Read the magazine | Download Magazine
खिलाड़ी अम्मा – कमला भसीन
चित्र: चन्द्रमोहन कुलकर्णी
कमला भसीन को याद करते हुए उनकी एक कविता....
‘खेलकूद में नहीं अनाड़ी
अपनी अम्मा बड़ी खिलाड़ी’
अलविदा कमला भसीन – अरविन्द गुप्ता
कुछ दिनों पहले जानी-मानी कवि, गीतकार, नारीवादी और एक्टिविस्ट कमला भसीन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। चकमक से उनका काफी पुराना नाता था। अरविन्द गुप्ता जी ने उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें और उनके कामों को हमसे साझा किया है।
'भैया' और 'धम्मक धम' – कमला भसीन
चित्र: मिकी पटेल
कमला जी की लिखी कविताओं की एक और बानगी...
जब हमारे अपने ही हमें डराएँ
बचपन में हम सब को बड़ों ने कभी ना कभी डराया है। डराने के तरीके और कारण अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर हमें डराने का कारण होता है कि हम बस उनका कहा मान लें। नवम्बर विशेषांक के लिए हमने बच्चों से ऐसी ही कुछ बातें लिख भेजने को कहा था। बड़ी संख्या में बच्चों से इसके लिए जवाब मिले। कुछ जवाब आप नवम्बर अंक में पढ़ चुके हैं। कुछ और जवाब आप इन पन्नों में पढ़ सकते हैं।
तुम भी बनाओ – अकॉर्डियन किताब – सजिता नायर
‘अकॉर्डियन’ शब्द असल में एक संगीत यंत्र का नाम है। इस यंत्र जैसा दिखने के कारण इन किताबों को ‘अकॉर्डियन किताब’ कहा जाने लगा। इस लेख में सजिता कागज़, गत्तों और पुरानी मैगज़ीन के कवर आदि से अकॉर्डियन किताबें बनाने के नुस्खे बता रही हैं। आप भी बनाकर देखिए…
नन्हा राजकुमार – एन्त्वॉन द सैंतेक्ज़ूपेरी
अनुवाद : लालबहादुर वर्मा
यह नन्हा राजकुमार की पाँचवीं किश्त है। नन्हा राजकुमार एक शानदार फ्रेंच लघु उपन्यास ल प्ती प्रैंस का हिन्दी अनुवाद है। पिछले अंक में आपने पढ़ा कि नन्हे राजकुमार ने लेखक को अपने ग्रह के बारे में बहुत-सी विचित्र बातें बताईं। उसने लेखक को अपने प्रिय फूल के बारे में विस्तार से बताया। फिर नन्हा राजकुमार एक ऐसे ग्रह में पहुँच जाता है जहाँ सिवाए एक राजा के और कोई नहीं है। राजा और नन्हे राजकुमार की रोचक बातें आपको इस अंक में पढ़ने को मिलेंगी...
विल्लेन – रोहन चक्रवर्ती
हीरे की खान के सन्दर्भ में बाघ की चिन्ता का बखान रोहन अपने अन्दाज़ में कर रहे हैं...
हँसी की खुशी – काजल गोस्वामी
चित्र: हरमनप्रीत सिंह
कोरोना के चलते बच्चों का जीवन अभी भी एक तरह से तालाबन्दी में ही है। ‘तालाबन्दी में बचपन’ कॉलम के ज़रिए बच्चे तालाबन्दी के इस दौर के अपने अनुभवों को साझा करते हैं।
इस बार बारहवीं कक्षा में पढ़ रही काजल गोस्वामी ने लॉकडाउन के दौरान माँ के साथ हुई खट्टी-मीठी नोंकझोंक और फिर माँ को मनाने की अपनी तरकीब की कहानी कही है।
बहाना जो काम कर गया
नवम्बर विशेषांक के लिए हमने बच्चों से कहा था कि वो उनके द्वारा बनाए गए किसी ऐसे बहाने के बारे में लिखें, जो काम कर गया हो। बच्चों ने हमने बहुत सारे बहाने भेजे... उनमें से कुछ दिलचस्प बहाने आप नवम्बर अंक में पढ़ चुके हैं। कुछ और बहाने आपको इस अंक में भी पढ़ने को मिलेंगे... और साथ ही बच्चों के बनाए हुए मज़ेदार चित्र भी हैं...
कीटन की रहस्यमयी बीमारी – तेजी ग्रोवर
चित्र: हबीब अली
इस संस्मरण में आप इकबाल सिंह उर्फ कीटन की कहानी पढ़ेंगे। कीटन भारतीय सेना में कैप्टन हुआ करते थे। एक दिन ना जाने क्या हुआ कि अचानक ही उनकी तबियत बिगड़ने लगी। उनके चेहरे पर गिरगिट की तरह रंग आने-जाने लगे। शायद उन्हें कोई रहस्यमयी बीमारी हो गई थी। फिर क्या हुआ? जानने के लिए पढ़िए ‘कीटन की रहस्यमयी बीमारी’...
क्या सूरज वास्तव में पूर्व में उगता है? – आलोक मांडवगणे, वरुणी
चित्र: विजय रविकुमार
काविया पहले गैंगटॉक में रहती थी। फिर उसका परिवार तमिलनाडू शिफ्ट हो गया। काविया अपने गैंगटॉक में रहने वाले दोस्त दावा से सूरज के उगने और डूबने की स्थितियों में होने वाले बदलावों पर बात करती रहती है। दोनों तय करते हैं कि कुछ समय तक हफ्ते के किसी एक दिन सूर्योदय की स्थिति देखी जाए...उन्होंने क्या देखा…? जानने के लिए आगे पढ़िए...
आज दलिए को क्या हो गया – उमेश, राम, सुरभि, रोहन
चित्र: शुभम लखेरा
लॉकडाउन के दौरान अरण्यावास हॉस्टल में नाश्ते में लगभग रोज़ ही दलिया बनता था। लेकिन एक दिन वहाँ के नाश्ते में कुछ अजब-सा हुआ। किसी को समझ नहीं आया कि सब कुछ सही-सही करने के बावजूद आखिर आज का नाश्ता गड़बड़-सा क्यों हो गया...
गणित है मज़ेदार – गॉस की कहानी – आलोका कान्हेरे
इन पन्नों में हम कोशिश करेंगे कि ऐसी चीज़ें दें जिनको हल करने में आपको मज़ा आए। ये पन्ने खास उन लोगों के लिए हैं जिन्हें गणित से डर लगता है।
यदि आपसे 1 से 100 तक की संख्याओं का योगफल पता करने को कहा जाए तो आपको इसमें कितना समय लगेगा? शायद काफी समय लगे। लेकिन पाँचवीं कक्षा में पढ़ रहे एक बच्चे ने तुरन्त ही इसका जवाब बात दिया। कौन था ये बच्चा और उसने यह जवाब कैसे निकाला, जानने के लिए पढ़िए...
बातचीत
अपने रोज़मर्रा के जीवन पर नज़र डालें तो हम पाएँगे कि ऐसे कितने ही लोग हैं जो अलग-अलग तरह से हमारी मदद करते हैं, जैसे कि प्लम्बर, मैकेनिक, सब्ज़ीवाले/सब्ज़ीवाली, घर में काम करने वाले, किसी चीज़ की मरम्मत करने वाले आदि। इन सबके बिना तो हमारा काम ही नहीं चलता। सो नवम्बर अंक के लिए हमनें बच्चों से ऐसे कुछ लोगों का इंटरव्यू करने के लिए कहा था। हमें भेजे गए इंटरव्यू में से कुछ आप नवम्बर अंक में पढ़ चुके हैं। कुछ और आपको इस अंक में पढ़ने को मिलेंगे...
फल वाले रिंकू भैया
जहाँ कमाई है वहीं घर है
इन इंटरव्यू में बच्चों ने जहाँ एक ओर इन लोगों के कामों के बारे में विस्तार से बताया है, वहीं दूसरी ओर इन लोगों को पेश आने वाली मुश्किलातों को भी सामने रखा है।
मेरा पन्ना
वाकया – नानी का डिब्बा, मुश्किल, चाय।
डायरी – मैं काम करती हूँ।
और बच्चों के बनाए कुछ दिलकश चित्र।
माथापच्ची
कुछ मज़ेदार सवालों और पहेलियों से भरे दिमागी कसरत के पन्ने।
चित्रपहेली
चित्रों में दिए इशारों को समझकर पहेली को बूझना।
तुम लड़की हो तुम्हें क्यों पढ़ना है?– कमला भसीन
चित्र: कनक शशि
जब बाप ने बेटी से किया सवाल कि तुम्हें क्यों पढ़ना है? तब बेटी ने अपना जवाब कुछ यूँ दिया...
'पढ़ने की मुझे मनाही है सो पढ़ना है
मुझमें भी तरुणाई है सो पढ़ना है
सपनों ने ली अँगड़ाई है सो पढ़ना है
कुछ करने की मन में आई है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है...'