सुशील जोशी [Hindi PDF, 196 kB]
आवर्त सारणी बनाने की शुरुआती कोशिशों के दौरान तत्वों के नामकरण को लेकर इतनी रस्साकशी नहीं थी। लेकिन आज हालात थोड़े बदले हुए हैं। रसायन विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के निर्देशों के बावजूद नामों को लेकर विवाद चलते रहते हैं। इन्हीं सब के चलते हाल में खोजे गए तत्व अपने अस्थाई नामों के साथ पहचान बनाए हुए हैं। इस लेख में नामकरण के विभिन्न पेचीदा पहलुओं पर एक नज़र डालते हैं
यह सही है कि परमाणु संख्या के लिहाज़ से हरेक तत्व अनोखा होता है मगर फिर भी हरेक तत्व को एक नाम और संकेत देना सुविधाजनक होता है। इस नाम व संकेत की मदद से आप यौगिकों को व्यवस्थित नाम दे सकते हैं और सूत्रों के रूप में व्यक्त कर सकते हैं। यह एक आम परिपाटी रही है कि किसी भी तत्व के खोजने वाले को उसके नामकरण का अधिकार है। नाम कई आधारों पर रखे जाते हैं जैसे - (1) पौराणिक अवधारणाएं या पात्र, (2) स्थान, इलाका या देश, (3) तत्व के गुणधर्म और (4) कोई वैज्ञानिक। नाम का सुझाव जो भी हो, इसका अनुमोदन अंतर्राष्ट्रीय विशुद्ध व प्रयुक्त रसायन संघ (इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड एप्लाइड केमेस्ट्री, IUPAC ) द्वारा किया जाना चाहिए। पाठ्य पुस्तकों में परमाणु संख्या 100 तक के तत्वों के अनुशंसित नाम व उनके संकेत दिए जाते हैं। मगर भारी तत्वों के नामकरण की राह आसान नहीं रही है।
पहला सुझाव
सन् 1978 में IUPAC ने तय किया कि 100 से अधिक परमाणु संख्या (Z >100) वाले तत्वों के लिए नामों की एक व्यवस्थित प्रणाली होनी चाहिए। यह भी सोचा गया था कि इसमें उन तत्वों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिनकी खोज उस समय तक हुई नहीं थी। अकार्बनिक रसायन नामकरण आयोग (कमीशन ऑन नाíमेनक्लेचर ऑफ इनॉर्गेनिक केमिस्ट्री, CNIC) ने इसकी एक प्रक्रिया सुझाई थी। यह सुझाया गया था कि तत्वों के नाम उनकी परमाणु संख्या के लैटिन अंकों के नामों के आधार पर बनाए जाने चाहिए:
0 = nil
1 = un
2 = bi
3 = tri
4 = quad
5 = pent
6 = hex
7 = sept
8 = oct
9 = enn
इन नामों को तत्व की परमाणु संख्या में अंकों के क्रम के अनुसार लिखना होगा। यह भी फैसला किया गया कि नाम के अंत में ium आएगा, चाहे वह तत्व धातु हो या अधातु। यदि ium से पहले enn आएगा तो enn का अंतिम n हटा दिया जाएगा, और यदि bi व tri अंतिम ium से पहले आएंगे तो उनका i हटा दिया जाएगा। इस व्यवस्था के अंतर्गत तत्व का संकेत तीन अंकों के नामों से मिलकर बनेगा।
कुछ उदाहरणों से बात स्पष्ट हो जाएगी। परमाणु संख्या 101 वाले तत्व का नाम unnilunium (1 = un, 0 = nil, 1 = un, ium) होगा और संकेत Unu होगा। इसी प्रकार से 112 परमाणु संख्या वाले तत्व का नाम unnilunium (1 = un, 1 = un, 2 = bi, ium) होगा और इसका संकेत Uub होगा। परमाणु संख्या 104 से 109 तक के नाम व संकेत तालिका - 1 में दिए गए हैं। इस प्रणाली का एक बड़ा फायदा यह है कि इसके तहत किसी भी परमाणु संख्या वाले तत्व का नामकरण किया जा सकता है। जब तक IUPAC तत्व के गुणधर्मों या इतिहास को ध्यान में रखते हुए कोई उपयुक्त नाम तय न कर ले तब तक के लिए यह एक उपयोगी व्यवस्था है।
100 के आगे के तत्वों की खोज
रसाय़न शास्त्र के शुरुआती दिनों में तत्वों की खोज आमतौर पर उनके प्राकृतिक स्रोतों से हुई थी। इसके विपरीत सारे भारी तत्व नाभिकीय क्रियाओं के ज़रिए संश्लेषित किए जाते हैं। एनरिको फर्मी और ई.ओ. लॉरेंस ने दो अलग-अलग तरीकों से कई नए तत्व बनाए हैं। फर्मी ने लक्षित नाभिकों पर न्यूट्रॉन जैसे हल्के प्रोजेक्टाइल्स से टक्कर मारकर कई तत्व बनाए थे। इस टक्कर के परिणामस्वरूप अस्थिर आइसोटॉप्स यानी समस्थानिकों का निर्माण होता था। बीटा कण के उत्सर्जन के फलस्वरूप अगली परमाणु संख्या वाला तत्व निर्मित होता है। इसका एक उदाहरण है यूरेनियम से नेप्चूनियम का बनना:
इसका एक दूसरा तरीका है भारी आयन त्वरित्र यानी एक्सलेरेटर का उपयोग जिसमें दो नाभिकों का संलयन किया जा सकता है। इस तरह से नए तत्व के निर्माण का एक उदाहरण क्रोमियम-54 और बिस्मथ-209 के संलयन से परमाणु संख्या 107 (परमाणु भार 262) वाले तत्व का निर्माण है। इस प्रक्रिया में एक न्यूट्रॉन कम हो जाता है।
उपरोक्त विधियों से आवर्त तालिका में लगभग 20 प्रतिशत विस्तार हुआ है। इनमें से कुछ तत्वों को बनाकर अलग किया जा सकता है और संग्रहित किया जा सकता है मगर सारे के सारे यूरेनियम-पार यानी ट्रांसयूरेनियम तत्व अत्यंत रेडियोसक्रिय हैं। नतीजा यह है कि इन भारी तत्वों के चंद परमाणुओं का ही अवलोकन किया गया है।
ज़ाहिर है कि इन भारी तत्वों को बनाने में काफी मेहनत लगती है। एक बड़ी टीम को मिलकर प्रयास करना होता है। काफी महंगे उपकरणों की ज़रूरत होती है। यदि नया तत्व बन भी जाए, तो इसकी उपस्थिति को प्रमाणित करना आसान नहीं होता। इन सब कारणों से ‘खोजकर्ता’ की तमन्ना होती है कि नए तत्व के नामकरण का अधिकार उन्हें मिले। कम-से-कम उसे किसी बेशक्ल संख्या से तो न दर्शाया जाए।
आज तीन प्रमुख प्रयोगशालाओं में नए तत्वों के निर्माण के व्यवस्थित प्रयास चल रहे हैं: कैलिफोर्निया (यू.एस.ए.) की लॉरेंस बर्कले प्रयोगशाला (LBL), ड्यूबना (रूस) का जॉइन्ट इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर रिसर्च (JINR) और डर्मास्टाट (जर्मनी) का गेसेलशाफ्ट फ्यूर श्वेरियो नेनफोरशुंग (GSI)।
हम देख ही सकते हैं कि विवाद का सामान तैयार है। अलग-अलग समय पर इनमें से प्रत्येक प्रयोगशाला ने नए तत्वों की खोज की घोषणा की है और उन्हें अपनी पसंद के नाम दिए हैं। मगर अक्सर खोज के दावों पर विवाद होते रहे हैं। और आग में घी की तरह ये प्रतिस्पर्धी टीमें अपनी-अपनी सफलता के दावे करते हुए एक ही तत्व को अलग-अलग नाम देती रही हैं।
उलझती उलझनसन् 1985 में IUPAC और इंटरनेशनल यूनियन फॉर प्योर एण्ड एप्लाइड फीज़िक्स (IUPAP) के संयुक्त तत्वावधान में एक ट्रांसफर्मियम वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया था। इस ग्रुप को 100 से अधिक परमाणु संख्या वाले तत्वों की खोज में प्रथमता के दावों की समस्या पर विचार करना था। उक्त दोनों संस्थाओं ने सन् 1987 में इस ग्रुप में नाभिकीय भौतिकी व रसायन शास्त्र से जुड़े 9 वैज्ञानिक नियुक्त किए। इस समूह के अध्यक्ष डेनिस विल्किंसन थे और इसका प्रमुख काम नए तत्व की खोज को मान्यता देने के मापदण्ड निर्धारित करना और इनके आधार पर यह तय करना था कि विभिन्न प्रतिस्पर्धी समूहों के दावों में पहला किसे माना जाए। इस ग्रुप ने हफ्ते-हफ्ते की सात बैठकें कीं। इनमें से तीन बैठकें उपरोक्त तीन प्रमुख प्रतिस्पर्धी प्रयोगशालाओं में भी हुई थीं। इन प्रयोगशालाओं के परामर्श से ट्रांसफर्मियम ग्रुप ने किसी नए तत्व की खोज को मान्यता देने के कुछ सामान्य मापदण्ड निर्धारित किए। उनके काम के इस भाग को तो IUPAC और IUPAP ने स्वीकार कर लिया। ग्रुप का दूसरा श्रमसाध्य काम था कि इस विषय के साहित्य की गहन समीक्षा करके सारे ट्रांसफर्मियम तत्वों की खोज के इतिहास के तारीखवार चित्र निर्मित करना। ग्रुप के निष्कर्ष, IUPAC और IUPAP द्वारा अनुमोदन के बाद सन् 1993 में प्रकाशित हुए थे।|
अलबत्ता ग्रुप के काम में नए तत्वों के नाम सुझाना शामिल नहीं था। यह काम तो अकार्बनिक रसायन नामकरण आयोग के पास है। इस आयोग में 20 वैज्ञानिक हैं और सबके पास बराबर का मताधिकार है। इसकी बैठक 31 अगस्त 1994 को हंगरी में बेलेचनफ्यूर्ड में आयोजित की गई थी। अजेंडा था ट्रांसफर्मियम तत्वों के नामों पर विचार करना। आयोग ने नाम चुनने के लिए ट्रांसफर्मियम ग्रुप की रिपोर्ट को एक आधार के रूप में स्वीकार करने का निर्णय लिया। नए तत्वों की खोज में शामिल तीनों प्रमुख समूहों को भी अपने प्रस्ताव भेजने को कहा गया था। प्रस्ताव के साथ उन्हें यह भी बताना था कि वे कोई नाम क्यों चुनना चाहते हैं। बैठक में निर्णय हुआ कि ‘उपयुक्त वैज्ञानिक, स्थान अथवा गुणधर्मों’ के आधार पर तत्वों के नामकरण की प्रथा जारी रखी जाएगी। एक दिलचस्प निर्णय (16-4 के मत विभाजन से) यह हुआ कि किसी भी तत्व का नाम किसी जीवित व्यक्ति के नाम पर नहीं रखा जाएगा। अंतत: CNIC ने 101-109 परमाणु संख्या वाले तत्वों के नामों की सिफारिश कर दी। इस सूची को बनाने में सदस्यों के बीच काफी हद तक आम सहमति थी। IUPAC ब्यूरो ने 17-18 सितंबर 1994 को एंटवर्प (बेल्जियम) में हुई अपनी बैठक में इन सिफारिशों को सर्व-सम्मति से स्वीकार कर लिया। मगर इन सिफारिशों को IUPAC परिषद के अनुमोदन की दरकार थी जिसकी बैठक अगस्त 1995 में गिल्डफोर्ड (यू.के.) में होने वाली थी।
बहरहाल, कैलिफोर्निया की LBL टीम ने विद्रोह करने की ठान ली। एक पत्रकार वार्ता में उन्होंने घोषणा की कि उनका सुझाव है कि तत्व 106 का नाम उनके भूतपूर्व प्रमुख ग्लेन टी. सीबोर्ग के नाम पर रखा जाए, जो उस समय जीवित थे। किसी जीवित व्यक्ति के नाम पर तत्व का नाम न रखने की CNIC की सिफारिश पर बर्कले ग्रुप ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। गौरतलब है कि CNIC ने तत्व 106 का नामकरण रदरफोर्ड के नाम पर करने का फैसला किया था। पहले LBL ग्रुप ने तत्व 104 का नाम रदरफोर्डियम रखने का सुझाव दिया था। CNIC ने सिफारिश की कि तत्व 104 का नाम ड्यूबनियम हो। ड्यूबनियम नाम इस क्षेत्र में ड्यूबना के JINR द्वारा किए गए काम की सराहना हेतु दिया गया था।
हालात तब और बिगड़ गए जब अमेरिकन केमिकल सोसायटी (ACS) ने CNIC की सिफारिशों को मानने से इन्कार कर दिया। ACS द्वारा प्रस्तावित नाम भी तालिका -1 में दिए गए हैं। ज़्यादातर हो-हल्ला इस बात पर था कि तत्व 106 के लिए सीबोर्गीयम नाम को नामंज़ूर किया जा रहा था। यह सही है कि IUPAC की बात का वज़न ज़्यादा होता है मगर उसकी सिफारिशें बंधनकारी नहीं हैं और ACS एक ऐसी स्थिति में है जहां वह अपनी शोध पत्रिकाओं में जो चाहे नाम अपना सकती है।
वर्तमान IUPAC नामCNIC की सिफारिशों पर फैसला करने हेतु IUPAC ब्यूरो की बैठक गिल्डफोर्ड में सितंबर 1995 में हुई। बढ़ती आलोचना और जज़्बाती बहसों के चलते ब्यूरो ने फैसला किया कि CNIC की सिफारिशों को अस्थाई रूप से स्वीकार किया जाए। ब्यूरो ने कई व्यक्तियों और संगठनों को आमंत्रित किया कि वे इन तत्वों के नामों को लेकर मौजूदा प्रस्तावों पर अपने मत व्यक्त करें। बताते हैं कि आम रसायनज्ञ समुदाय से तो ज़्यादा प्रतिक्रियाएं नहीं आई थीं, अधिकतर जवाब नाभिकीय वैज्ञानिकों के थे। आयोग ने अगस्त 1996 में चेस्टरटाउन (यू.एस.ए.) में आयोजित एक बैठक में नाम सम्बंधी सारी सिफारिशों पर एक बार फिर से विचार किया और तत्व 104-109 के लिए नामों की एक नई सूची प्रस्तुत की। उसने यह बात स्वीकार की कि तत्वों के नाम का अंतिम फैसला CNIC का ही होगा और अंतत: इसका अनुमोदन नामकरण व संकेत सम्बंधी अंतर्राष्ट्रीय समिति, तथा IUPAC के ब्यूरो व परिषद द्वारा किया जाएगा। ब्यूरो ने इस बात को भी मान्य किया कि खोजकर्ताओं को किसी तत्व के लिए नाम सुझाने का पारंपरिक अधिकार है और ऐसे प्रस्तावों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। आयोग ने इस बात को दोहराया कि ट्रांसफर्मियम ग्रुप की सिफारिशें नए नामों का एक आधार हैं। मगर विद्रोहियों पर विषवमन करने के बाद आयोग ने ग्रुप की इस सिफारिश में संशोधन किया कि नए तत्व का नाम किसी जीवित व्यक्ति के नाम पर नहीं रखा जाएगा।
नए प्रस्ताव में तत्व 101, 102 व 103 के नाम तो वही थे जो आमतौर पर स्वीकार हो चुके हैं - मेंडेलेवियम (Md), नोबेलियम (No) और लॉरेंशियम (Lr)। तत्व 106 के खोजकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित नाम सीबोर्गीयम स्वीकार कर लिया गया। यह निर्णय किया गया कि तत्व 107 की खोज का श्रेय संयुक्त रूप से GSI (डर्मास्टाट) और JINR (ड्यूबना) को दिया जाना चाहिए। इस बात पर तो कोई विवाद था ही नहीं कि तत्व 108 व 109 की खोज GSI डर्मास्टाट द्वारा की गई है। 107, 108 व 109 के खोजकर्ताओं ने क्रमश: नील्सबोरियम, हैसियम और माइटनेरियम नाम सुझाए थे। आयोग ने इनमें से अंतिम दो को स्वीकार कर लिया। तत्व 107 के लिए प्रस्तावित नाम “नील्सबोरियम बहुत लंबा है और इसमें वैज्ञानिक नील्स बोर का निजी नाम व खानदान का नाम दोनों शामिल हो गए हैं।” ऐसी कोई नज़ीर नहीं है। आयोग ने डेनिश नेशनल एडहरिंग ऑर्गेनाइज़ेशन से परामर्श के बाद इसके लिए बोरियम नाम पसंद किया।तत्व 104 और 105 का नामकरण तीखे विवाद का विषय रहा था। बर्कले व ड्यूबना दोनों समूहों ने इसकी खोज पहले करने का दावा किया था। आयोग ने न्यूज़ीलैण्ड के नाभिकीय भौतिक शास्त्री अन्र्स्ट रदरफोर्ड के सम्मान में तत्व 104 के लिए रदरफोर्डियम नाम मंज़ूर किया। आयोग का यह मत था कि “ड्यूबना प्रयोगशाला ने कई ट्रांसफर्मियम तत्वों के संश्लेषण के लिए प्रायोगिक रणनीतियां विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।” इसलिए आयोग ने सिफारिश की कि तत्व 105 का नाम उसके सम्मान में ड्यूबनियम रखा जाए। 100 से अधिक परमाणु संख्या वाले तत्वों के वर्तमान IUPAC नाम तालिका -1 में दिए गए हैं।
क्या नामकरण का विवाद मात्र एक बेकार का झमेला था? आखिर ये ट्रांसफर्मियम तत्व आम शोध पत्रिकाओं में भी यदा-कदा ही नज़र आते हैं। इनके रासायनिक गुणों का अध्ययन तो हो ही नहीं पाता और इनके चंद परमाणु ही बनाए और देखे गए हैं।
इसका जवाब यह है कि हमें भविष्य में इस क्षेत्र में वैज्ञानिक विकास के लिए तैयार रहना चाहिए। यह काफी संभव है कि इन तत्वों के साथ कई नई रासायनिक खोजें होंगी। सीबोर्ग ने तो सुझाव दिया था कि लगातार इकट्ठा हो रहे नाभिकीय कचरे की ढेरियों की व्यवस्थित वैज्ञानिक खोजबीन की जानी चाहिए। उनके शब्दों में यह कचरा ‘एक बेशकीमती खज़ाना’ है।
वैसे तत्वों के नामकरण का विवाद खत्म नहीं हुआ है। अभी 110 से अधिक परमाणु संख्या वाले कई तत्व खोजे जाएंगे। सैद्धांतिक भौतिक शास्त्रियों ने ऐसे कई भारी तत्वों की उपस्थिति की भविष्यवाणी की है। यह सुझाव दिया गया है कि परमाणु संख्याओं के लिहाज़ से ‘स्थिरता का एक टापू’ है जिसके अंतर्गत कई तत्व मिलेंगे। मसलन GSI ने दो भारी नाभिकों के संलयन से तत्व 110 और 111 का संश्लेषण किया है। समीकरण ऊपर देखिए।
इसी समूह ने तत्व 112 का निर्माण किया है जिसे स्पष्ट रूप से पहचाना जा चुका है। इस तत्व का 277 परमाणु भार वाला समस्थानिक 208-pb लक्ष्य पर 70-zr प्रोजेक्टाइल विकिरित करवाने पर देखा गया है। अभी तक 110, 111 व 112 को कोई नाम नहीं दिए गए हैं। आप चाहें तो IUPAC के नियमों के अनुसार इन्हें अस्थाई नाम देने की कोशिश कर सकते हैं।
जितेंद्र बेरा: बर्दवान विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सायंस, बंगलोर के डिपार्टमेंट ऑफ इनऑर्गेनिक व फिज़िकल केमिस्ट्री से पी.एच डी हासिल की।
अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा प्रकाशित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण में गहरी रुचि है।
यह लेख रेज़ोनेंस पत्रिका के मार्च 1999 अंक से लिया गया है।